अक्सर आम जनता का कहना रहता है कि उसकी शिकायत दर्ज करने के बजाय पुलिस उसे ही उल्टा परेशान करना शुरू कर देती है. अगर किसी गंभीर मामले में एफआईआर दर्ज कराने की नौबत आए तो पुलिस शिकायतकर्ता को ही पुलिस थाने के दर्जनों चक्कर कटवा देती है. खासतौर से गरीब, अशिक्षित लोगों की शिकायतें रफा-दफा करने के आरोप पुलिस पर लगते रहते हैं.
इसी समस्या को दूर करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. इसमें कहा गया है कि दिल्ली के हर पुलिस थाने में एक परामर्शदाता नियुक्त किया जाए. दिल्ली पुलिस के मदद न करने पर यह परामर्शदाता जनता की परेशानियों को दूर करने और पुलिस और आम लोगों के बीच में कड़ी का काम करे.
बहरहाल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किया है और 24 अप्रैल से पहले इस मामले में कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं. सरकार और पुलिस इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं और कोर्ट उससे कितना संतुष्ट होता है, उससे ही इस याचिका का भविष्य तय होगा.
इसके अलावा इस याचिका में अज्ञात शवों की वीडियोग्राफी को अनिवार्य करने के लिए भी कोर्ट से गुहार लगाई गई है. याचिका में कहा गया है के कई शवों की पहचान नहीं हो पाती और परिवार वाले वर्षों अपने परिजन को ढूंढने में लगा देते हैं. अगर इस तरह के मामलों में पुलिस के पास वीडियोग्राफी होगी तो परिवार वालों के लिए शव को पहचानना भी आसान होगा.
याचिका में खासतौर से एक गरीब व्यक्ति के बेटे की गुमशुदगी और फिर उसकी हत्या के बाद इस मामले में पुलिस के एफआईआर दर्ज ना करने की बात को विस्तार से बताया गया है. याचिकाकर्ता के वकील शशांक देव सुधीर ने 'आजतक' से कहा पुलिस महकमे में गरीब और निचले तबके के लिए संवेदनहीनता का अभाव है. ऐसे में हर पुलिस स्टेशन में परामर्शदाता की नियुक्ति से कई बड़े बदलाव पुलिस थानों में देखने को मिल सकते हैं. हालांकि यह परामर्शदाता दिल्ली सरकार नियुक्त करे या दिल्ली पुलिस को लेकर याचिका स्पष्ट नहीं करती है.