राजधानी में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण पर हाई कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी को राजधानी में अलग-अलग जगह प्रदूषण को मापकर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि वो केवल प्रदूषण की रोकथाम नहीं चाहते, बल्कि चाहते हैं कि प्रदूषण से पर्यावरण पर हुआ प्रभाव पूरी तरह खत्म हो.
डीपीसीसी ने सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया कि ईस्ट दिल्ली के आनंद विहार में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा है. अधिक प्रदूषण का कारण यहां बना अंतरराज्यीय बस अड्डा, रेलवे स्टेश और वाहनों की अधिक संख्या है. कोर्ट ने कहा कि पंजाब में सिर्फ 20 दिन में फ़सल जलाने से 9 हजार टन पीएम 2.5 और दस हजार टन पीएम 10 उत्पन्न होता है. पर्यावरण में घुला प्रदूषण असानी से खत्म नहीं होता और पर्यावरण पर बुरा असर डालता है. केवल एक राज्य से इतनी अधिक मात्रा में पीएम उत्पन्न होने पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की.
कोर्ट ने दिल्ली ट्रैफिक पुलिस और उत्तर प्रदेश सरकार को आनंद विहार बॉर्डर यातायात का दबाव कम करने के उपाय कोर्ट को सुझाने का निर्देश दिया है. अदालत ने ईस्ट एमसीडी और डीडीए से भी आनंद विहार इलाके से सड़कों पर पड़े मलबे और गंदगी को साफ करने का निर्देश दिया है. इसके अलावा कोर्ट ने तीनों नगर एमसीडी से कूड़ा निस्तारण पर अपनी कार्य योजना मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी 2017 तक पेश करने को कहा है.
डीपीसीसी ने हाईकोर्ट को बताया कि प्रदूषण के मद्देनजर राजधानी में सालभर के भीतर 20 जगह मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने की योजना है. इन स्टेशनों को लगाने में इसलिए समय लग रहा है कि इंडिया में इनका कोई प्रमाणित निर्माता नहीं है. इसके लिए विदेशों से कुटेशन मंगवानी पड़ेगी. सुनवाई के दौरान वकील कैलाश वासदेव ने कहा कि लैंडफिल साइटों पर नियंत्रण करने, सड़कों से मलबा साफ करने से वायु की गुणवत्ता में सुधार आ सकता है.