
दिल्ली में 27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार बनाने जा रही है और मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण की तारीख भी आ गई है. रामलीला मैदान में 20 फरवरी को 4.30 बजे दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह होना है. बीजेपी ने 10 साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी को हराकर विधानसभा चुनाव जीता है. हालांकि अब तक दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर नहीं लग पाई है. रामलीला मैदान में ही साल 2011 में अन्ना आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसमें अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल समेत कई लोग शामिल थे. इसी आंदोलन से निकलने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी बनाई थी.
मुगल साम्राज्य से लेकर ब्रिटिश हुकूमत देखी
दिल्ली का रामलीला मैदान अन्ना आंदोलन का गवाह भर नहीं है बल्कि इसका इतिहास करीब 150 साल पुराना है. कभी बस्ती का तालाब कहे जाने वाले इस मैदान ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर से लेकर ब्रिटिश हुकूमत, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और जय प्रकाश नारायण तक का दौर देखा है. रामलीला मैदान भारत की आजादी के आंदोलन से लेकर देश में लोकतंत्र की स्थापना और कई पूर्व प्रधानमंत्रियों की रैलियों का गवाह रहा है.
राजधानी के अजमेरी गेट इलाके में स्थित रामलीला मैदान के चारों तरफ कभी बस्तियों हुआ करती थीं और उस दौर में यह सिर्फ एक तालाब था. इसी वजह से मैदान को बस्ती का तालाब भी कहा जाता था. बहादुर शाह जफर की सेना में हिन्दू सैनिकों की अच्छी-खासी तादाद थी और 1845 में मैदान के एक बड़े हिस्से को समतल किया गया था और यहां पहले से ही रामलीला हुआ करती थी. इसी के बाद से यह रामलीला मैदान के नाम से पहचाना गया. हालांकि बाद में 1880 के आसपास ब्रिटिश सैनिकों ने इस मैदान में अपने टैंट लगाए जो ड्यूटी के बाद आराम करने के लिए इस जगह का इस्तेमाल करते थे.
मैदान में होता था रामलीला का मंचन
समय के साथ-साथ दिल्ली का खाली इलाका कम होता चला गया और यहां बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण हुआ. लेकिन 10 एकड़ में फैला रामलीला मैदान जस का तस बना रहा. उस दौर में रामलीला मैदान की अहमियत ऐसी थी बहादुर शाह जफर ने खुद अपने जुलूस का रास्ता बदलवाया था ताकि वह आते-जाते मैदान का दीदार कर सकें. अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद फिर से मैदान में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ, जो अब तक चला आ रहा है.
ये भी पढ़ें: ...जहां हुआ था केजरीवाल का उभार, वहीं से मिलेगी दिल्ली को बीजेपी की सरकार!
रामलीला मैदान में साल 1961 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ तक आ चुकी हैं. यही नहीं, पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को साल 1945 में इसी मैदान पर मौजूद भीड़ ने मौलाना की उपाधि दी थी. इसके अलावा नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल समेत तमाम स्वतंत्रता सैनानियों ने इसी मैदान से जनता में आजादी की अलख जगाई थी. साल 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसी मैदान में जम्मू कश्मीर के मुद्दे को लेकर सत्याग्रह किया था. 1965 की जंग में पाकिस्तान को हराने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसी मैदान पर एक विशाल जनसभा को संबोधित किया था.
केजरीवाल के शपथ ग्रहण का गवाह
1975 की इमरजेंसी के दौरान जयप्रकाश नारायाण ने दिल्ली के रामलीला मैदान से कांग्रेस की सरकार के खिलाफ हुंकार भरी थी. रामधारी दिनकर की प्रसिद्ध कविता 'सिंहासन खाली करो जनता आती है...' का नारा भी इसी मैदान पर गूंजा था. इसी मैदान में 2011 में अन्ना हजारे की अगुवाई में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन हुआ था और माना जाता है कि यूपीए-2 की सरकार को सत्ता से हटाने में इस आंदोलन का अहम रोल रहा है.
अन्ना आंदोलन के बाद उनके साथी अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई जो चुनाव लड़ने के बाद लगातार 10 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही. वहीं इसी अन्ना आंदोलन के बाद 2014 में हुए आम चुनावों में बीजेपी को प्रचंड जीत मिली और नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. कांग्रेस को इस चुनाव में करारी हार मिली थी और देश की सबसे पुरानी पार्टी सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई थी.
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी रामलीला मैदान में सीएम पद की शपथ ले चुके हैं. अब दिल्ली की सत्ता से AAP की विदाई का गवाह भी यही मैदान बनने जा रहा है, जहां 20 फरवरी को बीजेपी सरकार के अगले मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह होना है.