दिल्ली में नर्सरी दाखिला अब तभी शुरू होगा जब गैर सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों की याचिका पर हाई कोर्ट का आदेश आएगा. इस याचिका में नए दाखिला दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई है और इसे शिक्षा व्यवस्था का राष्ट्रीयकरण बताया गया है.
जज एनवी रमण और न्यायमूर्ति राजीव सहाय से दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि नर्सरी में दाखिला तब तक शुरू नहीं होगा जब तक अदालत एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉगनाइज्ड प्राइवेट स्कूल्स की याचिका पर आदेश देगी.
बुधवार को मामले में तीन घंटे से अधिक समय तक दलील चली. इस दौरान सरकार ने दावा किया कि उपराज्यपाल की ओर से जारी नर्सरी दाखिला दिशा-निर्देश, जिसमें पड़ोस के बच्चों को 70 अंक और 20 फीसदी प्रबंधन कोटा को खत्म किए जाने संबंधी फैसला सुनाया गया है, को मौका दिया जाना चाहिए.
वहीं, एक्शन कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा, 'रातों-रात सरकार ने मानदंडों को सीमित कर दिया है जो सात साल से थे. उसमें विभिन्न मानदंडों के लिए अंक आवंटित थे. स्कूल के लिए क्या छोड़ा गया, हम किस चीज के लिए स्कूल चला रहे हैं. सरकार ने सबकुछ सीमित कर दिया है.' उन्होंने कहा कि नए दिशा-निर्देश का आशय गैर सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों का राष्ट्रीयकरण करना है. हमने स्कूल खोलकर, अच्छी शिक्षा देकर ऐसे समय में राष्ट्र की सेवा की है जब सरकार इसमें विफल रही.
दलील पर जवाब देते हुए पीठ ने कहा, 'अगर आप (दिल्ली सरकार) व्यावहारिक नजरिया अपनाएं तो शिक्षा, परिवहन और स्वास्थ्य मुख्य क्षेत्र हैं. इन तीनों क्षेत्रों में सरकार विफल रही है.' पीठ ने आगे कहा कि आपको हकीकत को स्वीकार करना होगा. राज्य की विफलता को देखें. इस बीच, न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने अल्पसंख्यक स्कूलों से संबंधित नर्सरी दाखिला दिशा-निर्देशों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाकर माउन्ट कार्मेल और मोंटफोर्ट स्कूल को अंतरिम राहत दी. अदालत ने कहा कि उनसे अलग तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए.
एक्शन कमेटी ने सरकार के प्रबंधन कोटा को समाप्त करने पर भी आपत्ति जताई और कहा कि राज्य ने ऐसी छवि बनाई है मानो प्रबंधन कोटा किसी तरह की बुराई है. उन लोगों के बच्चों को ग्रेस मार्क्स देने में क्या गलत है, जिन्होंने स्कूल को शुरू करने और चलाने में कड़ी मेहनत की है.