दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिलहाल तीन पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड किए जाने की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं, लेकिन उनकी बड़ी मांग दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन लाने की है. वह कई बार इस संबंध में बयान दे चुके हैं.
उनका तर्क यह है कि जब दिल्ली में अपराध होते हैं तो यहां का नागरिक विधायकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के पास दौड़ता है. लेकिन दिल्ली पुलिस राज्य सरकार नहीं, केंद्र के अधीन है, इसलिए चाहकर भी दिल्ली सरकार कड़े कदम नहीं उठा सकती.
इस संबंध में एक व्यापक बहस सोशल मीडिया पर भी जारी है. कई लोगों का मानना है कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री को अगर एक थानेदार को सस्पेंड या ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं है तो उससे सुरक्षा से जुड़े मामलों में जवाब कैसे मांगा जा सकता है. हालांकि विरोधियों का तर्क है कि दिल्ली पुलिस संसद के प्रति जवाबदेह है और उसका बजट भी संसद में ही पास होता है. यह संघीय व्यवस्था है. ऐसी व्यवस्था दुनिया के कई देशों में है.
दिल्ली पुलिस कैसे आ सकती है दिल्ली सरकार के अधीन?
इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है. जानकारों के मुताबिक, दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन लाने के दो तरीके हो सकते हैं. पहला यह कि प्रदेश सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पास करे, उसे केंद्र सरकार को भेजे और फिर संसद में संसोशन बिल लाकर केंद्र सरकार इसे मंजूरी दिलाए.
दूसरा तरीका यह हो सकता है कि केंद्र सरकार खुद इस दिशा में पहल करें. संसद में संशोधन बिल लाकर दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन करने के फैसले को मंजूरी दिलाए. मुख्यमंत्री केजरीवाल से पहले शीला दीक्षित भी ऐसी मांग उठाती रही हैं. लेकिन केंद्र की तरफ से न तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला है और न ही दिल्ली पुलिस को आजाद करने को तैयारी हुई है.