scorecardresearch
 

'गंदा है पर धंधा है ये...दलाल को मलाल तो होता है लेकिन...'! GB Road पर सजे देह के बाजार के 'एजेंट' की कहानी

15 साल का था, जब पहला कस्टमर पकड़ा. इसके बाद तो एक्सपर्ट बन गया. हम सड़क पर चलते हुए सूंघ लेते, किसे किस तरह की औरत चाहिए. जैसे दुकान पर मिठाइयां मिलती हैं, वैसे ही सबकी पसंद भी अलग होती. इसी हिसाब से हमारा कमीशन बनता. इस काम में पैसे तो थे, लेकिन खतरे भी कम नहीं थे. लोग हमें दल्ला बुलाते, और जब चाहे, पीट देते.

Advertisement
X
जीबी रोड का नाम बदलकर श्रद्धानंद मार्ग हो चुका. - सांकेतिक फोटो
जीबी रोड का नाम बदलकर श्रद्धानंद मार्ग हो चुका. - सांकेतिक फोटो

जीबी रोड! पुरानी दिल्ली की वो सड़क, जिसकी तिमंजिला इमारतों में किस्म-किस्म की कहानियां खदबदाती हैं. प्रेम की, धोखे की, नशे की...और सेक्स वर्क की. इन मकानों के छज्जों से झांकते चेहरों और उनकी कही-अनकही पर हजारों दफा बात हो चुकी है. बीच-बीच में एक और टर्म सुनाई देता है- दलाल.

वो शख्स, जिसके लिए हर कमजोर औरत एक शिकार है. जो घाव खोजकर हमला करता और दावत उड़ाता है. आज तक ने जीबी रोड के इन्हीं 'खलनायकों' को टटोला. 

Advertisement

अगर आपकी चाल-ढाल में क्लाइंट के लक्षण नहीं, तो एजेंट आपके मुंह नहीं लगेंगे. मैं एक संस्था के जरिए इन तक पहुंचने की कोशिश करती हूं. वहां बताया जाता है- हां, एक लड़का है. उसकी मां इसी काम में थी. उसकी मौत के बाद वो बदल गया. हमारे साथ जुड़ गया. आप आइए, लेकिन बात होगी, या नहीं, वही ‘डिसाइड’ करेगा. 

सुबह के करीब 9 बजे होंगे. दिल्ली दौड़ रही है, लेकिन अजमेरी गेट से लाहौरी गेट की तरफ बढ़ती ये सड़क अलसाई हुई दिखेगी.

कारण कुछ घंटों बाद समझ आता है, जब किसी सेक्स वर्कर से मिलने की मेरी इच्छा पर टोकते हुए ‘रोशन’ कहते हैं- अभी तो उनकी बोहनी भी नहीं हुई होगी. जाएंगे तो फालतू में किच-किच करेंगी. 

फिलहाल जिस एनजीओ के साथ ये एजेंट काम कर रहा है, वहां इन औरतों के बच्चे रहते हैं. रोशन का काम बच्चों से प्रेयर, योगा करवाना, उनकी देखभाल और जरूरत के सामान लाना है. मेरे पहुंचने पर वहां मॉर्निंग गेदरिंग चल रही थी. उसे लीड करते हुए रोशन की आवाज एकदम बुलंद.

Advertisement
human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
रोशन इन बच्चों के साथ काम करते हैं.

मुश्किल से 25 साल के लगते रोशन को दलाल का काम फैमिली बिजनेस की तरह मिला.

वो कहते हैं- पहले इतने एनजीओ नहीं थे. बच्चे अपनी मां को यही सब करता देखते बड़े हो जाते. फिर लड़की है तो मां का कमरा संभालती. और लड़का हो तो सड़कों पर क्लाइंट खोजने निकल जाता. मैं भी उनमें से एक था. 

उर्दू-मिली-हिंदी बोलते रोशन सबके सामने बात करने को राजी नहीं. चेहरा दिखाए बगैर रिकॉर्डिंग पर भी राजी नहीं. बड़ी मुश्किल से दलदल से निकला हूं, चेहरा नहीं लाऊंगा. 

लेकिन इस सड़क से बाहर आपको जानता ही कौन होगा? मेरे सवाल पर हंसते हुए वो कहता है- 'आपको क्या लगता है, यहां दो-चार घरों से लोग आते हैं! चांदनी चौक में शायद साड़ियों के उतने डिजाइन नहीं होंगे, जितने यहां नए-नए चेहरे दिख जाएंगे.'

आखिरकार आवाज की रिकॉर्डिंग पर मामला तय होता है.
 
सड़क से रोज हजारों लोग गुजरते हैं. ऐसे में आप कैसे पहचानते हैं कि फलां आदमी ऊपर की सीढ़ियां चढ़ सकेगा?

हमारा सीनियर हमें ट्रेनिंग देता है. दूसरे प्रोफेशन की तरह ही ये काम भी है. वो सिखाता है कि कैसे हम ग्राहक को पहचानें. अगर कोई आदमी सड़क का लगातार चक्कर काट रहा हो, चुपके से ऊपर की तरफ देख रहा हो, या बार-बार एक जगह ठहर रहा हो तो इसका मतलब वो ऊपर आना चाहता है. 

Advertisement
human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
यहां नीचे कमर्शियल मार्केट चलता है, और ऊपरी मंजिलों पर अधिकतर यौन कर्मी महिलाएं रहती हैं. 

कई बार लोग नीचे दुकानों पर भी घूमते रहते हैं. हम उनके पास जाते और पूछते हैं कि लड़की चाहिए क्या. कोशिश रहती है कि ये बात अकेले में पूछी जाए. भीड़ में सब सफेदपोश होते हैं. अकेले में अक्सर बात बन जाती है. 

फिर वो चलने को राजी हो जाता है?

तुरंत नहीं. लेकिन हावभाव से हामी भर देता है. तब हम आगे बढ़ते हैं. कैसी लड़की चाहिए? हमारे पास सब हैं. नेपाली, बंगाली, मद्रासन, दिल्लीवाली, कम उम्र, ज्यादा उम्र. हम वैरायटी गिनाते हैं. जैसे मिठाई की दुकान पर जाओ तो दिखता है कि बालूशाही ले लो, गुलाबजामुन ले लो. बिल्कुल वैसे.
 
ये भी तो हो सकता है कि आप जिसे क्लाइंट मान बैठे हों, वो सड़क से बस गुजर रहा हो! तब क्या होता है?

‘पिटाई.’ रोशन बिना लागलपेट बताते हैं- तब लोग हमें पीट देते हैं.

ऐसा बहुतों बार हो चुका. जो बंदा जाना चाहता है, वो चल पड़ता है. जो नहीं जाना चाहता वो दल्ला बोलते हुए मारपीट करता है. इसके बाद हम ज्यादा ध्यान से ग्राहक खोजते हैं. मैं दुबला-पतला हूं. ये भी हो चुका कि किसी तंदुरुस्त क्लाइंट को ऊपर जाकर लड़की पसंद न आए तो वो पैसे देने की बजाए हमारे ही पैसे छीन लेता है. दमभर कूटता है, वो अलग.

Advertisement

काम सीखने में आपको कितने दिन लगे?

डिपेंड करता है कि आप कितना खुल सकते हैं. ‘शाय’ होने से काम नहीं चलता. मैं तो सीखा-सिखाया ही था. 

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
जीबी रोड पर अनुमानतः 2 हजार सेक्स वर्कर्स रहती हैं.

एक औरत के पास रोज कितने क्लाइंट आते हैं?

दिनभर में 10 से 15 हो जाते होंगे.

अगर उसके पास एजेंट हैं तो इतना होता ही है. वो अकेली काम कर रही हो तो 3 से 5 ग्राहक जुटते हैं. आगे कई कोठे हैं, जहां की औरतें अपने दम पर काम करती हैं. वो पुरानी हैं. उनके क्लाइंट भी पुराने हैं. ये वैसा ही है कि आपको 10 दुकानों में कोई एक पसंद आ जाए, और बार-बार वहीं आएं.
 
बताते हुए रोशन की आवाज में कोई हड़बड़ी नहीं, बल्कि रुटीन वाली तसल्ली है. उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि औरत का शरीर कितना झेल सकता है. ये ‘जॉब’ है- बातचीत के बीच जोर देते हुए वे कहते हैं- अगर कोई औरत दो-चार रोज के लिए बीमार हो, तो अपना काम किसी सहेली को दे देती है. 

आप इस काम में कैसे आए? रिकॉर्डिंग ऑन किए हुए ही मैं सवाल करती हूं.

गरीब परिवार से थे. अजमेरी गेट पर काम खोज रहे थे. वहां एक बंदा मिल गया कि चलो तुम्हें काम दिलाते हैं. उसने मैडम से मिलवाया. बताया कि नीचे घूमना-फिरना होगा और आदमी पकड़कर लाने हैं. कमीशन अच्छा मिलेगा. मैंने सीखा और काम चालू हो गया. 

Advertisement

रोशन अपनी मां के यहीं से होने और नशे से मौत को टालते हुए गोलमोल बात कर रहे हैं.

पर्सनल बातों को लेकर जीबी रोड की दुनिया भी बाहर से अलग नहीं. वे भी उतने ही सीक्रेटिव हैं, जितने हम-आप. यही बात उनसे मिलने से पहले मेरे सोर्स ने भी कही थी. उन्हें ज्यादा कोंचिएगा नहीं, वरना बिदक जाएंगे. 

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
ज्यादातर दलाल यही देखते हुए बड़े होते और काम संभालने लगते हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

शुरू-शुरू में खूब बढ़िया लगा. एक आदमी को पकड़कर भेजने के 3 सौ रुपये मिल जाते. कई बार इससे ज्यादा भी, अगर क्लाइंट बहुत खुश होकर गया तो. पैसे आए तो सारे दबे-सोए शौक जागने लगे. अच्छे कपड़े पहनता. मनपसंद खाना खाता. घूमता-फिरता. फिर इस काम में रौब भी था. 

रौब कैसा?

हमारे बाद आने वाले हमें सीनियर मानते. अगर हम ज्यादा क्लाइंट खोज सकें तो औरतें भी रौब में आ जातीं. खासकर नई लड़कियां डरने लगतीं. हमारा रुतबा कंट्रोलर के बराबर पहुंच जाता. 

जीबी रोड के मकानों की ऊपरी मंजिलों पर चलते कोठे अपने-आप में एक दुनिया हैं. 

यहां एक सप्लायर होता है, जो नई लड़कियों की सप्लाई बनाए रखता है. एक कंट्रोलर है, जो आमतौर पर कोई न कोई उम्रदराज महिला होती है. इसे नायका या मैडम भी कहते हैं. ये मकान संभालती है, साथ में औरतों को भी देखती है. आमदनी का एक बड़ा हिस्सा इसके पास जाता है. एक एजेंट होता है, जिसका काम ग्राहक पकड़ना है. सड़क से जीने की दूरी पार करते ही क्लाइंट गेस्ट में बदल जाता है. 

Advertisement

यहां छत की ओर जाती सीढ़ियों का एक नंबर है, जिसे जीना नंबर भी कहते हैं. असल में ये मकान नंबर है, जिससे ऊपरवालियों की पहचान होती है.
 
कमरों में रहती औरतों का अलग संसार है. कई बार वे बच्चों के बाद पति की तलाश में रहती हैं. अगर कोई लगातार आने लगे तो बहुत मुमकिन है कि वे उसे ही अपना ‘आदमी’ मान लें. रोशन परत-दर-परत मेरे सामने वो दुनिया खोल रहे हैं, जिसका जिक्र शायद ही कहीं मिले. 

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
बच्चों वाली महिलाएं एक साथी खोजने लगती हैं. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

आदमी की इन्हें क्या जरूरत? मैं अब भी जीबी रोड के बाहर ही खड़ी सोच रही हूं.
  
अरे! हल्की हैरत घुली आवाज में रोशन कहते हैं- अधिकतर लड़कियां बाहर की हैं. अगर वे गांव घूमने जाना चाहें तो आदमी साथ जाता है. वे सबको उसे पति बताकर ही मिलवाती हैं. इससे इज्जत बनी रहती है. बच्चे भी उसे पापा बुलाते हैं. लेकिन हमारी दुनिया में ऐसों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. ये औरत के पैसों पर पलने वाले लोग हैं. मन भरने पर उसे छोड़कर अपने परिवार में वापस चले जाते हैं. अब तक काफी नर्म लहजे में बात करते रोशन की आवाज में नफरत घुली हुई है. 

Advertisement

लेकिन आप लोग भी तो औरतों के पैसों पर जीते हैं! 

हम उनकी कमाई नहीं खाते. हम जरिया हैं ताकि उनका भी पेट पल सके. आपको बताया तो, एक क्लाइंट लाने के लिए हमें गालियां और मारपीट तक झेलनी पड़ जाती है. तीखा जबाव आता है. वे किसी हाल में खुद को ‘आदमी’ के बराबर नहीं रख पा रहे. 

फिर भी! कभी तो लगता होगा कि किसी के दुख की कमाई खा रहे हैं!

मकड़ी के जालों और सफेद परदों से घिरा कमरा, जहां एक पुराना कंप्यूटर रखा है, इस बार वहां देर तक सन्नाटा रहता है. फिर जबाव आता है- नर्मदिल हो तो लगता है कि हर निवाले के साथ बददुआ खा रहे हों.

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
इस कमरे में सारी बातचीत हुई. 

कई बार गिल्ट में लोग नशे में पड़ जाते हैं. यहां सब आसानी से मिलता है. सिमैक (स्मैक या हेरोइन) और गांजा-भांग भी. मैं खुद शराब में डूबा रहता था. अब छोड़ दी. मैंने देखा है, कैसे हट्टे-कट्टे एजेंट घुलकर खत्म हो गए. कई लोग फुटपाथ पर मर जाते हैं. काफी लोगों को इसी तरह जाते देखा. 

आंखों पर पानी की परत पड़ी हुई. शायद वे अपनी मां या शायद बीत चुके रोशन को याद कर रहे हों. 
 
आपने इतना कुछ देख लिया. अब भी शादी करना चाहेंगे?

हां, क्यों नहीं. मुरझाई हुई आवाज इस बार चटककर खिलती है. मनमाफिक लड़की मिले तो घर जरूर बसाऊंगा. बहुत लोग शादी करते हैं. कई बार तो यहीं की लड़की से जुड़ जाते हैं. मुफ्तखोर हुए तो उसकी कमाई खाने लगते हैं. वरना दलदल से बाहर कमरा लेकर रहते हैं. उसे बहुत संभालकर रखते हैं. 

किस तरह की लड़की मन में है!

ऐसी, जो मेरे साथ चले. न मेरे पीछे. न मेरे आगे. हो सकता है कि गांव से लड़की लेकर आऊं. वो ‘साफ’ होती है. लेकिन शादी से पहले अपने बारे में उसे सब बता दूंगा. हमारा पेशा वो जख्म है, जिसके निशान हरदम बने रहते हैं. वो राजी तो ठीक, या मैं आगे बढ़ जाऊंगा.

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
दलालों की जीने तक सीधी पहुंच होती है. सांकेतिक फोटोGetty Images)

ये काम क्यों छोड़ा?

हमेशा जिंदगी यही नहीं होगी. आज जिस क्लाइंट को बढ़िया माल का लालच देकर बेवकूफ बनाया, कल उसे बरगला नहीं सकूंगा. अब दिल भी नहीं मानता है. न जाने कितनों को लूटा. कितनों की हाय हर सांस को भारी बनाती है. छोड़ने की अक्सर सोचता था, फिर एक दिन बाहर निकल ही गया. 

अलग से बातचीत में पता लगा कि अपनी मां की मौत के बाद रोशन ने जीबी रोड से बाहर कमरा लेने की भी कोशिश की, लेकिन फिर लौट आया. यही उसका परिवार है. 

यहां तक लड़कियों की सप्लाई कहां से होती है?

अक्सर एजेंट की पहुंच गांवों तक होती है. वहां कोई न कोई औरत या उम्रदराज आदमी होता है, जो गरीब घरों को देखता है. वहां की लड़कियों को शहर में काम और पढ़ाई का लालच देकर यहां तक लाया जाता है, और फिर कंट्रोलर को बेच दिया जाता है. मान लीजिए, कंट्रोलर ने उसे एक लाख में खरीदा, तो जब तक पैसों से दोगुनी या तिगुनी कीमत वसूल नहीं होगी, लड़की उसके अंडर काम करती रहेगी.

इसके बाद वो 'इंडिपेंडेंट' हो जाती है, और चाहे तो बाहर निकल सकती है. लेकिन ऐसा होता कम ही है. फिर वो उसी कमरे का किराया देते हुए अपनी मर्जी से कमाने-खाने लगती है.
 
कई बार कमजोर घरों की लड़कियां अपनी मर्जी से आती हैं. वे दिल्ली की होती हैं. बुरका पहनकर आती हैं. घंटों के हिसाब से कमरे का किराया भी देती हैं. कई लड़कियों ने अपना नंबर दे रखा है ताकि मोटा क्लाइंट मिलने पर हम फोन करें.

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
एजेंट के मुताबिक जीबी रोड पर सामान्य घरों से भी लड़कियां आती हैं. सांकेतिक फोटो (AFP)

सालों इस फील्ड में रह चुकने के बाद औरत को किस नजर से देखते हैं? 

पहले मैं शिकारी था. क्लाइंट छोड़िए, सड़क पर चलती लड़कियों को भी सूंघ लेता. नई लड़कियों को राजी करने के लिए मुझे बुलाया जाता. थोड़ा हंसिए-बोलिए, तोहफे दीजिए- छटपटाती लड़की फट से आइने में उतर जाएगी. मामला पेंचीदा हो तो पुराने लोग डील करते. अब फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाली लड़की है, या लड़का. 

आपको कभी इस जॉब पर शर्म नहीं आई? अनचाहे ही गुस्सा फिसल पड़ता है.

रोशन आंखों में आंखें डालकर कहते हैं- मैं नहीं करूंगा तो कोई और करेगा, लेकिन काम तो चलता ही रहेगा. 

एक एजेंट के लिए यहां से बाहर निकलना कितना मुश्किल है?

कमरे में रहती लड़की से कहीं ज्यादा. ..सड़क पर हर कोई हमारा चेहरा, हमारा काम जानता है. कई बार ऐसा हुआ कि दिल्ली के दूसरे कोने पर मुझे दल्ला बुलाया गया. लड़कियों के लिए फिर भी लोगों का दिल भर आता है, लेकिन हम सबके लिए विलेन हैं. 

रोशन की आंखें हवा में कहीं देखती हुईं. शराब और नशे से बाहर निकल चुका लड़का चाहकर भी जीबी रोड से बाहर नहीं निकल सका.
 
लौटते हुए मेरी मुलाकात सोसायटी फॉर पार्टिसिपेटरी इंटिग्रेटेड डेवलपमेंट (SPID) की वाइस प्रेसिडेंट ललिता से होती है.

वे कहती हैं- एजेंट अक्सर वही लड़के बनते हैं, जिनकी मांएं इस पेशे में फंस जाएं. वे बचपन से यही देखते-सुनते हैं. फिर इससे अलग वे कुछ कर भी नहीं पाते. वे भी इंसान ही हैं, मौका मिले तो बाहर भी निकल आते हैं. हम लगातार ये कोशिश कर रहे हैं. बच्चों को स्कूल भेजने और उस माहौल से दूर रखने की कोशिश करते हैं. 

human story of a pimp born in brothel in red light area gb road delhi
SPID की वाइस प्रेसिडेंट ललिता लंबे समय से यौन कर्मियों के बच्चों पर काम कर रही हैं. 

बच्चों के तीन साल का होता ही उन्हें कोठे से हटाकर बोर्डिंग में रखते हैं. वे स्कूल जाते हैं. बाकी बच्चों के साथ मिलते हैं तो पुरानी जिंदगी से अलग रहते हैं. इस बीच मांएं मिलने आती रहती हैं. आज ही एक मां अपने बच्चे के लिए चिकन लेकर आने वाली है. वो पहले से बता देती है. बच्चा कल से इंतजार कर रहा है.
 
क्या ऐसे बच्चे अपनी मांओं का सच जानते हैं?

शुरू में नहीं. 10 साल का होने के बाद ही हम उसे थोड़ा-थोड़ा बताते हैं. उतना, जितना वो बर्दाश्त कर सके. सब जानने के बाद वो गुस्सा रहता है, लेकिन फिर धीरे से एक्सेप्ट कर लेता है. हम सिखाते हैं कि पढ़-लिखकर अपनी मां को यहां से निकाल ले जाओ. कई बच्चे ऐसा कर रहे हैं. एक डॉक्टर बन चुका. वो नवरात्रि पर कन्याभोज कराने के लिए मां को लेकर आया था.
 
ललिता और भी कई छूटी हुई बातें बताती हैं. डॉक्टरों, इंजीनियरों और जीबी रोड से बाहर की. इन बातों के बीच ही कहीं रोशन भी है. शब्दों के बीच छूटे फासले की तरह. 

जिस गाड़ी से गई थी, उसी से लौट रही हूं. परिचित ड्राइवर कहता है- बहुत देर इंतजार कराया आपने. मैं डर गया था. औरत तो औरत, यहां भले आदमियों का रहना भी सेफ नहीं. ब्लेड मारकर पैसे छीन लेंगे. या कोई पहचान ले तो हमेशा के लिए दाग लग जाएगा.

(नोट: पहचान छिपाने के लिए नाम और चेहरा गुप्त रखा गया है.)

Live TV

Advertisement
Advertisement