दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि यदि कोई शादी संदिग्ध है तो किसी व्यक्ति को दहेज प्रताड़ना के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अदालत ने जीवनसंगिनी के साथ निर्ममता बरतने के आरोप का सामना कर रहे एक व्यक्ति को बरी करते हुए यह टिप्पणी की. इस महिला की रहस्यमय परिस्थितियों में झुलसने के बाद मौत हो गई थी.
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट शिवानी चौहान ने कहा कि महिला को उसके पहले पति ने छोड़ दिया था और यह स्पष्ट नहीं है कि उसने उससे तलाक लिया था या नहीं और कानूनन अलग हुए बगैर वह आरोपी से शादी नहीं कर सकती थी. अदालत ने कहा कि सबूत से यह जाहिर नहीं होता है कि आरोपी और महिला की वैध शादी हुई थी. महिला के माता पिता ने दिल्ली निवासी राजबीर के खिलाफ दर्ज शिकायत में आरोप लगाया था कि दहेज के लिए उनकी बेटी को प्रताड़ित किया और उसके साथ निर्मम बर्ताव किया.
अदालत ने राजबीर को संदेह का लाभ दिया और उसे आईपीसी की धारा 498ए (पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा महिला से निर्ममता बरतना) से बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि इस प्रावधान को लगाने के लिए जरूरी है कि पति या उसके रिश्तेदार निर्ममता बरते. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने कहा कि इस मामले में पीड़िता और आरोपी के बीच शादी खुद ही संदेहास्पद है, इसलिए आरोपी को पीड़िता का पति नहीं कहा जा सकता.
अदालत ने कहा कि अलग हो चुके दंपति के पास दोबारा शादी का अधिकार नहीं है क्योंकि पहली शादी खत्म नहीं हुई है. गौरतलब है कि पीड़िता के पिता ने राजबीर के खिलाफ श्रीनिवासपुरी पुलिस थाना में एक शिकायत दर्ज कराई थी.