दिल्ली को चलाने वाले तीन चेहरे (अरविंद केजरीवाल, नजीब जंग और सुशील कुमार शिंदे) इस कदर उलझ चुके हैं कि दिल्ली चलेगी कैसे और सरकार बचेगी कितने घंटे ये सवाल बड़ा होता जा रहा है.
मुख्यमंत्री केजरीवाल जनता की दुहाई दे रहे हैं और सवाल जन लोकपाल बिल को स्टेडियम में पास कराने के लिए कह रहे हैं. उप-राज्यपाल नजीब जंग जन लोकपाल को लेकर ट्रांजैक्शन बिजनेस नियम की दुहाई दे रहे हैं और सवाल स्टेडियम में सुरक्षा व्यवस्था न दे पाने के दिल्ली पुलिस की चिट्ठी पर कर रहे हैं. गृहमंत्री शिंदे संविधान की दुहाई देकर सवाल केजरीवाल के कामकाज के तौर-तरीकों पर ही उठा रहे हैं.
तो फिर दिल्ली का रास्ता जाता किधर है?
केजरीवाल अगर जन लोकपाल के सवाल पर कुर्सी छोड़ कर चुनाव मैदान में उतर जाएं, तो झटके में दिल्ली के वोटरों में वो हीरो बन जाएंगे. लेकिन तब केजरीवाल की लड़ाई फिर दिल्ली में ही सिमट जाएगी और दिल्ली की सत्ता राष्ट्रपति शासन के जरिए एलजी के हाथ में आ जाएगी.
उस वक्त एलजी अपने गवर्नेंस से केजरीवाल के दौर को मात देने की कोशिश करेंगे और शिंद दिल्ली की सत्ता चलाने में एलजी की पूरी मदद करेंगे. क्योंकि एक तरफ इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में केजरीवाल के कूदने का मतलब होगा अगले चुनाव में बहुमत यानी कम से कम 36 सीटें जीतना.
संकेत साफ है केजरीवाल ऐसी हालत में एलजी, शिंदे और केंद्र सरकार को घेरेंगे. बड़ी बात ये है कि यह काम वह सीएम पद पर बने रहकर ही कर सकते हैं. तो दिल्ली का रास्ता अभी और उलझेगा क्योंकि केजरीवाल स्टेडियम में जन लोकपाल को लेकर विधानसभा सत्र न कर पाने का ठीकरा एलजी के जरीए दिल्ली पुलिस पर फोड़ रहे हैं, यानी धीरे-धीरे टकराव चरम पर होगा.