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क्या DU इलेक्शन के लिए पेपरलेस कैंपेनिंग संभव है?

गाइडलाइंस और NGT की पहली ही शर्त है पेपरलेस कैंपेनिंग. लेकिन कैंपस में हर जगह इस गाइडलाइंस का धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है. जगह-जगह दीवारों और खंबों पर चिपके पर्चे और पोस्टर इस बात का सबूत हैं.

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दिल्ली यूनिवर्सिटी
दिल्ली यूनिवर्सिटी

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डूसू का दंगल तैयार है. केपैनिंग के रंग कैंपस में जहां-तहां नजर आ रहे हैं. लेकिन छात्र इलेक्शन में गाइडलाइंस का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है जितना की कैंपेनिंग करना. हर छात्र संघ चुनावों से पहले कॉलेज जा-जा कर छात्रों तक पहुंचने की हरसंभव कोशिश में लगा हुआ हैं.

लेकिन गाइडलाइंस और NGT की पहली ही शर्त है पेपरलेस कैंपेनिंग. लेकिन कैंपस में हर जगह इस गाइडलाइंस का धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है. जगह-जगह दीवारों और खंबों पर चिपके पर्चे और पोस्टर इस बात का सबूत हैं. लेकिन छात्र दलों का कहना हैं कि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नही है.

प्रशासन को देने चाहिए दूसरे विकल्प
NSUI राष्ट्रीय अध्यक्ष अमृता धवन का कहना है कि अगर प्रशाशन पेपर लेस प्रचार चाहती है तो उसे भी हमें छात्रों तक पहुंचने के दूसरे विकल्प देने चाहिए. जैसे हर कॉलेज में आधा घंटा इंटरेक्शन का टाइम और वॉल ऑफ डेमोक्रेसी जैसी सहूलियत दे ताकी हम छात्रों तक पहुंच सकें.

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गाड़ियों पर पोस्टर लगाना भी मना
इसके अलावा गाइडलाइंस के मुताबिक गाड़ियों पर पोस्टर चिपकाकर कैंपेनिंग करना भी मना है. लेकिन गाड़ियों पर भी संभावित उम्मीदवारों के नाम चिपकाकर कैंपेनिंग चालू है. छात्र राजनीति में दल ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया के जरिये कैंपेनिंग कर सकते हैं. ताकि चुनाव प्रचारों को पेपरलेस बनाया जा सके. लेकिन इस बात पर छात्र दलों की दलील हैं कि 50 कॉलेज के बच्चों तक पहुंचना आसान नही हैं और इसीलिए वो लोग पेपर का इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं.

सभी दलों ने पेपरलेस राजनीति के लिए रणनीति तो बनाई है लेकिन जमीनी तौर पर इसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है. जहां-तहां अभी भी पेपर की बर्बादी और कचरा कैंपस में साफ दिखाई दे रहा है.

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