पानी की बर्बादी के लिए सरकार दिल्ली वालों पर तो जुर्माना लगाने जा रही है, लेकिन खुद जलबोर्ड सबसे ज्यादा पानी बर्बाद करता है. जल बोर्ड की पाइप लाइन से रोज करीब 150 लीटर पानी बर्बाद होता है.
डिमांड-सप्लाई में बड़ा अंतर दिल्ली में पानी की किल्लत की असल वजह है. आबादी के साथ पानी की जरूरत बेतहाशा बढ़ती जा रही है, लेकिन आपूर्ति उस अनुपात में नहीं बढ़ रही. दिल्ली में रोज 495 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है. पानी की सप्लाई 378 करोड़ लीटर होती है. 40 फीसदी पानी लीकेज में बर्बाद हो जाता है. यानी रोज लीकेज से 151 करोड़ 20 लाख लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. इस तरह से डिमांड सप्लाई का असली अंतर 211 करोड़ 95 लाख लीटर है, मतलब दिल्ली में रोज जरूरत से करीब 43 फीसदी कम पानी की सप्लाई होती है.
जलबोर्ड की लापरवाही और बेख्याली कुछ और जगहों पर भी दिखती है. दिल्ली में सालों से 3 प्लांट बनकर तैयार हैं, लेकिन बेकार हैं. बवाना, ओखला, द्वारका में नए प्लांट बनाए गए हैं. दरअसल, इन प्लांट को हरियाणा से पानी नहीं मिल रहा ह. इन प्लांट में मुनक नहर से पानी आना है, लेकिन नहर तैयार ही नहीं है.
इस नहर को बनाने के लिए हरियाणा 139 करोड़ रुपये मांग रहा है. यह तीनों प्लांट बनकर तैयार हो जाएं तो दिल्ली को 36 करोड़ लीटर पानी मिल सकता है. इसके साथ ही कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए बनाया गया प्लांट चालू हो जाए तो 45 लाख लीटर पानी मिलने लगेगा. सरकार रेन वॉटर हारवेस्टिंग योजना को भी सख्ती से लागू करे तो पानी की किल्लत कम होगी.