अगर आप दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) गए होंगे तो आप वहां स्थित 'गंगा ढाबा' को भी जरूर जानते होंगे. पिछले कई सालों से ये ढाबा JNU का एक अभिन्न हिस्सा बना हुआ है. लेकिन खबर है कि प्रशासन इस ढाबे को जल्द ही बंद करने वाला है.
क्यों खास है गंगा ढाबा
दिल्ली के JNU की शाम बहुत मशहूर है और इस शाम को और खास बनाता है कैंपस में स्थित ये ढाबा. जैसे जैसे शाम होती है इस ढाबे पर पर छात्र-छात्राओं का हुजूम इकट्ठा होने लगता है. ये ढाबा सस्ते खाने के लिए मशहूर है. साथ ही साथ ये ढाबा छात्रों के लिए डिबेट सेंटर भी बन जाता है. यहां के छात्रों ने इस ढाबे को अपने रोजमर्रा के जीवन में शामिल कर लिया है. आलम ये है कि कैंपस में होने वाले प्रदर्शन की शुरूआत भी इसी ढाबे से होती है. कुल मिलाकर अगर बात की जाए तो इस ढाबे का JNU और यहां पढ़ रहे छात्रों से एक अटूट रिश्ता सा बन गया है.
गंगा ढाबे के बंद होने की खबर सुनकर कैंपस के छात्र भी दुखी हैं. कई छात्रों का मानना है कि ये ढाबा इस कैंपस की पहचान है इसलिए इसे बंद नहीं किया जाना चाहिए.
इस बाबत जब JNU के प्रवक्ता से बात करने की कोशिश की गई तो वो इस मामले से पल्ला झाड़ते नजर आए और कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. वहीं इस ढाबे को चलाने वाले भी प्रशासनिक दबाव में दिखे और उन्होंने भी मीडिया से खुल कर बात नहीं की. स्थानीय छात्र संघ के अध्यक्ष अकबर चौधरी ने बताया कि प्रशासन इन दुकानों का व्यवसायिकरण करना चाहता है इसलिए इन्हें बंद किया जा रहा है. हालांकि स्थानीय छात्र संघ इस ढाबे को बचाने की कोशिशों में जुट गया है और प्रशासन से इस मुद्दे पर बात कर रहा है और अगर प्रशासन उनकी बात नहीं मानता तो वे इस ढाबे को बचाने के लिए आंदोलन भी कर सकते हैं.
गौरतलब है कि गंगा ढाबा 1985 से चल रहा है. ये ढाबा तब तेजवीर सिंह के नाम पर एलॉट किया गया था लेकिन उनकी मौत के बाद ये ढाबा उनकी पत्नी सुमन के नाम पर हो गया. सुमन की मौत के बाद फिलहाल ये ढाबा उनके लड़के भरत तोमर चलाते हैं. भरत तोमर अपने पूरे परिवार का गुजारा इसी ढाबे की कमाई से चलाते हैं. इस परिवार का भी JNU से एक रिश्ता सा बन गया है. लेकिन अब देखना ये है इस ढाबे को बचाने की कवायद में छात्र संघ कितना सफल हो पाता है.