जेएनयू में छात्रसंघ के चुनाव के बीच कन्हैया कुमार ने कैंपस के छात्रों के नाम एक पत्र लिखा है. फेसबुक पर एक लंबे पोस्ट के जरिए उन्होंने छात्रों का धन्यवाद किया है, जिन्होंने उन्हें छात्रसंघ के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी. कन्हैया ने कहा कि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी से मुक्त होते हुए शुक्रिया कहना अजीब लग रहा है, लेकिन संघर्ष के हर मुकाम पर साथ रहने वालों के वो आभारी हैं.
पढें, कन्हैया कुमार का थैंक्यू पोस्ट जस का तस-
साथियों,
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त होने के मौके पर अपने लोगों को शुक्रिया कहना बड़ा अजीब लग रहा है, लेकिन पता नहीं क्यों बार-बार उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करने का मन कर रहा है जो संघर्ष के हर मुकाम पर किसी न किसी रूप में मेरे साथ खड़े रहे. जेएनयू के विद्यार्थियों, शिक्षकों, कर्मचारियों, पूर्व विद्यार्थियों और कैंपस के बाहर के तमाम शुभचिंतकों का शुक्रिया जो समाज में समानता, न्याय व लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए समाज को पीछे धकेलने वाली ताकतों के विरुद्ध जेएनयू छात्रसंघ के संघर्ष #StandWithJNU में शामिल हुए. जेएनयू और इसके छात्रसंघ को बदनाम और बर्बाद करने की हरसंभव कोशिश के दौर में आप जैसे साथियों ने उन्हें यह बता दिया कि जेएनयू जिस जनवादी सोच के साथ हमेशा से खड़ा रहता आया है उसकी ताकत तमाम दंगाइयों और षड्यंत्रकारियों की ताकत से कई गुना ज्यादा है.
मुझे याद आ रहा है कि छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद मैंने विक्ट्री मार्च (विजय जुलूस) नहीं बल्कि यूनिटी मार्च निकाला था, क्योंकि मैं और मेरा संगठन हमेशा ही यूनिटी के पक्ष में खड़े हुए हैं. और मेरे पूरे कार्यकाल में मुझे उन तमाम लोगों का सहयोग मिला जो कई मसलों पर मुझसे वैचारिक तौर पर असहमत हैं. मेरे कार्यकाल में सबसे पहला विरोध प्रदर्शन एफ़टीआईआई के संघर्षरत साथियों के समर्थन में हुआ था और पूरे साल देश के तमाम कैंपसों में सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों के विरुद्ध उठ रही आवाजों के पक्ष में जेएनयू छात्रसंघ ने अपनी आवाज बुलंद की और 9 फरवरी के बाद इन सभी कैंपसों में #StandWithJNU की आवाज गूंजी.
चाहे छात्रवृत्ति को बचाने के लिए ऑक्यूपाई यूजीसी का आंदोलन हो या रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के दोषियों को सज़ा दिलाने का संघर्ष, या दादरी और ऊना में हुए अत्याचार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन, हर मौके पर आप सभी लोगों का जो सहयोग मिला उसके लिए शुक्रिया. हम जिशा और डेल्टा को न्याय दिलाने के लिए भी लड़े और अंबेडकर भवन को गिराने की साजिशों के खिलाफ भी. कैंपस में लाइब्रेरी में बेहतर सुविधाओं के लिए भी संघर्ष किया और बलात्कारी छात्र को सजा दिलवाने के लिए भी.
जिन लोगों ने मुझे वोट देकर इस पद के काबिल समझा, उन सबका शुक्रिया. तहे दिल से उन लोगों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिन्होंने मुझे वोट नहीं दिया और शायद वे मेरी राजनीतिक विचारधारा से पूरी तरह सहमत भी नहीं थे, लेकिन जो मेरी बोलने की आजादी के समर्थन में बहुत बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे. मैं जानता हूं कि वे कन्हैया कुमार के लिए नहीं बल्कि अपने निर्वाचित छात्रसंघ अध्यक्ष के लिए सड़कों पर उतरे थे. शुक्रिया उन सभी शिक्षकों का जो तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए जेएनयू छात्रसंघ के साथ खड़े रहे, जिन्होंने कहा कि 'कन्हैया जब पुलिस रिमांड से अदालत में आएगा तो वहां उसे सबसे पहले अपने समर्थन में खड़े शिक्षकों के चेहरे दिखेंगे' और संघर्ष के हर मोड़ पर उन्होंने हर तरह की मदद इस आंदोलन में की. उन सभी कर्मचारियों को भी मेरा आभार जो हमारे इस संघर्ष में शामिल हुए.
शुक्रिया उन सभी लोगों का जिन्होंने मेरे समर्थन में लेख और फेसबुक पोस्ट लिखे और जिनके लिए ना जाने कितनी गालियां उन्हें मुझे देशद्रोही समझने वाले और संघी मानसिकता वाले लोगों से खानी पड़ी. जो मेरे और अन्य साथियों के संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में अपने घरवालों, मित्रों और देश के अन्य नागरिकों से तार्किक बहस करने में कभी पीछे नहीं रहे. आप हैं तो लोकतंत्र है. आजादी चौक पर हर दिन बड़ी संख्या में पहुंचकर प्रशासन के अन्याय के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले साथियों का भी आभारी हूं. जेएनयू का पक्ष लोगों के सामने रखने के लिए की गई देश के विभिन्न हिस्सों की यात्राओं में जिन लोगों ने हौसला बढ़ाया उनका भी शुक्रिया.
मुझे इस बात का अहसास है कि मैं चुनाव से पहले आप लोगों से किए गए अपने कई वादे पूरे नहीं कर पाया, लेकिन जेएनयू पर इस तरह के अप्रत्याशित हमले के दौर में और मौजूदा राजनीतिक हालात में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का हरसंभव प्रयास मैंने किया है. मुझे याद आता है कि जेल से लौटकर आने के बाद आपको संबोधित करते हुए जब मैंने पहला शब्द कहा - 'साथियों' और जिस उत्साह के साथ आप सबने मेरा हौसला बढ़ाया, यह उत्साह और समर्थन ही पूरे संघर्ष के दौरान मेरी ऊर्जा बना रहा.
पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था पर जिस तरह का हमला सरकार और नवउदारवादी ताकतें कर रही हैं, समाज के वंचित वर्गों, दलितों, महिलाओं, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जिस तरह से बढ़ा है, मुझे उम्मीद है कि नई चुनकर आने वाली यूनियन उसके विरुद्ध संघर्ष की मशाल को बुझने नहीं देगी. कैंपस में छात्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए की गई कोशिशों को आगे ले जाया जाएगा और बेहतर सुविधाओं और छात्रवृत्ति के लिए संघर्ष को जारी रखा जाएगा.
मैं जेएनयू की जनवादी सोच के पक्ष में हमेशा खड़ा रहूंगा. रोहित एक्ट को लागू करने की लड़ाई हो या कैंपस लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लिंगदोह सिफारिशों के विरुद्ध संघर्ष, समाज में वंचित लोगो के हक को सुनिश्चित करने की लड़ाई हो या सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के विरुद्ध और श्रम की लूट के खिलाफ आवाज बुलंद करने के प्रयास, सबको शिक्षा, सबको काम सुनिश्चित करने के लिए और समाज में समानता व न्याय स्थापित करने के संघर्ष के हर मोर्चे पर आप मुझे अपने साथ पाएंगे, यह मेरा वादा है.
कन्हैया कुमार
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष (2015-16)