दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में तलाक के एक केस का फैसला सुनाते हुए करवा चौथ को लेकर भी अहम टिप्पणी की है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि करवा चौथ पर व्रत रखना या न रखना किसी की व्यक्तिगत पसंद है. इसे मानसिक क्रूरता या विवाह को तोड़ने का आधार नहीं माना जा सकता है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अलग धार्मिक मान्यता और कुछ धार्मिक गतिविधि न करना अपने आप में क्रूरता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि करवा चौथ पर व्रत रखना या न रखना किसी की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद हो सकती है. अगर निष्पक्षता से विचार किया जाए तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है.
हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रखा बरकरार
अलग धार्मिक विश्वास रखना या कोई धार्मिक कर्तव्य को पूरा नहीं करना क्रूरता नहीं है और यह वैवाहिक संबंध खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की तलाक अर्जी को स्वीकार किए जाने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए केस के दूसरे तथ्यों को ध्यान में रखकर माना कि पत्नी के मन में पति और वैवाहिक संबंध के लिए कोई सम्मान नहीं था.
जिम्मेदारी पूरी करने में नहीं थी पति की दिलचस्पी- पत्नी
महिला ने दिल्ली की फैमिली कोर्ट के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. दोनों की शादी साल 2009 में हुई थी. दोनों की एक बेटी है, जिसका जन्म 2011 में हुआ. इस मामले में पति ने कहा कि शादी के बाद से ही पत्नी का व्यवहार सामान्य नहीं था. उसकी वैवाहिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में कोई दिलचस्पी भी नहीं थी.
पति ने कहा- फोन रिचार्ज नहीं कराने से नाराज हो गई थी पत्नी
इस मामले में तलाक के कई अन्य आधार के साथ पति ने यह भी कहा कि साल 2009 में करवा चौथ के दौरान पत्नी ने व्रत नहीं रखा था. फोन रिचार्ज नहीं करवाने की वजह से पत्नी नाराज हो गई और उसने व्रत नहीं रखने का फैसला किया था. पति ने यह भी आरोप लगाया कि अप्रैल में उसे स्लिप डिस्क की समस्या हो गई थी. उस वक्त पत्नी ने ध्यान रखने की बजाय अपने सिर से सिंदूर, हाथ से चूड़ियां हटाकर सफेद सूट पहन लिया था. इसके साथ ही उसने खुद को विधवा घोषित कर दिया था.