अरविंद केजरीवाल ने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के आरोपों का जवाब दिया है. केजरीवाल ने ट्वीट के जरिए लिखा है, ‘पूज्य श्री श्री रवि शंकरजी मेरे प्रति आपकी भावनाओं ने मुझे गंभीर रूप से चोट पहुंचाई है. मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि मैं आपको यह यकीन दिलाने में कामयाब हो जाऊंगा कि मैं सिर्फ देश के लिए काम कर रहा हूं और मेरा कोई अपना एजेंडा नहीं है.’
केजरीवाल ने लगातार चार ट्वीट के जरिए अपना मैसेज दिया. उन्होंने लिखा, ‘मैं आपका बहुत सम्मान करता हूं और करता रहूंगा. मैं उम्मीद करता हूं कि मेरे खिलाफ आपकी दुर्भावनाओं को दूर करने में मैं किसी रोज जरूर सक्षम हो जाऊंगा.’
...I have very deep respect for u and will continue to respect u always.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) April 4, 2014
..I sincerely hope that some day, i will be able to remove all ill feelings that u have against me....
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) April 4, 2014
....I pray to God that some day I will be able to convince u that i am working only for the country and have no selfish motives.....
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) April 4, 2014
Pujya Guruji Sri Sri Ravi Shankar Ji. I am deeply hurt that u have written such strong sentiments against me......
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) April 4, 2014
श्री श्री रविशंकर ने अपने एक लेख के जरिए लिखा कि दिल्ली में जो कुछ भी हुआ उससे केजरीवाल का छुपा एजेंडा सबके सामने आ गया है.
पढ़ें श्री श्री रविशंकर ने क्या लिखाः
जब आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति के पटल पर उभड़ी तो लोगों को लगा कि युवा और सक्रिय नेता देश की व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में काम करना चाहते हैं.
हालांकि इसकी शुरुआत गैरराजनीतिक आंदोलन से हुई थी. मैं अरविंद केजरीवाल से एक बिंदु पर सहमत हूं कि राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार की सफाई के लिए राजनीति में घुसना पड़ेगा. इसी कारण, मैं हमेशा नक्सलियों को बुलेट छोड़ बैलेट की ओर जाने की वकालत करता रहा हूं. मैं यह देख कर खुश हुआ कि झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कई युवा लोगों ने भाग लिया.
आज कि राजनीति में आम आदमी के लिए इन चुनावों में हिस्सा लेने का मतलब केवल वोट डालने तक सीमित रह गया है. इस नई पार्टी के गठन ने उन लाखों लोगों के मन में यह आशा जगा दी जो भ्रष्टाचार और राजनीति में अपराधियों के बोलबाले से परेशान हैं.
उन कई लोगों ने ‘आप’ की सदस्यता ली जो बेहतर भारत देखना चाहते हैं. इस पार्टी ने लोगों से सीधा संपर्क किया और दिल्ली विधानसभा चुनाव में चौंकाने वाला रिजल्ट दिया. बाद में ‘आप’ ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार का गठन किया. लोगों को यह आशा थी कि नई सरकार भ्रष्ट्र नेताओं पर कार्रवाई करेगी.
अगर ‘आप’ कि यह सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने के बाद गिरती तो इसकी साख और शुद्धता और बढ़ जाती. लेकिन पार्टी को इस्तीफा देकर दिल्ली छोड़ देश की राजनीति में उतरने का गलत सुझाव दिया गया.
ऐसा कर केजरीवाल ने यह दिखा दिया कि वो अन्य राजनेताओं से अलग नहीं है, बल्कि उनका छुपा हुआ राजनीतिक एजेंडा सबसे सामने आ गया. सस्ती लोकप्रियता, स्वविरोध, अतिमहत्वकांक्षा और तानाशाही ने ‘आप’ की सकारात्मक छवि को मैला कर दिया और तुरंत ही कई बड़े नाम भ्रम मुक्त हो कर पार्टी से अलग हो गए.
अब केजरीवाल कहते हैं कि वो इस चुनाव में खंडित जनादेश से संतुष्ट हैं और अगले दो सालों में मध्यावधि चुनाव होने की बात कर रहे हैं. यह देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिहाज से उनका बहुत ही संवेदनहीन रवैया दर्शाता है.
वो सिर्फ चार दिनों के लिए गुजरात गए और बिना सिर पैर वहां के विकास की आलोचना करने लगे.
मैंने गुजरात के चप्पे-चप्पे की खाक छानी है. 1990 और 2000 के शुरुआती सालों तक सौराष्ट्र में कोई पेड़ का दिखना तक दुर्लभ था. यहां सूखा इस कदर हावी था कि लोगों को अकसर अपने मवेशियों को बेचना पड़ता था. लेकिन आज यहां हरियाली है. तब यहां बिजली भी बड़ी मुश्किल से दिन के दो घंटे ही उपलब्ध होती थी लेकिन आज यहां के लगभग सभी गांवों में बिजली और पानी की सुविधा मौजूद है और प्रति व्यक्ति आय में भी काफी इजाफा हुआ है.
हालांकि गुजरात 100 फीसदी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है लेकिन मुझे यह कहते हुए कतई संकोच नहीं है कि यह उस स्थिति से बहुत बेहतर है जैसा पहले हुआ करता था. अपने आंकड़ों के साथ ईमानदारी बरतने वाले बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी पर केजरीवाल ने फिल्माना अंदाज में आरोप लगाए.
अगर ‘आप’ को लोगों ने देश की राजनीति के लिए चुन लिया और अगर वो यहां भी वैसा ही करते हैं जैसा कि उन्होंने दिल्ली में किया है तो यह देश के लिए आपदा से कम नहीं होगा.
जब अर्थव्यवस्था के मामले में देश की हालत अच्छी नहीं है ऐसे में यह जोखिम मोल नहीं लिया जा सकता. हमें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए और विकास को बढ़ावा देने के लिए केंद्र में स्थिर सरकार की जरूरत है.
देश की राजनीति में कूदने की हड़बड़ी में ‘आप’ ने उन सिद्धांतों को ताक पर रख दिया जिसकी वजह से उसका जन्म हुआ. ‘आप’ को पहले दिल्ली की राजनीति में खुद को साबित करना चाहिए था फिर देश के दूसरे हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने पर जोर देना चाहिए था. उसे गांवों में जाना चाहिए था, पंचायत और नगरपालिका चुनाव लड़ना चाहिए था. उसे शासन के लिए अपने कैडर को मजबूत बनाने पर काम करना चाहिए था. इससे दूसरी राजनीतिक पार्टियों को अपनी कार्यनीति पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता. इस प्रकार एक मजबूत नींव से यह पार्टी देश के लिए एक वरदान साबित होती.
लेकिन इतने सारे विरोधाभासों से चलते ‘आप’ ने अपने राजनीतिक सुधार के एजेंडे को गंवा दिया है. केजरीवाल के हाल की हरकतों से कभी उनके कट्टर सर्मथक रहे लोगों में भी रोष है. वो देश को एक विकल्प देने आए थे, लेकिन उन्होंने देश को विकल्पहीन कर दिया.