बिजली में वो ताकत है, जो सिर्फ आप का घर ही रोशन नहीं करती, बल्कि चुनावों में सरकारें भी बदल देती है. हालिया दिल्ली चुनाव इसका बड़ा उदाहरण है. अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सस्ती बिजली का वादा कर सत्ता में तो पहुंचे हैं, लेकिन सवाल ये है कि बिजली आएगी कहां से. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरविंद केजरीवाल पर हमले चुनाव बाद भी नहीं रुके और देश के पहले अक्षय ऊर्जा कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने हमला बोलते हुए फिर कहा कि जिनके पास बिजली नहीं है, वो सस्ती बिजली देने का दावा करते हैं.
इसी के मद्देनजर आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली के लिए पांच सूत्री एजेंडा बनाया है.
1. घर में लगने वाली सोलर यूनिट पर सब्सिडी देना.
2. बैट्री और सोलर उपकरण पर टैक्स कम करना.
3. झुग्गियों और कम आय वाले घरों को सोलर ऊर्जा की प्राथमिकता सूची में रखना.
4. कुल बिजली जरूरत का कम से कम 20फीसदी सोलर ऊर्जा उत्पादन करना.
5. योजना तैयार करना ताकि लोग सोलर बिजली उत्पादन कर उसे बेच सकें.
ऐसा नहीं है कि सोलर आने से ग्रिड बिजली पर निर्भरता कम होगी और सरकार का सिरदर्द घटेगा. बल्कि सोलर दिल्लीवालों के लिए सौगात साबित हो सकती है. आपकी बिजली के कुल खर्च में एक तिहाई की कमी हो सकती है. आमतौर पर सोलर एनर्जी के खिलाफ पहला तर्क ये दिया जाता है कि दिल्ली में इसके प्लांट लगाने लायक जमीन ही मौजूद नहीं. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि केजरीवाल सरकार चाहे तो जमीन की कमी नहीं होगी. दिल्ली के पास बड़ी संख्या में ऐसी बिल्डिंग हैं जहां बड़े प्लांट लगाए जा सकते हैं .दिल्ली में ही सोलर बिजली उत्पादन होगा तो ट्रांसमिशन घाटे का भी सवाल नहीं पैदा होगा.
DERC नेट मीटरिंग योजना पर काम कर चुकी है. यानी अब अगर सरकार आपके घर सोलर पैनल लगाती है तो खपत से ज्यादा बिजली पैदा होने पर वो बिजली वापस ग्रिड में चली जाएगी और उसका पैसा भी आपके बिल में माइनस हो जाएगा यानी आम के आम, और गुठलियों के दाम.
सोलर पावर को रणनीतिक रूप से दिल्ली में लागू करने में सबसे बड़ा चैलेंज इसका मंहगा होना है. जाहिर है, सब्सिडी इस पहल में बड़ी जरूरत है और सब्सिडी बिजली और पानी के बाद फिलहाल केजरीवाल सरकार का सबसे बड़ा सिरदर्द है.