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ख्याला में सरेआम खाप वाली सोच का खूनी खेल, दिल्ली वाले तमाशबीन बनना कब छोड़ेंगे?

23 साल के अंकित पर मजहब की बेड़ियों ने उसकी जिंदगी पर मौत का शिकंजा कस दिया, उसे गैर मजहब की लड़की से प्यार करने की सजा दे दी गई.

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बिंदास लड़का था अंकित सक्सेना
बिंदास लड़का था अंकित सक्सेना

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जिस मोहब्बत की उसने आरजू की थी, जिस मोहब्बत से वो अपनी जिंदगी रोशन करना चाहता था, जो उसके गीतों में धड़कता था. जो उसके ख्वाबों में खनकता था. वही मोहब्बत उसकी मौत का पैगाम बन गई. दिल्ली के ख्याला में जो हुआ उसे चाहे आप हॉरर किलिंग कहेंगे, ऑनर किलिंग कहे या लव जेहाद कह लें. नाम चाहे जो दे दीजिए लेकिन हकीकत में ये एक सोच है जो दूसरे मजहब से मोहब्बत को पाप समझकर खत्म करने पर तुल जाती है.

गैर मजहब से प्यार की सजा

23 साल के अंकित पर मजहब की बेड़ियों ने उसकी जिंदगी पर मौत का शिकंजा कस दिया, उसे गैर मजहब की लड़की से प्यार करने की सजा दे दी गई. उसे दिल्ली में बीच सडक पर, तमाशबीन भीड़ के बीच मार डाला गया. अब ना तो अंकित रहा, ना उसकी मोहब्बत रही. बस मजहबी चादर ओढ़ने वाले चंद शैतान हैं और वो मां-बाप हैं जिसके सामने उनके बेटे को सजा-ए-मोहब्बत दी गई.

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घर का एकलौता चिराग था अंकित

अंकित की मां की आह अब कभी खत्म नहीं होने वाली है. इकलौता बेटा था अंकित. ना दूसरा भाई ना दूसरी बहन. अपनी मां से बेपनाह प्यार करने वाला बेटा अपने पिता और परिवार की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने की बात करता था. सोचकर आपकी रूह कांप जाएगी कि जवान बेटे की जिंदगी हाथों से फिसलती देखने वाली इस मां पर इस वक्त क्या बीत रही होगी. और दिल के मरीज इस पिता के दिल पर क्या बीत रहा होगा जिसने मौत को परिंदे की तरह पलक झपकते बेटी की जिंदगी झपटते देखा.

पश्चिमी दिल्ली के ख्याला में गुरुवार की रात की ये खूनी वारदात हत्या का एक मामला भर नहीं है, हत्या हुई एक मोहब्बत की, एक मां की ममता की, और उस पिता की उम्मीदों की. लेकिन ये उससे कहीं ज्यादा उस मजहब की भी हत्या है जिसे अकित के हत्यारों ने अपनी दकियानुसी सोच से दागदार कर दिया.

परिवार की हरकत से बेटी खौफ में

जरा सोचिए, बेटी को अपने धर्म में ब्याहने के लिए मां-बाप-मामा-भाई सबने मिलकर हत्या का अपराध किया. वो बेटी अब अपने घर की बजाय सेल्टर हाउस में रहना चाहती है. मोहब्बत का गला काटने वाली सोच के खिलाफ वो खुलकर खड़ी हो गई है. लेकिन लानत है उस भीड़ पर जो एक नौजवान को मरते देखती रही और मदद का हाथ बढाने की हिम्मत नहीं कर सकी.

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दरअसल ख्याला किसी बीहड़ में नहीं, किसी रेगिस्तान में नहीं, किसी सीरिया या अफगानिस्तान में नहीं. ख्याला दिल्ली में है. जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी है और जहां का संविधान धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देता है. उसी दिल्ली में गैर मजहब की लड़की से मोहब्बत करने पर एक लड़के की हत्या हो जाती है.

अंकित के पिता का बड़ा आरोप

अलग मज़हब के लड़के से प्यार करने पर लड़की के घरवाले बेहद नाराज़ थे. इसी नाराज़गी में वो अंकित के घर पहुंचे और बहस शुरू हो गई. बहस बढ़कर मारपीट तक जा पहुंची, लड़की की मां, मामा, पिता और नाबालिग भाई ने अंकित की मां तक से हाथापाई की. अंकित के पिता बताते हैं कि हत्यारे हत्या की पूरी तैयारी करके आए थे.

अंकित के माता-पिता का कहना है कि अगर हत्या की वजह दूसरे मजहब की लड़की से मोहब्बत थी तो इन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं, पिता का सवाल है-अगर रंजिश मोहब्बत को लेकर ही थी तो लडकी के घर वाले उनके पास आते, उनसे बात करते.  

बिंदास नौजवान था अंकित

अंकित 23 साल का बिंदास नौजवान था. अपनी जिंदगी अपने अंदाज में जी रहा था. फोटोग्राफी करता था, गिटार बजाता था. एक्टिंग और मॉडलिंग का शौकीन था. तमाम बड़े एक्टर और क्रिकेटरों के साथ उसने तस्वीरें खिंचवा रखी थी. आवारा ब्वॉय नाम से उसका फेसबुक पेज था. लेकिन वो दूसरे मजहब की लड़की से मोहब्बत के खतरे से अंजान था और इससे भी कि जिस दिन उसकी जान पर बन आएगी, लोग दूर से उसकी बर्बादी का तमाशा देखते रहेंगे.

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अंकित के हत्या के आरोपियों को पुलिस ने फिलहाल दबोच लिया है. आरोपियों के घर पर ताले लटक रहे हैं. लेकिन आप और हम भी जानते हैं कि इंसाफ होने तक अंकित के घर वालों को क्या-क्या झेलना पड़ सकता है. अंकित को मारने वाले मजहब के मुरीद नहीं हो सकते, वो सिर्फ हत्यारे हैं. इनके लिए मजहब एक मुखौटा है.

लड़की के घर वालों ने उस सोच की हत्या कर दी जो मोहब्बत को मजहब की बुनियाद मानती है. मोहब्बत के बिना मजहब क्या है. एक खोखली चीज, एक तंग नजरिया. एक अंधी दृष्टि या फिर पागलपन. अंकित की हत्या ने फिर साबित कर दिया. मजहब को ठीक से ना समझो तो वो महामारी बन जाता है.

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