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दिल्ली पुलिसकर्मी के परिजन को 32 लाख रुपये का मुआवजा

सड़क पर बेहद गलत तरीके से चलाई जा रही मोटरसाइकिल की चपेट में आकर हुयी दुर्घटना में मारे गए दिल्ली पुलिस के सिपाही के परिजनों को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने लगभग 32 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

सड़क पर बेहद गलत तरीके से चलाई जा रही मोटरसाइकिल की चपेट में आकर हुयी दुर्घटना में मारे गए दिल्ली पुलिस के सिपाही के परिजनों को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने लगभग 32 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.

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न्यायाधिकरण ने इफको-टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को निर्देश दिया कि वह 28 वर्षीय मृतक राकेश शौकीन की पत्नी, नाबालिग बेटे और बेटी को 31,90,144 रुपये का मुआवजा दे. इस दुर्घटना में शामिल मोटरसाइकिल का बीमा इसी कंपनी ने किया था.

न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी दीपक जगोत्रा ने बीमा कंपनी के वकील के उन तर्कों को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि टक्कर सामने से हुई. दोनों वाहनों पर इसका असर एक जैसा पड़ा और इसलिए मृतक की ओर से भी लापरवाही बरती गई थी.

न्यायाधिकरण ने कहा, ‘बीमा कंपनी के वकील द्वारा दी गई दलीलों में कोई दम नहीं है क्योंकि प्रत्यक्षदर्शी सुरेंद्र कुमार ने जिरह के दौरान यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि हमलावर वाहन ने मृतक के वाहन को एक ओर से टक्कर मारी.’

न्यायाधिकरण ने कहा, ‘दुर्घटना स्थल के नक्शे से भी यह पता नहीं चलता है कि यह आमने सामने से हुई टक्कर थी. चूंकि प्रत्यक्षदर्शी ने कहा है कि हमलावर वाहन ने मृतक को एक ओर से मारा, तो दुर्घटना जिस तरीके से हुई, उसपर संदेह नहीं किया जा सकता. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि टक्कर सामने से हुई. इसलिए (मृतक की ओर से) सहायक लापरवाही का सवाल ही नहीं उठता.’

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शौकीन की पत्नी ने अपनी याचिका में कहा था कि दुर्घटना 30 जून 2009 को उस समय हुई, जब उनका पति बाराखंभा रोड से अपनी मोटरसाइकिल से आ रहा था. जब वह दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के छावला गांव पहुंचा, तो तेज गति और बेतरतीब से चलाई जा रही हमलावर बाइक ने लापरवाही के साथ गलत दिशा से आते हुए शौकीन की मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी. याचिका में कहा गया कि प्रत्यक्षदर्शी सुरेंद्र कुमार पीड़ित को अपने घर ले गया और बाद में शौकीन की मौत हो गई. शौकीन दिल्ली पुलिस में कॉन्सटेबल के रूप में 15 हजार रुपए कमाता था. हमलावर मोटरसाइकिल का चालक और मालिक न्यायाधिकरण के समक्ष पेश नहीं हुए और न्यायाधिकरण ने उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की.

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