भारत का लोकतंत्र अगर वाकई में कई भला चाहने वाले लोगों के तजुर्बे का फायदा उठाना चाहता है तो इसे एक नागरिक संस्कृति और कानूनबद्ध माहौल की जरूरत है (ये कहते हुए मैं उदार हूं). यहां चुनावों के साथ मेरी मुलाकात का जिक्र है, मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवनकाल में यह बदल जाएगा. मुझे इस बात की राहत है कि मेरे लिए जिस तरह के अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया, उनको सुनने के लिए मेरे माता-पिता जिंदा नहीं हैं.
मैं चुनावी राजनीति में सत्ता या शक्ति के लिए नहीं बल्कि एक ऐसे शहर की सेवा के लिए आई जो 40 सालों से मेरा घर है, एक ऐसा शहर जहां मैंने अलग-2 पदों पर रहते हुए सेवा की है.
मैं कई चुनौतियों से गुजरी हूं - दंगे, विरोध प्रदर्शन, राजनीतिक उठा-पटक, वीआईपी जनों की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन, अच्छा और बुरा हर अनुभव.
जब मैं अपराध के मोर्चे पर थी तो दिल्ली पर बाहर से आतंक का हमला हुआ और मैं उससे गुजरी हूं. वर्दी पहने और गूंजते वायरलेस के साथ जो किसी भी समय सड़क पर बाहर आने का आदेश दे देता था, उन बरसों मैं एक झपकी तक के लिए तरसी हूं.
मैंने ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को बलात्कार से बचाकर अपराध खत्म किया, अंधेरी रातों में गांव में गश्ती के लिए मेरे साथ पुलिसकर्मी नहीं होते थे. इसके लिए मैंने ग्रामीण युवाओं को गश्त में लगाया. मैं स्वयं सप्ताह में 5 रात खुद बाहर रहती थी.
मैंने एशियाई खेलों में हजारों छात्रों के साथ यातायात की व्यवस्था देखी वो भी तब, जब मेरे कुछ सीनियर लोग मुझे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए एक कोर्स करने के लिए जापान भेजना चाहते थे. उनमें से कुछ के लिए ट्रैफिक-व्यवस्था कमाई का जरिया थी.
एक और बार जब एक जिले में शराब की तस्करी जोरों पर थी मैंने शराब तस्करी का सफाया किया और प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया ....या फिर कूड़ा-बीनने वाले बच्चों को स्कूल भेजा....या पुलिस स्टेशनों से नशा-मुक्ति केंद्र खोले जो पहले कभी सुना भी नहीं गया होगा.
यह सब आजीवन अभियान बन गया था और आगे भी बना रहेगा... मैंने यह सब किसी बड़ाई के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया कि सेवा और स्थितियां ऐसा करने की मांग करती थीं.
मैं चुनावी राजनीति में इसलिए आई कि मेरे पास जो कुछ अभी भी था वो मैं अपने शहर को देना चाहती थी. दिल्ली को जिस चीज की जरूरत है उसके लिए मैं चाहती थी कि शहर को एक स्थिर सरकार मिले जो केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करे.
मैं यह भी चाहती थी कि मैं इस अपराधबोध के साथ ना मरूं कि मैं हमेशा सिर्फ टीका-टिप्पणी ही करती रही और कभी भी चुनावी राजनीति की परीक्षा देने की हिम्मत नहीं दिखा पाई. मैं परीक्षा में फेल हो गई और मैं अपने फैसले की पूरी जिम्मेदारी लेती हूं. लेकिन मेरी अंतरात्मा फेल नहीं हुई है.
इस तरह कि परीक्षा की घड़ियों में चुनौतियों अकेली नहीं आती, ढेर सारी और चीज़ें भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और हर एक ने निभाई भी. मैं कुछ और नहीं कहना चाहती. इतिहास आखिर तक विश्लेषण करता रहेगा.
चुनावों के प्रश्न पर मैं कहना चाहूंगी कि हमें प्रचार अभियान की समीक्षा करने की आवश्यकता है. प्रचार में पूरा शहर या राज्य ठहर सा जाता है, क्या ये होना चाहिए?
सड़कें अव्यवस्थित हो जाती हैं, काम-धाम रुक जाता है. सब कुछ शोर भरा हो जाता है और कई बार अशिष्ट, झूठा, पक्षपाती, भ्रष्ट, नाकारा, सारे कानून तोड़ने वाला और गलत संदेश देने वाला.
यह बराबरी का मुकाबला नहीं है. यह हर तरह से धन और बल का मुकाबला है.
हमें इनका समाधान सोचना होगा, मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवनकाल में ही मैं ये देखूंगी.
लोग चाहते हैं कि जन-सेवाओं दी जाएं. लोग सत्यनिष्ठा, विश्वास और पेशेवर समपर्ण चाहते हैं. लोग लागू करने लायक योजनाएं चाहते हैं. लेकिन लोगों को फोकट में भी चाहिए.. जितना ज्यादा फोकट में देंगे उतना ज्यादा पाएंगे.
वो नहीं मानते कि ज़िंदगी में यूं ही कुछ नहीं मिलता है. अगर आप एक से छीनकर दूसरे को देंगे तो सबसे छिन जाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.
साथ ही पूरा प्रचार-अभियान कानूनी, पारदर्शी, तथ्यपरक, साक्ष्य पर आधारित, सभ्य, संगठित, और ज्यादा तकनीकी, निष्पक्ष और तटस्थ होना चाहिए.
धार्मिक सभाओं द्वारा लोगों को 'अपील' की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और इसे कानून का उल्लंघन मानकर इस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए.
समय आ गया है कि हर जनसेवक देश के शासन में भागीदार बने. बिजली-पानी-नौकरी-यातायात-शिक्षक-डॉक्टर हर चीज के लिए लोगों की आवश्यकताएं देश जो दे सकता है उससे कहीं आगे निकल गई हैं. महिला-सुरक्षा के बारे में भूल जाओ...भगवान ही जानते हैं कि आखिरी कब तक महिलाएं भुगतती रहेंगी.
आखिर में, जिन लोगों ने मुझमें विश्वास व्यक्त किया उन सबको धन्यवाद देना चाहूंगी.
और साथ ही उनको भी जिन्होंने मुझे हरसंभव अपशब्द से संबोधित किया.
मुझे राहत होती है कि मेरे मां-बाप यह सब देखने के लिए जिंदा नहीं हैं.
-हिंदी अनुवाद, जैसा किरण बेदी ने अपने ब्लॉग पर लिखा है.