दिल्ली के सिंघू बॉर्डर से लेकर टीकरी बॉर्डर और यहां तक कि गाजीपुर बॉर्डर पर भी किसानों का जमावड़ा अब भी है. कभी टेंट बढ़ते तो कभी घटते हैं, कभी ट्रैक्टरों की संख्या बढ़ जाती तो कभी घट जाती है, किसानों की तादाद भी घटती-बढ़ती रहती है, आंदोलन की रूपरेखा भी पहले दिन से 100वें दिन तक काफी कुछ बदल गई, लेकिन एक बात जो नहीं बदली, वो है किसानों का रुख, जो अब भी कहते हैं कि जब तक उनकी मांगें मानी नहीं जाती, तब तक वो बॉर्डर खाली नहीं करेंगे.
उतार-चढ़ाव से भरे इस आंदोलन के लिए कई तारीखें इतिहास में दर्ज हो गई हैं. जब आंदोलन खत्म होगा तो देश के इतिहास में लगातार चले आंदोलनों में सबसे लंबे समय तक चलने वालों में इसकी गिनती होनी भी तय है. इस आंदोलन की कुछ अहम तारीखें भी रहीं. किसान आंदोलन की कुछ ऐसी ही तारीखों के जरिए हम अब तक के आंदोलन की तस्वीर ताजा कर रहे हैं.
पिछले साल 26 नवंबर को किसानों का दिल्ली कूच
पंजाब और हरियाणा से निकले किसानों के जत्थे दिल्ली की तरफ कूच कर गए. पंजाब-हरियाणा की सीमा पर जमकर बवाल हुआ. शंभू बॉर्डर पर टकराव के बावजूद किसान आगे बढ़ते चले आए. रात में किसान तमाम मुश्किलों और हरियाणा पुलिस की चुनौतियों का सामना करते हुए सिंघु बॉर्डर पहुंचे. जहां उन्हें दिल्ली पुलिस ने रोक दिया. “दिल्ली चलो” का अभियान दिल्ली की सीमा के भीतर नहीं आ पाया. तय हुआ कि दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी जाए, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया.
सरकार-किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत
1 दिसंबर से सरकार और किसानों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ. पहले दौर की बैठक के बाद एक के बाद एक 11 दौर की बातचीत सरकार और तकरीबन 40 किसान संगठनों के नेताओं के बीच हुई. अलग-अलग प्रस्तावों के बावजूद, किसान तीन कानून की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग पर अड़े रहे. सरकार ने कानून को लगभग डेढ़ साल तक स्थगित करने तक का प्रस्ताव भी दिया, जिसे किसानों ने सर्वसम्मति से ठुकरा दिया.
तीन घंटे का भारत बंद
8 दिसंबर को किसान संगठनों ने तीन घंटे का भारत बंद किया. कई जगहों पर ट्रैफिक रोका गया, बाज़ारों को भी बंद रखने का किसान संगठनों ने आह्वान किया, जिसका असर कुछ राज्यों के अलावा देश में कम हीं देखने को मिला.
किसानों की तीनों बॉर्डरों से ट्रैक्टर रैली
किसानों ने सबसे पहले सड़कों पर अपना दम तब दिखाया जब तीन बॉर्डरों से किसान संगठनों की ट्रैक्टर रैली निकली. इस ट्रैक्टर रैली ने पहली बार ये दिखाया कि कैसे किसान एक बड़ी रैली आयोजित कर सकते हैं. हालांकि ये ट्रैक्टर रैली दिल्ली की सीमा के बाहर ही आयोजित की गई, लेकिन कतारों में इकट्ठा हुए ट्रैक्टरों ने एकजुटता का संदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा किसान आंदोलन
16 दिसंबर को बॉर्डर बंद होने वाली दिक्कतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की. सुप्रीम कोर्ट ने बॉर्डर खाली कराने को लेकर कोई आदेश देने से मना कर दिया, लेकिन साथ ही केंद्र को सुझाव दिया कि कानूनों का अमल स्थगित करके एक कमेटी बनाई जा सकती है, जो किसानों की मांगों पर ध्यान दे. जब कई दौर की बातचीत के बाद भी किसान संगठन और सरकार गतिरोध खत्म करने में विफल रहे तो 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने तीन कानूनों को अमल पर रोक लगा दी. साथ ही एक चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया, जिसे दो महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया, लेकिन कमेटी से जुड़े किसान यूनियन के सदस्य ने अपना नाम वापस ले लिया.
26 जनवरी का बवाल
किसान यूनियन और पुलिस की बीच बैठकों के दौर के बाद गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर रैली का रूट तय किया गया, लेकिन ट्रैक्टर रैली निर्धारित समय से पहले ही दिल्ली की सीमा में प्रवेश कर गई. तय रूट के अलावा भी किसानों के कई गुटों ने आईटीओ और लाल किले की ओर कूच कर दिया. सड़कों पर पुलिस और किसानों के बीच टकराव हुआ, हिंसा हुई और यहां तक कि लाल किले की प्रचीर पर किसानों का एक जत्था पहुंचा और वहां सिक्खों के धार्मिक झंडे को फहराया गया.
28 जनवरी को टिकैत की इमोशनल अपील
26 जनवरी की घटना के बाद जब ऐसा लग रहा था कि आंदोलन खत्म होने की कगार पर आ गया है. पुलिस और सुरक्षा बलों ने 28 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर खाली कराने की तैयारी भी कर ली. पुलिस आंदोलन के मंच पर किसान नेता राकेश टिकैत को गिरप्तार करने भी पहुंची, लेकिन तभी टिकैत के आंसुओं ने पूरे प्रदर्शन को नई दिशा दे दी. आधी रात को सुरक्षा बलों को वापस लौटना पड़ा और आंदोलन का नया दौर शुरू हुआ.
पंचायत और महापंचायतों का दौर
आंदोलन के इस चरण में पंचायत और महापंचायतों का दौर शुरू हुआ. बॉर्डर के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में पंचायत और महपंचायत का दौर जारी है. राकेश टिकैत के अलावा कई महत्वपूर्ण किसान नेता इनकी अगुवाई कर रहे हैं. किसान नेताओं ने चुनावी राज्यों में भी पंचायत करने का ऐलान किया है.