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खत्म नहीं हो रही मजदूर और मालिकों का दुविधा!

मजदूर वर्ग बस जैसे तैसे ही अपना गुज़ारा चला रहा हैं क्योंकि इनका काम 60 फ़ीसदी तक कम हो चूका हैं. नोबत ये हैं कि मजदूर एक दिन काम करते हैं और तीन दिन खाली बैठते है,

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मजदूरों को नोटबंदी से हो रही परेशानी
मजदूरों को नोटबंदी से हो रही परेशानी

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नोटबंदी ने हर आमो ख़ास को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित किया हैं, लेकिन अगर मजदूर वर्ग की बात करें तो उनपर नोटबंदी का खासा असर देखने को मिल रहा हैं. दिल्ली में ढुलाई करने वाले मजदूर जो रोजाना के 100 से 500 रुपये तक ही कमा पाते हैं कैश ना होने से परेशान हैं. मजदूरों को उनकी दिहाड़ी मिलने में भी लगातार दिक्कतें आ रही हैं. ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक धर्मेंद्र कपूर की माने तो बैंक से सिर्फ 50000 ही मिलते हैं जिसमे बस जैसे तैसे ही मजदूरों को मजदूरी देते हैं लिहाज़ा 50 प्रतिशत मजदूर काम छोड़कर जा चुके हैं.

मजदूर वर्ग बस जैसे तैसे ही अपना गुज़ारा चला रहा हैं क्योंकि इनका काम 60 फ़ीसदी तक कम हो चूका हैं. नोबत ये हैं कि मजदूर एक दिन काम करते हैं और तीन दिन खाली बैठते है, अगर कोई पेमेंट मिलती भी हैं तो पुराने नोटों की शक्ल में जिसके लिए लाइन में लगे तो पूरे दिन की मजदूरी चली जाती हैं. मजदूरों के लिये तो आगे कुआं और पीछे खाई जैसे हालात बन गए हैं. चेक से पेमेंट करने के लिए बैंक अकाउंट जैसी बेसिक सुविधायें के अभाव में ये मजदूर अपनी रोज़ सामने आये काम को भी इनकार करने को मजबूर हैं. कई बार मजदूर 500 की जगह 400 और 1000 की जगह 900 की मजदूरी लेकर काम करने को भी मजबूर हैं.

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नोटबंदी का खामियाज़ा कब तक इन गरीब मजदूरों को झेलना होगा इसका फिलहाल कोई जवाब नही हैं. क्योंकि चैक या अकाउंट से पेमेंट के लिए इन मजदूरों को शिक्षित करना और उन्हें इन सबका इस्तेमाल करने लायक बनाने में फिलहाल समय हैं.

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