इन फैक्ट्रियों के बीच ही इन मजदूरों की झुग्गियां है, यहां सैकड़ों मजदूर किसी तरह अपनी जिदंगी जी रहे है. छोटी-छोटी गलियां जहां से एक बार में एक शख्स ही गुज़र सकता है, घर ऐसे आपस में चिपके हुए है कि समझ ही नहीं आता किसका घर कौन सा है. सुरेश कि उम्र 50 साल के करीब है, पिछले 5 सालों से वो यहां काम कर रहे है मगर अब घर चलाने के लिये कर्ज पर पैसे लेने पड़ रहे है. सुरेश राम का कहना है कि वो कर्जा लेकर किसी तरह गुज़ारा कर रहै है, अब क्या करें. इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है.
इसके अलावा यहां कई लोग है जो कि नोटबंदी से खासे परेशान है. कई महिलाएं भी है जो अब घर चला रही है क्योंकि उनके पति के पास कोई काम नहीं है. इनमें से कई लोग ऐसे है जो कि अब पलायन की और रुख कर रहे है. ऐसे में अब नोट बंदी खत्म होने में सिर्फ चंद दिन ही बाकि है, ऐसे में इन लोगों को नहीं पता कि इन्हें रोजगार मिलेगा या नहीं. अगर नहीं मिला तो तो जो इंतजार कर रहै है कि सब ठीक होगा उन्हें भी मजबूरन दिल्ली से पलायन करना होगा.