शनिवार से दिल्ली के प्रगति मैदान में उस मेले की शुरुआत हो गई है जिसका इंतजार किताब प्रेमियों को साल भर रहता है. यानी पुस्तक मेला शुरू हो गया है और यह 17 जनवरी तक चलने वाला है. लेकिन जिस तरह पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, उस तरह मेले की धीमी शुरुआत काफी कुछ कह देती है. बेशक शनिवार को पहला दिन था लेकिन वीकेंड था और ऐसे में उम्मीद अच्छी-खासी संख्या पुस्तक प्रेमियों के आने की थी. लेकिन पुस्तक मेला सूना-सूना नजर आया.
हमेशा की तरह अंग्रेजी के बड़े प्रकाशकों के स्टॉल्स गुलजार थे तो वहीं हिंदी के स्टॉल्स बहुत ज्यादा हौसला बढ़ाने वाले नहीं थे. फिर छोटे प्रकाशकों का हाल तो दूर से ही नजर आ जाता था. देखने वालों की संख्या ज्यादा थी और खरीदार कम नजर आ रहे थे. बेशक दिल्ली में चल रहे पंद्रह दिन के प्रयोग का असर भी मेले पर साफ नजर आ रहा था. 9 तारीख थी यानी ऑड नंबर. इस दिन ऑड नंबर की गाड़ियां चलनी थीं, इसलिए मेले में पहुंचने वाले लोगों की संख्या काफी कम हो ही गई थी. मेले में मौजूद एक प्रकाशन ने इस बात को माना भी.
वहीं किताबों के एक स्टॉल के पास खड़े एक शख्स से पूछने पर उसने बताया, 'पहले दिन उतनी भीड़ नहीं आती है लेकिन इस बार तो उम्मीद से काफी कम सुगबुगाहट है. शायद ऑड-इवन का भी असर हो सकता है.' वैसे भी लगभग पौने छह बजे जब मैं पुस्तक मेले से निकल रहा था तो अधिकतर प्रवेश द्वार पूरी तरह से सूने नजर आए. अंदर आने के लिए कोई नहीं था. सुरक्षाकर्मी खड़े-खड़े उकता रहे थे और पुस्तक प्रेमी पूरी तरह से नदारद थे. यह देखकर बहुत अच्छा नहीं लगा.
रविवार को ऑड-इवन का चक्कर भी नहीं है. ऐसे में प्रकाशकों को काफी उम्मीदें हैं क्योंकि बिना लोगों के पुस्तक मेले के कोई मायने नहीं हैं. वैसे भी सोमवार से कामकाजी दिन शुरू होंगे और ऑड-इवन भी लागू रहेगा. इसलिए इस बार सूनापन ज्यादा रह सकता है.