दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच हुकूमत को लेकर एक बार फिर टकराव के आसार हैं. दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर स्वाति मालीवाल की नियुक्ति का मामला निपटने के ठीक बाद अब सर्किल रेट को लेकर नया बवाल शुरू होने वाला है. LG ने सोमवार को सरकार के सर्किल रेट नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी है.
एलजी ने राजस्व विभाव को अपने एक आदेश में कहा है कि वह सरकार की ओर से 04 अगस्त को कृषि योग्य भूमि पर जारी सर्किल रेट नोटिफिकेशन को लागू नहीं करे. एलजी ने कहा कि वह इस मामले में अभी संवैधानिक सलाह ले रहे हैं और मामला जांच के अधीन है. ऐसे में अगले आदेश तक सर्किल रेट नोटिफिकेशन पर रोक लगाई जाए.
उपराज्यपाल की ओर से जारी आदेश की कॉपी मुख्यमंत्री कार्यालय, राजस्व मंत्री मनीष सिसोदिया के कार्यालय, मुख्य सचिव, ज्वॉइंट सेक्रेटरी और गृह मंत्रालय को भी भेजी गई है. आदेश में राजस्व विभाग से कहा गया है कि अगर इस ओर बिना उपराज्यपाल के आदेश के कोई कार्य किया जाता है तो सरकार, खरीदार और बेचने वाला सभी कानूनी जटिलताओं में फंस सकते हैं.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, प्रदेश की आम आदमी पार्टी की सरकार ने कृषि योग्य भूमि के सर्किल रेट तय करने से संबंधित फाइल बिना उपराज्यपाल जंग को भेजे ही राजस्व विभाग की ओर से इस ओर अधिसूचना जारी कर दी. सरकार के पास इस मामले में मजबूत दलील है. शीला दीक्षित सरकार के जमाने में भी स्टांप ड्यूटी को लेकर मुख्यमंत्री दीक्षित और तत्कालीन उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना के बीच मतभेद हुए थे.
खन्ना का मानना था कि शीला मंत्रिमंडल द्वारा तय किया गया सर्किल रेट ठीक नहीं है. वह उसमें परिवर्तन चाहते थे. बदले में दीक्षित ने केंद्र का दरवाजा खटखटा दिया था और उस वक्त तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने चुनी हुई सरकार का पक्ष लिया था.
अलग-अलग दलील
तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ने भी इस ओर केंद्र सरकार की राय का समर्थन किया था. दिल्ली की नई सरकार ने दिसंबर 2010 में केंद्र सरकार द्वारा दी गई उसी व्यवस्था के तहत नए सर्किल रेट की अधिसूचना बगैर उपराज्यपाल के स्वीकृति के जारी की है. हालांकि, राजस्व विभाग के अधिकारी इस दलील के साथ ऐसा करने से अब तक बचते रहे हैं कि मतभेद के बावजूद शीला दीक्षित सरकार ने संबंधित फाइल उपराज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजी थी, क्योंकि यह एक वित्तीय मामला है.
दूसरी ओर, सरकार यह मान रही है कि जब पांच साल पहले ही यह तय हो चुका है कि इस मामले में दिल्ली विधानसभा और मंत्रिमंडल की राय अहम होगी, तो फाइल को राजनिवास भेजे जाने का कोई तुक नहीं है.