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बैंक ने बिना शर्त दिया 6 हजार का लोन और बदल गई उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की जिंदगी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 29वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने जीवन से जुड़ी एक घटना का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि जब वे वकील बने तो उन्हें एक पुस्तकालय की जरूरत महसूस हुई. उन्होंने एक बैंक में 6000 रुपये के लोन के लिए अप्लाई किया.

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जगदीप धनखड़ (File Photo)
जगदीप धनखड़ (File Photo)

कई बार इस तरह के मौके आते हैं, जब छोटी सी मदद भी इंसान की जिंदगी बदलकर रख देती है. ऐसा ही एक वाकया वर्तमान में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ हुआ. उन्होंने एक बैंक से महज 6 हजार रुपए का लोन लिया, जिसके कारण आगे चलकर उनकी जिंदगी ही बदल गई.

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 29वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने अपने जीवन से जुड़ी एक घटना का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि जब वे वकील बने तो उन्हें एक पुस्तकालय की जरूरत महसूस हुई. उन्होंने एक बैंक में 6000 रुपये के लोन के लिए अप्लाई किया. उन्हें बैंक की तरफ से यह लोन मिल गया. इस लोन के कारण धनखड़ को अपना भविष्य संवारने में काफी मदद मिली. उन्होंने आगे कहा कि वे हमेशा उस व्यक्ति के आभारी रहेंगे, जिसने उनकी मदद की.

धनखड़ ने कार्यक्रम में मौजूद राज्य मानवाधिकार आयोग के अधिकारियों के साथ बातचीत की. ये अधिकारी देश के अलग-अलग हिस्सों से दिल्ली आए थे. उपराष्ट्रपति ने इस दौरान सबसे कमजोर लोगों के हितों की रक्षा में मदद करने के लिए मानवाधिकार आयोग के राष्ट्रीय और राज्य निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. 

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उप राष्ट्रपति ने भारत में स्टार्टअप बूम के पीछे मानवाधिकार संस्कृति को भी श्रेय दिया. उन्होंने एलपीजी कनेक्शन के वितरण के महत्व के बारे में भी बात की, जिसे उन्होंने देश भर में महिलाओं और कई घरों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रमुख कदम बताया. उन्होंने याद किया कि जब वे 1989 में सांसद बने, तो उनके पास एक साल में 50 एलपीजी कनेक्शन देने की क्षमता थी. 

उपराष्ट्रपति ने मीडिया से मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दों को सक्रिय रूप से उठाने का भी आग्रह किया और दावा किया कि एनएचआरसी की सलाह के तहत कवरेज देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए मीडिया को जिम्मेदार बनाता है.

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