पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और और उनके बेटे भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) सांसद वरुण गांधी ने दिवंगत कांग्रेस नेता संजय गांधी की पुण्यतिथि पर नई दिल्ली के शांति वन में उन्हें श्रद्धांजलि दी. इस दौरान उनके साथ पार्टी के कई अन्य नेता भी मौजूद रहे. संजय गांधी, फिरोज गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे.
भारतीय राजनीति में संजय गांधी की छवि एक दबंग नेता की है. संजय गांधी को इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था, लेकिन उनके निधन से देश की सियासी हवा पूरी तरह बदल गई. संजय गांधी 23 जून, 1980 को विमान हादसे का शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई. राजनीतिज्ञों का मानना था कि अगर संजय गांधी अगर जिंदा होते तो कांग्रेस में राजीव गांधी कभी एंट्री नहीं करते.
70 के दशक में संजय गांधी भारतीय राजनीतिक के धुरी के तौर देखे जाते हैं. भारत में घोषित आपातकाल में उनकी भूमिका बड़ी विवादास्पद रही है. युवाओं के बीच संजय गांधी काफी लोकप्रिय थे. दंबग व्यक्तित्व के बावजूद संजय गांधी अपनी सादगी और भाषण के लिए जाने जाते थे. कहा जाता है कि वे प्लेन में भी कोल्हापुरी चप्पल पहनते थे, जिसके लिए राजीव गांधी उन्हें बार-बार चेतावनी देते थे कि संजय उड़ान से पहले चप्पल नहीं बल्कि पायलट वाले जूते पहने. हालांकि संजय उनकी सलाह पर कोई ध्यान नहीं देते थे.
Visited Shanti Vana with my mother to pay tribute to my father Late Shri Sanjay Gandhi, on his 39th death anniversary. pic.twitter.com/QoORmOA66G
— Varun Gandhi (@varungandhi80) June 23, 2019
35 साल तक बनाए रखना चाहते थे इमरजेंसी
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर के मुताबिक, इमरजेंसी के बाद जब उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई तो उन्होंने इसपर उनसे बात की. तभी संजय गांधी ने उन्हें बताया था कि वह देश में कम से कम 35 साल तक आपातकाल को लागू रखना चाहते थे, लेकिन मां ने चुनाव करवा दिए.
नसबंदी अभियान के पक्षधर
वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता अपनी किताब 'द संजय स्टोरी' में लिखते हैं, ‘अगर संजय आबादी की इस रफ्तार पर जरा भी लगाम लगाने में सफल हो जाते तो यह एक असाधारण उपलब्धि होती. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा होती.’ लेकिन संजय का यह दांव बैक फायर कर गया और 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनने के पीछे नसबंदी के फैसले को भी एक बड़ी वजह माना गया.
हार के बाद बढ़ा कद
इमरजेंसी के बाद 1977 की हार ने एक नए संजय गांधी को जन्म दिया. राजनीति को ठेंगे पर रखने वाले संजय गांधी ने राजनीति का गुणा-भाग सीख लिया. कहते हैं कि चरण सिंह जैसे महत्वाकांक्षी नेता को प्रधानमंत्री बनवाकर जनता पार्टी को तुड़वा दिया. इस बीच, जनता में इंदिरा गांधी की इमेज चमकाने के लिए हर हथकंडे आजमाए. साथ ही कांग्रेस में अपना यंग ब्रिगेड तैयार किया. उसके बाद नतीजा ये निकला कि 1980 के जनवरी में ना सिर्फ कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई, बल्कि 8 राज्यों में भी कांग्रेस की सरकार बनी. तब कांग्रेस के टिकट पर 100 ऐसे युवकों ने चुनाव जीता, जो संजय के ढर्रे पर राजनीति करते थे.
महज 33 साल की उम्र में ही संजय गांधी सत्ता और सियासत की धुरी बन गई. उनके फैसलों के आगे कैबिनेट भी बौना पड़ जाता था. इंदिरा गांधी के निर्णायक फैसलों में संजय का दखल था और कहा जाता है कि देश पर इमरजेंसी थोपने में भी संजय की बड़ी भूमिका थी. इसके अलावा पेड़ लगाने का आंदोलन, जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी और भारत में चीजों के बनने पर जोर उनके कार्यक्रम का प्रमुख हिस्सा था. उन्होंने वर्कशॉप में मारुति का डिजाइन बनाने की कोशिश की. भारत में मारुति 800 की नींव संजय गांधी ने ही डाली थी.