मैरिटल रेप मामला एक बार फिर से चर्चा में है क्योंकि दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने बुधवार को इस मामले पर अलग-अलग फैसला किया. एक जज ने कहा- IPC की धारा 375 संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. लिहाजा पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर पति को सजा दी जानी चाहिए जबकि दूसरे जज ने कहा कि मैरिटल रेप अपराध नहीं है. हालांकि खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की इजाजत दे दी.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS-5) के लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 32 प्रतिशत महिलाओं ने शादी के बाद कभी शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, 18-49 वर्ष आयु वर्ग की 25 प्रतिशत विवाहित महिलाएं जिन्होंने शारीरिक या यौन हिंसा की रिपोर्ट का अनुभव किया है. इनमें से सात प्रतिशत को शरीर के विभिन्न अंगों पर चोट भी पहुंची है जबकि 6 प्रतिशत ऐसी हैं जिन लोगों को गहरी चोट लगी.
मैरिटल रेप के मामले में भारत में उस पुराने कानून को मान्यता है जिसमें पति और पत्नी के बीच अनिच्छा से यौन संपर्क को आपराधिक अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत महिला के साथ गैर-सहमति से संभोग करने वाले सभी प्रकार के यौन उत्पीड़न को बलात्कार के रूप में परिभाषित करता है.
क्या कहते हैं समाजिक कार्यकर्ता
कानून के मुताबिक, अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है तो पुरुष द्वारा पत्नी के साथ बनाया गया संबंध दुष्कर्म नहीं है. इस मामले में काम कर रहे समाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यह पुरुषों को रेप के अपराध से छूट प्रदान करता है और ये संविधान का उल्लंघन है.
2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा था कि 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना अपराध है और इसे रेप माना जा सकता है. कोर्ट ने कहा था कि इसके लिए नाबालिग पत्नी एक साल के अंदर शिकायत दर्ज करा सकती है.
2017 में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था...
2017 में ही केंद्र सरकार ने अपने एक हलफनामे में कहा था कि मैरिटल रेप को आपराधिक अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है.
2012 याचिकाओं के एक ग्रुप ने IPC की धारा 375 के तहत मैरिटल रेप को अपवाद (exception) मानने की संवैधानिकता को चुनौती दी थी. साल 2012 में दिल्ली गैंगरेप मामले के बाद गठित जस्टिस वर्मा समिति ने भी 2013 में अपनी रिपोर्ट में IPC की धारा 375 में अपवाद खंड (exception clause) को हटाने की सिफारिश की थी.
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