केंद्र सरकार के लिए परेशानी का सबब बने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता मसरत आलम की रिहाई कानूनी तौर पर सही है. जी हां, गृह मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक मसरत के दस्तावेजों की पड़ताल करने पर पता चला है कि उसे गैरकानूनी तरीके से जेल में 6 महीने तक रखा गया था. अधिकारियों ने कहा है कि मसरत की रिहाई कानूनी तौर पर पूरी तरह से सही है.
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया है कि हम सिर्फ इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि मसरत पिछले साल सितंबर के गैरकानूनी हिरासत को लेकर सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच जाए. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इस परिस्थित में जम्मू के डीएम को मामले में काफी कुछ बताना होगा.
अधिकारी ने कहा कि अदालत ने 2012 में आलम की याचिका के संबंध में एक आदेश दिया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर सरकार को कहा गया था कि वह मसरत को एक हफते का वक्त दे, जिससे वो अपनी तत्कालीन हिरासत को चुनौती दे सके. लेकिन इसी बीच जम्मू के डीएम ने 24 सितंबर 2014 को मसरत की हिरासत को बढ़ाने का आदेश दे दिया. इस हिरासत को राज्य सरकार ने कभी मंजूर नहीं किया था.
यानी मामले में मसरत को अपनी हिरासत को चुनौती देने का वक्त नहीं दिया गया. यह कोर्ट के आदेश के खिलाफ था. मसरत ने अब तक अपनी हिरासत के हर फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मसरत आलम के मामले में सबसे बड़ी गलती उमर सरकार की तरफ से की गई थी.