दिल्ली नगर निगम चुनाव के परिणाम आखिरकार आ गए. देश की राजधानी दिल्ली में अब डबल इंजन की सरकार बन गई है. सरकार से लेकर स्थानीय सरकार पर झाड़ू यानी आम आदमी पार्टी का कब्जा हो गया. साथ ही 15 साल से एमसीडी में काबिज बीजेपी के हाथ से सत्ता चली गई.
आम आदमी पार्टी ने 134 सीटें जीतकर सबको चौंका तो दिया है, लेकिन नतीजों से उसके लिए कुछ सबक भी हैं. जैसे सरकार में नंबर-टू मनीष सिसोदिया और जेल में बंद सत्येंद्र जैन की विधानसभा में आप का प्रदर्शन अप टू मार्क नहीं हैं. यानी आम आदमी पार्टी के लिए इस जीत में भी कई सबक छिपे हुए हैं. इसी के साथ एमसीडी में AAP के आ जाने के बाद भी बीजेपी, कांग्रेस को भी अपने हिसाब से जीत की खुशी दिख रही है.
क्यों खुश है बीजेपी और कांग्रेस?
सबसे पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी की. उसके लिए तो ये जीत है ही क्योंकि 134 सीट हासिल की. 15 साल से सत्ताधारी बीजेपी को एमसीडी से बाहर कर दिया और विधानसभा के बाद अब एमसीडी में भी केजरीवाल की पार्टी का शासन आ गया.
लेकिन बहुमत से दूर रही बीजेपी भी नतीजों में अपनी ही जीत देखती है. बीजेपी इस हिसाब से भी अपनी जीत मानती है क्योंकि केजरीवाल सरकार में करप्शन के आरोपी तीन मंत्रियों के इलाके में आम आदमी पार्टी को झटका लगा है. बीजेपी इस हिसाब से भी इसे अपने लिए जीत मानती है कि विधानसभा चुनाव के मुकाबले वोट शेयर केजरीवाल की पार्टी का गिरा है, लेकिन बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा है.
वहीं 15 साल तक कभी दिल्ली में लगातार शासन करने वाली कांग्रेस भले अब विधानसभा के बाद एमसीडी में झटका खाती आ रही है लेकिन उसे भी आज के नतीजों में जीत नजर आती है. दलील ये है कि विधानसभा के मुकाबले कांग्रेस का वोटर शेयर 8 फीसदी तक बढ़ा है. कांग्रेस जीत महसूस करने वाला ये चश्मा भी लगा रही है कि मुस्लिम वोट उसे एमसीडी में खूब मिला है। और एमसीडी की 8 माइनॉरिटी वाली सीट कांग्रेस ने जीती है.
नतीजों के बाद MCD की सत्ता से 15 साल बाद BJP की विदाई हो गई है लेकिन रिजल्ट केजरीवाल के चुनावी कैलकुलेशन और दिल्ली में हुए बीते 2 विधानसभा चुनावों में मिले जनादेश की कसौटी पर खरे नहीं उतरते.
MCD चुनाव पर केजरीवाल ने क्या दावा किया था?
चुनावी नतीजों से पहले केजरीवाल ने दावा किया था कि जैसे दिल्ली के विधानसभा चुनाव और फिर पंजाब में क्लीन स्वीप किया था, ठीक वैसे ही एमसीडी चुनाव में बीजेपी को 20 सीट पर रोक देंगे और आम आदमी पार्टी के खाते में 200 से ज्यादा सीटें आएगी. लेकिन चुनावी परिमाण के आकड़े बताते है कि बीजेपी और आप में कांटे की टक्कर हुई. मतलब मुकाबला एकतरफ नहीं था, जैसा विधानसभा चुनावों में दिखा था.
इस वजह से नतीजों का ये भी मतलब निकलता है कि जिस तरह दिल्ली में केजरीवाल के चेहरे पर आम आदमी पार्टी ने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कमाल किया, ठीक वैसा कमाल केजरीवाल के चेहरे पर निकाय चुनाव में नहीं हुआ. झाडू चला लेकिन एकतरफा जादू नहीं चला. ऐसा तब हुआ है जब दिल्ली में केजरीवाल की सरकार है, चुनाव में केजरीवाल का चेहरा था, जबकि BJP और कांग्रेस के पास दिल्ली में केजरीवाल को चुनौती देता कोई चेहरा नहीं था. इसी वजह से बीजेपी की तरफ से कई राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री प्रचार के लिए दिल्ली पहुंचे थे.
विधानसभा चुनाव के मुकाबले AAP का वोट शेयर घटा
दिल्ली की चुनावी हिस्ट्री बताती हैं कि यहां फिलहाल केजरीवाल का बोलबाला हैं. पिछले दो विधानसभा चुनावों में AAP का जलवा दिखा, लेकिन MCD में जैसी उम्मीद थी, वैसी अप्रत्याशित जीत नहीं मिली. भले ही आम आदमी पार्टी जीत गई, बीजेपी की सीट घट गई हों, लेकिन बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा है.
वोट शेयर की बात करें तो इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की झोली में 42 फीसदी लोगों ने मतदान किया, जो 2020 विधानसभा के वोट शेयर से करीब 12 फीसदी कम हैं. यानी विधानसभा चुनाव में 53.57% वोट वाली आम आदमी पार्टी को करीब 12 फीसदी वोट का लॉस हुआ. वोट शेयर की बात की जाए तो AAP का वोट शेयर 42.05 फीसदी रहा जबकि बीजेपी का 39.09 फीसदी और कांग्रेस का 11.68 फीसदी रहा.
इसी के साथ मनीष सिसोदिया जिस पटपड़गंज सीट से विधायक हैं, वहां चार में से तीन सीट भाजपा जीत गई. सत्येंद्र जैन के विधानसभा क्षेत्र शकूरबस्ती से तीनों सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है.
दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए MCD चुनाव के नतीजे सुख दायक लग रहे हैं. विधानसभा की तुलना में कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर तीन गुना बढ़ गया.