दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया का कहर जारी है. इसकी रोकथाम के लिए एमसीडी लगातार कोशिश कर रही है. डेंगू, चिकनगुनिया के मच्छरों की चार अलग-अलग स्टेज होती हैं, जिन्हें पनपने या मारने के लिए एमसीडी के पास अलग-अलग केमिकल और इक्विपमेंट्स होते हैं. इनका इस्तेमाल कर डेंगू के मच्छरों को खत्म करने की कोशिश की जाती है.
मच्छर के अंडों को आंखों से देखना बेहद मुश्किल होता हैं. इसलिए एमसीडी लार्वा, प्यूपा और एडल्ट मच्छरों को मारने के लिए केमिकल्स का इस्तेमाल करती है. सबसे ज्यादा जरूरी है इन मच्छरों को पनपने से रोकना, जिसके लिए कूलर या टंकी के पानी में टेमिफोस् ग्रेन्युलस का इस्तेमाल काफी कारगर है.
एमसीडी के मलेरिया इंस्पेक्टर दिनेश शर्मा का भी यही कहना है कि इन ग्रेन्युलस को डालने के बाद आप कूलर और टंकी को 15 दिन बाद भी साफ करेंगे, तो इसका असर बना रहेगा. लार्वा स्टेज पर मच्छरों को मारने के लिए बैक्टीसाइड का इस्तेमाल किया जाता है, जो पिट्ठू पंप में डाल कर नालियों और दूसरी पानी वाली जगह पर स्प्रे की जाती है. इससे मच्छरों को पनपने से रोका जा सकता है.
डेंगू के मच्छरों को इसके अलावा फॉगिंग से भी ज्यादा कारगर वॉल स्प्रेयिंग होती हैं, जिसमे अल्फासायपर मेथ्रिन का इस्तेमाल होता है, जिसे कैरोसिन में मिलाकर बनाया जाता है और घर की दीवारों पर स्प्रे किया जाता है. इसका असर 3 महीने तक रहता है और मच्छर दीवार पर बैठते ही उसके संपर्क में आकर मर जाता है.
एमसीडी के कीट वैज्ञानिक डॉ. पृथ्वी सिंह के मुताबिक, फॉगिंग की बात करे, तो सायफेनोथ्रिन केमिकल को डीजल के साथ मिलाकर फॉगिंग की जाती है, जो इनडोर-आउटडोर दोनों होती है. ये एडल्ट मच्छरों को मारने का काम करती है. इन केमिकल्स का इस्तेमाल कर मच्छरों से लड़ा जा रहा है.