आपने तमाम बाबाओं को देखा या सुना होगा लेकिन क्या कभी मेडिसिन बाबा से मिले हैं? भले ही ये सुनकर आप चौंक गए होंगे लेकिन राजधानी दिल्ली में एक ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें अब लोग मेडिसिन बाबा के नाम से जानते हैं.
85 साल के ओंकारनाथ गरीबों के बीच मेडिसिन बाबा के नाम से चर्चित हैं. वो हर साल डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा की दवाई मंगाकर जरूरतमंद गरीबों की मदद करते हैं और इस नेक काम के लिए उन्हें विदेशों से भी मदद मिलती है.
हैरानी की बात ये है कि 85 साल के ओंकारनाथ 45 फीसदी दिव्यांग हैं. बचपन में एक हादसे के बाद इनके पैर सामान्य नहीं रहे लेकिन इन सब बातों को पीछे छोड़ते हुए ओंकारनाथ आज मेडिसिन बाबा के नाम से अपनी पहचान बना चुके हैं.
उन्होंने बताया कि आज से लगभग 15 साल पहले लक्ष्मी नगर में मेट्रो का पिलर बन रहा था तभी उसका एक लेंटर गिर गया था जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी और कई घायल हुए थे.
वह अस्पताल गए जहां गरीब मजदूरों से डॉक्टर ने कहा कि अभी उनके पास दवाएं मौजूद नहीं है. गरीबों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो बाहर से दवा खरीद पाते. यही बात उन्हें परेशान करने लगी और वो रात भर सो नही पाए. अगली सुबह उठे तो तय कर लिया कि अब वो गरीबों के लिए दवाओं का इंतजाम करेंगे. आज मेडिसिन बाबा के पास 2 रुपये से लेकर 2 लाख तक कि दवाएं मौजूद हैं.
उन्हें दवाइयों के क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव नहीं है लेकिन वह कहते हैं कि दवाई मांगने के लिए भला कैसा अनुभव. हां दवाएं देने के लिए जरूर उन्होंने एक फॉर्मासिस्ट रखा है.
मेडिसिन बाबा सिर्फ दवाएं ही नहीं बल्कि अब व्हील चेयर, ऑक्सीजन सीलेंडर या इलाज के लिए जरूरी सभी सामान गरीबों को देते हैं. अब उनके घर के बाहर सुबह से ही लोग मदद लेने पहुंच जाते हैं.
मेडिसिन बाबा के पास अब विश्व के हर देश से दवाई आती है. फ्रांस, वियतनाम, इंग्लैंड, कनाडा से सबसे ज्यादा दवाएं आती हैं. शुरू में जब उनको मालूम हुआ की विदेश से आई दवाओं पर भी कस्टम ड्यूटी देनी पड़ेगी तो उन्होंने भेजने वालों से कस्टम ड्यूटी चुकाने की भी प्रार्थना की.
मेडिसिन बाबा बताते हैं कि सफर कभी आसान नहीं था और लोग तरह-तरह की बातें करते थे. कई लोग यह भी कहते थे कि यह हमसे दवाई लेकर बाजार में बेच कर अपने बच्चों को पालन-पोषण करता है लेकिन इन नकारात्मक बातों से उन्हें कोई फर्क कभी नहीं पड़ा.
मेडिसिन बाबा बताते हैं कि कोविड के वक्त हालात बहुत मुश्किल हो गए थे क्योंकि घरों से दवाइयां मिलना लगभग बंद हो गई थी ऐसे में उन्होंने श्मशान घाट पर दवाई मांगना शुरू की. कई लोग जो कोविड की वजह से अपनों को खो चुके थे और उनके पास दवाईयां बची थी वो उन्हें दान करने लगे.
ये भी पढ़ें: