देश की राजधानी दिल्ली के लोगों का हलक सूख रहा है. सरकार विकास और सुख सुविधाओं के तमाम दावे कर रही है, लेकिन एक हकीकत यह भी है कि यहां के लाखों लोगों को अभी भी हर रोज 1 लीटर पानी तक नहीं मिल पाता है.
हिंदुस्तान की धड़कन है दिल्ली, सपनों का शहर है दिल्ली, यहां कोलतार की चौड़ी-चौड़ी सड़कें हैं, यहां अत्याधुनिक मेट्रो सेवा है, यहां सबके लिए सबकुछ मिलने वाले आलीशान बाजार हैं; लेकिन अगर कुछ नहीं है तो वो सबके लिए स्वच्छ पानी.
देश की सत्ता यहीं से चलती है. देश के लिए कानून यहीं से बनता है, देश के विकास के लिए नीतियां भी यहीं तय होती हैं, लेकिन अफसोस इसके बावजूद दिल्ली की जनता प्यासी है. दिल्ली की आबादी करीब पौने दो करोड़ हो चुकी है, लेकिन अभी भी कई लाख लोगों को जिंदगी की बुनियादी सुविधा पानी नहीं मिल पाता है.
दिल्ली के कई इलाकों में जमीन के नीचे पानी का स्तर 150 फीट नीचे तक जा पहुंचा है. दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके में पानी जमीन से 148.5 फीट नीचे जा चुका है. दक्षिण पश्चिम दिल्ली के वसंत कुंज में पानी जमीन से 132 फीट नीचे मिल रहा है. दक्षिण दिल्ली के ही चितरंजन पार्क में जलदेवता अब जमीन से 116 फीट नीचे पाए जाने लगे हैं. दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में पानी के स्तर में 30 फीसदी से लेकर 200 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है.
पानी को लेकर दिल्ली की सच्चाई और भी खतरनाक है. दिल्ली में पानी के 629 आधिकारिक स्रोत हैं. इनमें से 2008 से लेकर 2012 तक 304 स्रोत पूरी तरह से सूख चुके हैं या गायब हो चुके हैं. इतना ही नहीं, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी ने पानी के 223 नमूनों की जांच की जिनमे से 46 फीसदी नमूने ही पीने के लायक पाए गए. आज भी दिल्ली के कई शहरी इलाकों में नलों से काला गंदा जहरीला पानी निकलता है. मजबूरी है इसी को पीना भी पड़ता है, इसी से नहाना भी पड़ता है.
दिल्ली में हर रोज 1025 मिलियन गैलन पानी की जरुरत होती लेकिन पानी मिलता है सिर्फ 835 मिलियन गैलन यानी मांग और सप्लाई में हर रोज कमी है 190 मिलियन गैलन पानी की. आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि हालात काबू से बाहर होते जा रहे हैं. अगर वक्त रहते दिल्ली में पानी के संरक्षण और पानी की बर्बादी रोकने के उपाय नहीं किए गए तो राजधानी में पानी की एक एक बूंद के लिए खून खराबा होते देर नहीं लगेगी.