दिल्ली की मस्जिदों के इमामों और मौलवियों को मिलने वाली सैलरी का मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा. इस मामले में SC के वकील गार्गी खन्ना और प्रेरणा सिंह ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और दिल्ली सरकार द्वारा मस्जिदों के इमामों और मौलवियों को मिलने वाली सैलरी पर रोक लगाने की मांग की.
वकीलों द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि दिल्ली सरकार इमाम और मौलवियों को सैलरी देकर संविधान के आर्टिकल 14, 27 का उल्लंघन कर रही है. याचिका में कहा गया कि मंदिर के पुजारी को सैलरी नहीं दे कर केजरीवाल सरकार संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन कर रही है.
'..मौलवियों की सैलरी पर भी लगे रोक'
याचिका में दिल्ली सरकार को मंदिर के पुजारी को भी सैलरी जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई है. साथ ही कहा गया कि अगर पुजारियों को सैलरी नहीं दी जाती है तो इमाम और मौलवियों को दी जा रही सैलरी पर भी रोक लगाई जाए.
BJP ने उठाए सवाल
हालिया दिनों में दिल्ली नगर निगम चुनावों के चलते मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों को मिलने वाली सैलरी एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है. बीजेपी इसे लेकर केजरीवाल सरकार को घेरने में जुटी है और इमाम और मुअज्जिन की तरह ही मंदिर के पुजारियों और गुरुद्वारे के ग्रंथियों को भी मासिक वेतन देने की मांग उठा रही है.
हिंदुओं के साथ बताया भेदभाव
कुछ दिनों पहले ही बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को इस संबंध में बाकायदा पत्र भी लिखा था. प्रवेश वर्मा ने लिखा था कि धर्मनिरपेक्षता का तकाजा है कि टैक्स के पैसे समाज के किसी एक धार्मिक वर्ग के ऊपर नहीं खर्च करना चाहिए. उसपर सभी धार्मिक वर्गों का समान अधिकार है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार हिंदुओं के साथ भेदभाव करती है. मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारा के ग्रन्थियों को भी मौलवियों की तरह वेतन मिलना चाहिए.
दिल्ली में इमामों को सैलरी
आपको बता दें कि दिल्ली वक्फ बोर्ड की पंजीकृत करीब 185 मस्जिदों के 225 इमामों को सरकार से मासिक सैलरी मिलती है. इमाम को 18 हजार रुपये और मुअज्जिनों को 14 हजार रुपये हर महीने सैलरी दी जाती है. इसके अलावा दिल्ली वक्फ बोर्ड में अनरजिस्टर्ड मस्जिदों के इमामों को 14 हजार और मुअज्जिनों को भी 12 हजार रुपये प्रति माह का मानदेय दिया जाता है.