देश में समान आचार संहिता की बहस पुरानी है. समान आचार संहिता को सीधे शब्दों में कहें तो सभी लोगों के लिए समान कानून जिसे विवाह और तलाक जैसे निजी मसलों में भी समान करने की बात कही जा रही है. भले ही नागरिक का धर्म, जाति, विचार, संप्रदाय अलग हो. इसी बाबत सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए शादी- विवाह और तलाक के लिए एक ही कानून होना चाहिए.
फिलहाल हर धर्म में शादी और तलाक के लिए अलग नियम और कानून हैं, जो कि पर्सनल लॉ पर आधारित हैं. लेकिन याचिका मे दलील दी गई है कि एक देश में एक ही कानून होना चाहिए.
सभी धर्मों के नागरिकों के लिए शादी और तलाक के लिए समान कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका का आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध किया है. बोर्ड ने इस मामले में खुद को पक्षकार बनाने की भी मांग की है. अब मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी इस मामले में पक्षकार बनना चाहता है. बोर्ड ने अपनी अर्जी में कहा है कि पर्सनल लॉ का सम्मान होना चाहिए. हिंदुओं में भी कई समाज में अलग-अलग नियम कानून से विवाह होते हैं.
अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिस पर कोर्ट ने नोटिस जारी कर सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा है. इससे पहले भी ये मामला देश की राजनीति में भी एक अहम मुद्दा रहा है. भाजपा ने इस मामले को अपने चुनावी वायदों में भी शामिल किया था. हालांकि विधि आयोग ने कई मसलों पर कहा है कि एक विविधतापूर्ण देश में सभी एक लिए एक ही कानून बहुत उचित नहीं है.