हेराल्ड हाउस को खाली करने के फैसले को नेशनल हेराल्ड की प्रकाशन कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने दिल्ली हाइकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी है. जिस पर सोमवार को कोर्ट में बहस के दौरान एजेएल की और से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखते हुए कहा पूरे मामले का ही पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित बताया.
21 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि हेराल्ड हाउस को खाली किया जाए. सोमवार को हुई सुनवाई में दिल्ली हाई कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस के दौरान अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट को कहा कि क्या ये कोई आधार दिया जा सकता है कि आपने ऑफिस चौथी मंजिलपर शिफ्ट कर दिया है और कंपनी तीन मंजिल से किराया ले रही हैं. ये कोई इमारत खाली कराने का वैध आधार नहीं है. सिंघवी ने कहा कि ये अखबारों को प्रोत्साहित करने का तरीका है. वहां पर सब ऐसा ही कर रहे हैं.
सिंघवी ने कहा कि हेराल्ड हाउस की लीज एलएनडीओ की तरफ से सिर्फ इसलिए रद्द कर दी कि वहां से अखबार की छपाई नहीं की जा रही है. अखबार अगर किसी और जगह से छापा जा रहा है तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है और वहां बाकी के अखबार भी नोएडा से ही प्रकाशित किए जा रहेहैं, लेकिन उनका दफ्तर बहादुर शाह जफर रोड पर ही है और अगर हेराल्ड हाउस में गैरकानूनी काम हुआ तो वहां की हर इमारत में ये काम हो रहा है.
सिंघवी का कहना था कि शेयर शोल्डर कंपनी ने कंपनी के ऑफिस बेयरर को ही वो शेयर ट्रांसफर किए, लेकिन इससे लीज की शर्तों का कहीं भी उल्लंघन नही हुआ. सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट सिंगल बेंच ने आदेश में कहा है कि एजेएल सर्कुलेशन की जानकारी नहीं बता पाया. लेकिन सच्चाईये है कि सुनवाई के दौरान कभी भी सर्कुलेशन के बारे में पूछा ही नहीं गया था. हमारे पास सर्कुलेशन को लेकर ABC का सर्टिफिकेट भी है.
सिंघवी ने कहा कि आर्थिक तंगी के चलते कुछ वक्त के लिए प्रेस को बंद करना पड़ा था, लेकिन अब हिंदी, इंग्लिश और उर्दू में तीन अखबार एजेएल निकाल रहा है. इसके लावा 14 नवंबर 2016 को नेशनल हेराल्ड ने अपना डिजिटल मीडियम भी शुरू कर दिया. लिहाजा हेराल्ड हाउस को खालीकरने का फैसला पूरी तरह गलत है. एलएनडीओ ने जो लीज रद्द की वह सत्ता पक्ष कांग्रेस पर दवाब डालने के लिए कर रहा है. ये पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है.
जबकि केंद्र सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दो हजार करोड़ की इस प्रॉपर्टी पर 2008 में नेशनल हेराल्ड अखबार को छापना बंद कर दिया गया और सभी स्टाफ को वॉलेंटेरी रिटायरमेंट दे दिया गया. पब्लिक प्रीमैसिस एक्ट (public premises act) के तहत हमेंउसे खाली कराने का पूरा हक है क्योंकि वहां अखबार निकाला ही नहीं जा रहा था. जबकि, सरकार ने अखबार चलाने के लिए ही जमीन दी थी. अखबार चलाने के बजाय इमारत को किराए पर दे दिया गया. इतना ही नहीं ग्राउंड फ्लोर और पहली मंजिल पर अवैध निर्माण भी कराया गया.
तुषार मेहता ने कहा कि 2016 में दो बार निरीक्षण किया गया और पाया गया कि वहां कोई प्रिंटिग प्रेस एक्टिविटी नहीं हो रही थी. दो मंजिल पासपोर्ट ऑफिस को किराए पर दिया गया था. ये साफ हो गया कि 2008 से 2016 के बीच कोई प्रिंटिंग प्रेस एक्टीविटी नहीं हो रही थी.2010-11 में एजेएल के शेयर यंग इंडियन को ट्रांसफर हो गए. इस मामले में अब आगे सुनवाई 1 फरवरी को होगी.