राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हर साल की तरह इस बार भी वायु प्रदूषण से 'बीमार' हो रही है. पिछले दो हफ्ते से वायु प्रदूषण देखने को मिल रहा है. तीन दिन से हालात पूरी तरह बिगड़ गए हैं. आसमान में धुंध और धुंआ है. लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. डॉक्टर्स इसे गंभीर खतरा बता रहे हैं. बीमार लोगों की संख्या बढ़ रही है. अस्पताल में भीड़ लग रही है. दिल्ली सरकार यही दावा कर रही है कि वो वायु प्रदूषण से निपटने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है. हालांकि, अब तक तो ना कोई ठोस प्लान सामने आया है और ना जमीनी स्तर पर इसका असर देखने को मिल रहा है.
बात 8 साल पहले की है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में दिल्ली को गैस चैंबर के तौर पर नया नाम दिया था. साल 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था, राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का वर्तमान स्तर 'चिंताजनक' स्थिति तक पहुंच गया है. यह 'गैस चैंबर में रहने' जैसा है. 4 साल पहले 2019 में दिल्ली में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा का दर्द छलका था. उन्होंने प्रदूषण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था, दिल्ली अब रहने लायक नहीं रही. शुरू में दिल्ली मुझे आकर्षित करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. यह शहर रहने लायक नहीं बचा है. रिटायरमेंट के बाद दिल्ली में नहीं रहूंगा. तब से लेकर सरकार लगातार वायु प्रदूषण को खत्म करने का दम भरती आई है. लेकिन, जमीन पर इसका असर कितना रहा, ये हालात बयां करते हैं.
पहले भी सख्त टिप्पणी कर चुका है सुप्रीम कोर्ट
ऐसा नहीं है कि जस्टिस मिश्रा ने ही दिल्ली में प्रदूषण को लेकर चिंता और नाराजगी जताई. उससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट सख्त टिप्पणी कर चुका है. 6 अक्टूबर 2015 को तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एचएल दत्तू ने कहा था, सांस लेना जहर हो गया है. मेरा पोता भी मास्क पहनता है. 17 जुलाई 2018 को जस्टिस लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था, प्रदूषण से 60 हजार लोगों की जान चली गई. आखिर आप लोग कर क्या रहे हैं? उसके बाद 29 अक्टूबर 2018 जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा था कि गरीब लोग साइकिल-रिक्शा पर चलते हैं. ऐसे लोगों को आजीविका कमाने के लिए काम करना है. प्रदूषण में काम करके खुद को मार डालो?
सुप्रीम कोर्ट ने चार दिन पहले फिर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट में इस साल भी दिल्ली में वायु प्रदूषण का मामला पहुंचा है. SC ने 4 दिन (31 अक्टूबर) पहले ही दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकारों को वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के संबंध में निर्देश दिए और एक हफ्ते के अंदर उपायों के बारे में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा, संबंधित राज्यों को एक हलफनामा दायर करना चाहिए जिसमें बताया जाए कि उन्होंने हालात से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं. मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर हो होगी. बेंच का कहना था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण फसल जलाना है. कोर्ट ने पहले दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से रिपोर्ट मांगी थी.
'वायु प्रदूषण से 2019 में 16 लाख मौतें'
फिलहाल, दिल्ली सरकार भी वायु प्रदूषण को लेकर गंभीर होने का दावा कर रही है. लेकिन, जमीन पर इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि हर साल सर्दियों की शुरुआत से प्रदूषण लोगों को बीमार करने लगता है. वायु प्रदूषण को लेकर आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं. ग्लोबल ऑब्जर्वेटरी के शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण 2019 में 16 लाख मौतें हुईं, जो दुनिया के किसी भी देश में प्रदूषण से संबंधित मौतों का सबसे बड़ा आंकड़ा है. 2.71 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह भी पाया गया है कि इसके कारण अब तक कोविड की तुलना में 10 गुना ज्यादा मौतें हुई हैं.
मंगलवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि ये मौतें पिछले साल देश में हुई कुल मौतों का 17.8 प्रतिशत थीं. जबकि आर्थिक नुकसान भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.36 प्रतिशत था. भारत के हर राज्य पर वायु प्रदूषण के आर्थिक प्रभाव का भी अनुमान लगाया गया है.
'ब्रोंकाइटिस मरीजों की संख्या बढ़ रही'
हेल्थ एक्सपर्ट ने बताया कि वायु प्रदूषण बच्चों और बुजुर्गों में अस्थमा और फेफड़ों की समस्याएं बढ़ा रहा है. सफदरजंग अस्पताल में मेडिसिन विभाग के प्रमुख जुगल किशोर ने कहा, चिड़चिड़ापन वाले ब्रोंकाइटिस संक्रमणों (यह वायरल संक्रमण फेफड़ों के निचले श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है) की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.यह सिफारिश की जाती है कि क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी श्वसन समस्याओं से पीड़ित लोग अपनी दवाएं नियमित रूप से लें और जब तक बहुत जरूरी न हो, खुले में न जाएं. उन्होंने लोगों को अपने घरों में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करने की सलाह दी.
दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान की एचओडी क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी डॉ. प्रज्ञा शुक्ला का कहना है कि वायु प्रदूषण के स्तर के कारण लोगों को आंखों में जलन, पानी आना, सिरदर्द और थकान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है... इसके दीर्घकालिक दुष्प्रभाव होंगे.
वायु प्रदूषण के मनोवैज्ञानिक पहलू की जांच की जरूरत: एनजीटी
राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता में गिरावट के 'मनोवैज्ञानिक पहलू' की जांच की जानी चाहिए. एनजीटी ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय समेत सरकारी प्राधिकारियों से जवाब मांगा है. एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की बेंच ने कहा, वायु प्रदूषणकारी घटकों और मानव शरीर के विभिन्न अंगों पर उनके प्रतिकूल प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त उपायों की आवश्यकता है. विशेष रूप से वे जो मस्तिष्क और भावनात्मक रूप से मनोवैज्ञानिक पहलू को प्रभावित कर रहे हैं. बेंच ने कहा, हालांकि मस्तिष्क समेत शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव के संबंध में 'स्पेसिफिक इशू' की अलग से जांच करने की आवश्यकता है.
सरकार ने प्रदूषण से निपटने के क्या दावे किए?
- दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली-एनसीआर में सभी गैर-जरूरी निर्माण कार्यों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.
- राष्ट्रीय राजधानी में डीजल ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया है. दिल्ली में बीएस-3 पेट्रोल और बीएस-4 डीजल की कारों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है.
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने राष्ट्रीय राजधानी में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के चरण III को लागू कर दिया है. इसके तहत कई बड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं. अब दिल्ली-एनसीआर में निजी निर्माण पर रोक होगी.
- दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता का आकलन करने के लिए CAQM ने एक मीटिंग भी बुलाई. इस दौरान CAQM ने कहा, प्रतिकूल मौसम और जलवायु परिस्थितियों के कारण आने वाले दिनों में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने का अनुमान है.
- दिल्ली मेट्रो ट्रेन आज से 20 एक्स्ट्रा फेरे लगाएंगी. जब ग्रैप II लागू किया गया था, तब भी मेट्रो ने 40 अतिरिक्त फेरे लगाने का ऐलान किया था. दिल्ली मेट्रो अब तक कुल 60 एक्स्ट्रा फेरे लगाने जा रही है.
-दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने शुक्रवार को एक बैठक बुलाई है. इसमें ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तीसरे चरण को लागू करने पर चर्चा की जाएगी. ये बैठक दोपहर 12 बजे होगी और इसमें सभी संबंधित विभागों को बुलाया गया है.
- सरकार ने खुले में कूड़ा जलाने पर प्रतिबंध लगाया है.
- NDMC ने ‘मैकेनिकल रोड स्वीपर’ (सड़क सफाई मशीन) तैनात की हैं. आठ ‘एंटी-स्मॉग गन’ की मदद ली जा रही है. ये सड़क या प्रदूषण वाले स्थान पर पानी की महीन बूंदों का छिड़काव करती है ताकि धूल और प्रदूषण के कण बैठ जाएं.
- 500 वर्ग मीटर से ज्यादा क्षेत्रफल वाले निर्माण स्थलों को अनिवार्य रूप से दिल्ली सरकार के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने का नियम है, ताकि किसी विशेष स्थल पर होने वाली धूल को सही समय पर नियंत्रित किया जा सके.
- NDMC ने निर्माण स्थलों का निरीक्षण करने के लिए एक टीम गठित की है. नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एक अप्रैल से 27 अक्टूबर तक 12.50 लाख रुपये के चालान जारी किए गए हैं.
- 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल वाहनों और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों के प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) प्रमाणपत्रों का सख्ती से निरीक्षण किया जाएगा.
-दिल्ली में पटाखे फोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा. सभी प्रकार के उत्पादन, भंडारण, वितरण या बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. ऑनलाइन डिलीवरी की भी अनुमति नहीं है.
- दिल्ली सरकार ने बड़ी संख्या में वॉलिंटर्स को पर्यावरण मित्र के रूप में रजिस्टर्ड किया है. इनकी सिर्फ यही जिम्मेदारी है कि लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाएं.
- प्रदूषण की निगरानी के लिए एक ग्रीन वॉर रूम बनाया है. इस वॉर रूम में तैनात एक्सपर्ट प्रदूषण डेटा का एनालिलिस करेंगे और भविष्य की कार्रवाई की रणनीति बनाएंगे. मंगलवार से विश्लेषकों और विशेषज्ञों की टीम ने चौबीसों घंटे काम करना शुरू कर दिया है.
- ग्रीन दिल्ली ऐप पर कचरा जलाने की घटनाओं या यदि कोई वाहन बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाते हुए पाया जाता है तो उसकी रिपोर्ट कर सकते हैं. शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की जाएगी.
- धूल मिट्टी को वातावरण से कम करने के लिए एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल किया जा रहा है. वॉटर स्प्रिंकलर के जरिए भी पेड़ों आदि से धूल को हटाया जाने के आदेश दिए हैं. रेल पटरियों के आसपास से भी कचरे को उठाने के निर्देश दिए गए हैं.
'सर्दियों में ये फैक्टर भी बढ़ाते हैं प्रदूषण'
दिल्ली-एनसीआर में पटाखों से होने वाला धुआं, धान की पराली जलाने और स्थानीय प्रदूषण सोर्स को भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया गया है. सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में यही खतरनाक वायु गुणवत्ता की वजह बनते हैं. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के एक एनालिसिस के अनुसार, राजधानी में 1 नवंबर से 15 नवंबर तक प्रदूषण हाई लेवल पर होता है. चूंकि इसी समय पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामलों की संख्या बढ़ जाती है. सीएक्यूएम ने बताया कि 15 सितंबर के बाद से पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में क्रमश: करीब 56 प्रतिशत और 40 प्रतिशत की कमी आई है.
'तीन दिन में जबरदस्त उछाल आया'
हालांकि, इन राज्यों में पिछले तीन दिनों में खेतों में आग लगने की घटनाओं में जबरदस्त उछाल देखा गया है. पंजाब सरकार का लक्ष्य इस सर्दी के मौसम में खेत की आग को 50 प्रतिशत तक कम करना और छह जिलों में पराली जलाने को खत्म करना है. धान की पुआल जलाने पर रोक लगाने के लिए पंजाब की कार्य योजना के अनुसार, राज्य में करीब 31 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है, जिससे लगभग 16 मिलियन टन धान की पुआल (गैर-बासमती) उत्पन्न होने की उम्मीद है.