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NGT में खत्म हुआ जस्टिस स्वतंत्र कुमार का कार्यकाल, क्या जारी रहेगी ट्रिब्यूनल की सक्रियता?

मीडिया से मुखातिब होते हुए जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि पिछले 5 साल में उन्होंने एनजीटी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है बल्कि देश के आम आदमी के लिए भी एनजीटी को अप्रोच करना बेहद आसान बना दिया है.

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जस्टिस स्वतंत्र कुमार
जस्टिस स्वतंत्र कुमार

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एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार का कार्यकाल 19 दिसंबर, 2018 को खत्म हो गया. लेकिन उनके कार्यकाल के खत्म होने के बाद बड़ा सवाल ये है कि क्या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल उसी गति से आगे भी काम कर पाएगा, जिस तरह की तेजी पिछले चार-पांच साल में दिखाई दी थी.

पर्यावरण को लेकर बढ़ाई आम आदमी की जागरुकता

पिछले चार-पांच साल में चाहे दिल्ली में प्रदूषण से जुड़ा हुआ मामला हो, बेंगलुरु में प्रदूषण के कारण खत्म होती जा रही झील का मामला हो, श्री श्री रविशंकर के यमुना तट पर वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल कराने का मामला हो या फिर लगातार प्रदूषण को कम करने के लिए निर्माण कार्य से लेकर राजधानी में बाहर से आने वाले वाहनों को रोकने का निर्णय हो. पर्यावरण को लेकर पिछले कुछ वर्षों से एनजीटी ने ना सिर्फ लोगों में पर्यावरण को लेकर जागरुकता बढ़ाई है बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपनी उपस्थिति दर्ज की है. इस तरह के निर्णय लेने में एनजीटी के चेयरमैन स्वतंत्र कुमार ने अपना अहम रोल निभाया है.

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विवादित रहे NGT के कुछ फैसले

हालांकि एनजीटी के कुछ फैसले विवादित भी रहे. जैसे हाल ही में अमरनाथ को लेकर दिया गया एनजीटी का फैसला हो या फिर ऑड-इवन में टू व्हीलर्स को शामिल करने को लेकर एनजीटी का दिया गया फैसला. कुछ ऐसे फैसले भी रहे जिन पर एनजीटी की आलोचना हुई और कुछ ऐसे भी रहे जो बेहद सराहे गए. एनजीटी पूरी तरह से सक्रिय और निष्पक्ष होकर काम करती रही.

पूरी तरह से नहीं किया गया NGT का पालन

एक बड़ा सच यह भी रहा कि ज्यादातर एजेंसियां और सरकार एनजीटी के बड़े आदेशों का पूरी तरह पालन नहीं करवा पाईं. फिलहाल जस्टिस स्वतंत्र कुमार के रिटायर होने के बाद एनजीटी के एक्टिंग चीफ के तौर पर यूटी साल्वी काम संभालेंगे.

सरकार की योजनाओं पर उठाए सवाल

मीडिया से मुखातिब होते हुए जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि पिछले 5 साल में उन्होंने एनजीटी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है बल्कि देश के आम आदमी के लिए भी एनजीटी को अप्रोच करना बेहद आसान बना दिया है. एनजीटी देश की अकेली ऐसी ट्रिब्यूनल रही है, जिसने सरकार के कई प्रोजेक्ट पर भी सवाल खड़े किए या फिर उन पर स्टे लगाया. लिहाजा चीफ जस्टिस स्वतंत्र कुमार के जाने के बाद ये देखना अहम होगा कि पर्यावरण को लेकर सरकार और समाज एनजीटी के कितने आदेश को आगे गंभीरता से लेंगे.

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