दिल्ली हाई कोर्ट ने एक रेप मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि अदालत से बाहर आपसी सहमति से ऐसे मामलों के निपटारे को स्वीकार नहीं किया जाएगा. कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा कि वे यौन शोषण मामलों में एफआईआर को रद्द करने जैसे केसों पर रोक लगाएं.
हाई कोर्ट ने कहा, 'रेप एक गंभीर और जघन्य कृत्य है. ऐसे मामलों में दोनों पक्षों द्वारा समझौते को आधार बनाकर सजा में छूट या कम सजा को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.' जज सुनीता गुप्ता ने आगे कहा कि रेप जैसे अपराध में दोनों पक्षों को आपसी समझौते के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है.
पेश मामले में रेप के दोषी की याचिका को खारिज करते हुए जज गुप्ता ने कहा कि ऐसे मामलों में यह निश्चित करना भी मुश्किल है कि दोनों पक्षों में वाकई कोई समझौता हुआ है या नहीं. याचिका में कोर्ट से अपील की गई थी कि याची के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द किया जाए, क्योंकि उसने पीड़िता से समझौता कर शादी कर ली है.
दूसरी ओर पुलिस ने यह कहते हुए याची मयंक पांडे का विरोध किया था कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए समझौते के बावजूद एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है.
पुलिस के अनुसार, मयंक पीड़ित लड़की के साथ काम करता था और इसी दौरान दोनों में निकटता बढ़ी. जान-पहचान के एक साल बाद मयंक ने कई बार लड़की का यौन शोषण किया, जिससे वह 2012 में प्रेगनेंट हो गई. जब लड़की ने मयंक से शादी की बात की तो उसने मारपीट शुरू कर दी. इस वजह से पीड़िता का मिसकैरेज भी हो गया. बाद में लड़की की शिकायत पर पुलिस ने मयंक को गिरफ्तार कर लिया था. जबकि जमानत पर छूटने के बाद मयंक ने पीड़िता से समझौता कर विवाह कर लिया.