दिल्ली के तीनों नगर निगम- नॉर्थ, साउथ और ईस्ट एमसीडी, टोक्यो के बाद दुनिया की दूसरी बड़ी एमसीडी है. लेकिन यहां पर प्लास्टिक को रिसाइकल करने का कोई प्लांट नहीं है. नॉर्थ एमसीडी के मेयर रहे जय प्रकाश ने बताया कि नॉर्थ एमसीडी से निकलने वाले प्लास्टिक वेस्ट को भलस्वा लैंडफिल साइट पर ट्रामलिन मशीनो के जरिए आम कूड़े से अलग करके एनर्जी प्लांट में भेजा जाता है. वक्त के साथ प्लास्टिक वेस्ट में बढ़ोतरी हुई है. इसलिए एनर्जी प्लांट भी बढ़नी चाहिए. जबकि प्लास्टिक से रेवेन्यू भी निकाला जा सकता है. प्लास्टिक वेस्ट रिसाइकल हो सकता है. उसके लिए एमसीडी ने प्लास्टिक के बदले खाना, प्लास्टिक के बदले पानी जैसी योजनाएं शुरू की लेकिन नतीजा परवान नहीं चढ़ा.
एमसीडी के आंकड़ों के मुताबिक साउथ एमसीडी में 245-250 मीट्रिक टन, नॉर्थ एमसीडी में 350-300 मीट्रिक टन और ईस्ट एमसीडी में 150-200 मीट्रिक टन रोजाना प्लास्टिक वेस्ट निकलता है.
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पूरे दिल्ली को मिलाकर करीब 800 मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट हर रोज़ पैदा हो रहा है. जो आम कूड़े में मिक्स ओखला, गाजीपुर या भलस्वा की लैंडफिल साइट पर जाता है. सिंगल यूज़ प्लास्टिक को लेकर एमसीडी दुकानदारों पर कारवाई तो करती है लेकिन प्लास्टिक रीसाइकलिंग प्लांट बनाने की कवायद सिर्फ कागजों में है.
पर्यावरणविद अनिल सूद ने कहा कि प्लास्टिक को नदी में फेंकने पर वो तलहटी में बैठ जाता है और पानी को प्रदूषित करता है. पर्यावरण में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन टॉक्सिक लिंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि प्लास्टिक, माइक्रो प्लास्टिक से गंगाजल प्रदूषित हो रहा है.