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दिल्ली हिंसा: राम-अल्लाह में फर्क नहीं देखते रहमान, देवदूत बन दोस्त संजीव ने बचाई जान

उत्तर पूर्वी दिल्ली तीन दिनों तक जलती रही, मगर नफरत की साजिश की लपटों के बीच तमाम ऐसे देवदूत भी फरिश्ता बनकर सामने आए, जिन्होंने धर्म और मजहब की दीवार को तोड़कर एक सच्चे इंसान होने की तस्वीर पेश की.

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मुजीबुर रहमान को उनके दोस्त और पड़ोसी संजीव ने सही सलामत बचाया
मुजीबुर रहमान को उनके दोस्त और पड़ोसी संजीव ने सही सलामत बचाया

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  • एकता की ताकत से हमेशा हारती रही है नफरत
  • यमुना विहार में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

दिल्ली में जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है. बाजार खुल रहे हैं. दुकान सज रही हैं. हिंसा की कड़वी यादों के बीच कुछ ऐसे देवदूत भी सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर न सिर्फ इंसानियत पर भरोसा बढ़ता है बल्कि ये संदेश भी मिलता है कि एकता की ताकत से नफरत हमेशा हारती है.

मुजीबुर रहमान रामायण के बारे में काफी जानकारी रखते हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बारे में वह इतनी तन्मयता से सुर लय में बोलते हैं. उत्तर पूर्व दिल्ली के करावल नगर में इनका घर है. मुजीबुर रहमान कहते हैं, 'उनके साथियों ने सलाह दी कि यहां से बचकर निकलने के लिए नाम बदलकर बताना पड़ेगा. उपद्रवी कहते हैं जय श्री राम बोलो.' लेकिन मुजीबुर रहमान उपद्रवियों के लिए कहते हैं, श्री रामचंद्र जी के बारे में पढ़ो तो सही. वह त्रेतायुग में ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ अंश थे.

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आज मुजीबुर रहमान सही सलामत हैं क्योंकि इनके दोस्त और पड़ोसी संजीव ने अपनी जान पर खेलकर उपद्रवियों से इनकी जान की हिफाजत की. सालों का भाईचारा ऐसा था कि संगत में रहते-रहते मुजीबुर रहमान को राम और अल्लाह में कोई फर्क नजर नहीं आता. ऐसी ही मिसाल पेश की इनके लिए देवदूत बने दोस्त संजीव ने.

हिंदू-मुसलमान भाईचारे की मिसाल

सिर्फ करावल नगर में ही नहीं हिंसाग्रस्त यमुना विहार में भी हिंदू-मुसलमान एकता की मिसाल के दर्शन हुए. सैकड़ों उपद्रवी एक मुस्लिम परिवार का घर फूंकने जा रहे थे, लेकिन सालों से उनके दोस्त रहे और बीजेपी पार्षद प्रमोद गुप्ता ने इंसानियत का धर्म निभाते हुए शाहिद सिद्दीकी की जान की हिफाजत की. हालांकि दंगाइयों ने उनकी कार और बाइक तो जला दी लेकिन प्रमोद गुप्ता की हिम्मत के आगे वो सिद्दीकी परिवार को तनिक भी नुकसान नहीं पहुंचा सके.

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तीन दिनों तक उत्तर पूर्वी दिल्ली जलती रही, मगर नफरत की साजिश की लपटों के बीच तमाम ऐसे देवदूत भी फरिश्ता बनकर सामने आए जिन्होंने धर्म और मजहब की दीवार को तोड़कर एक सच्चे इंसान होने की तस्वीर पेश की. गोकुलपुरी इलाके में मनिंदर सिंह और उनके बेटे ने सुरक्षित जगहों पर पहुंचाकर कम से कम 70 मुस्लिम लोगों की जान बचाई.

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समाज सलाम करता है इन देवदूतों को, नमन है इनकी सोच और इनकी हिम्मत को, जिन्होंने अपनी जान की फिक्र ना करते हुए सैकड़ों दंगाइयों से लड़ते हुए इंसानियत को बचाने का काम किया है. जब तक ऐसे फरिश्ते हमारे बीच रहेंगे, मजहबी एकता यूं ही नफरत की चिंगारी पर पानी फेरती रहेगी.

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