दिल्ली-एनसीआर में कई ऐसी कंपनियां हैं, जो अंडरग्राउंड CBRN बेच रही हैं- यानी केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर बंकर. दिल्ली में रियल एस्टेट के ऐसे प्रोजेक्ट भी आ चुके, जहां इमारतों के नीचे बंकर बन रहे हैं. कीमत? सवा से लेकर दसियों करोड़ तक! लेकिन जब दुनिया खत्म हो जाए तब भी आप तय दिनों तक सेफ रह सकेंगे, इसकी गारंटी.
बेहद खुफिया ढंग से काम करते ये सेटअप और कई छुटपुट वादे करता है. जैसे यहां सेफ रूम भी मिल जाएगा.
‘ये वो कमरा है, जो लोगों को चोर-डकैतों या भीड़ के हमले से बचा सकता है. एक्टरों और नेताओं के बीच इस तरह के कमरों की डिमांड ज्यादा है.’ मेरा सोर्स बताता है. लेकिन नहीं. सेफ रूम नहीं, हमें न्यूक्लियर बंकर तक पहुंचना है. वो कैसे, कहां और कितनी कीमत पर मिल सकेगा? इसका जवाब तलाशने की कोशिश में एक खास कंपनी की जानकारी मिली. सोर्स कहता है- ‘कोशिश करके देख लीजिए. काफी सीक्रेटिव है.’
हुआ भी वही. कंपनी अड़ी रहती है. ‘हम प्राइवेट हैं. एक्सक्लूजिव क्लाइंट्स के लिए काम करने वाले. उनकी सुरक्षा को देखते हुए हम कोई पब्लिसिटी नहीं चाहते.’ आखिरकार, ईमेल पर ही लंबी बात हुई.
होटल के कमरों की तर्ज पर बंकरों के भी कई साइज होते हैं. जितनी प्रीमियम सुविधाएं, उतनी ज्यादा कीमत. आप कितने लोगों के लिए ठिकाना खोज रहे हैं, इस हिसाब से कीमत भी बदलती जाएगी.
स्टैंडर्ड साइज के सबसे बेसिक कमरे में दो एडल्ट और एक बच्चा महीनेभर तक रह सकते हैं. इसमें इतना ही स्पेस होगा और इतने ही दिनों के लिए खाना-पानी स्टोर किया जा सकता है. एक कैटेगरी है- ट्रायंफ. इसमें बना-बनाया घर मिलेगा, जिसे जमीन के भीतर सिर्फ ‘फिट’ करना है. यहां 8 लोग लगभग तीन सौ दिन तक छिपे रह सकते हैं.
सबसे प्रीमियम क्वालिटी का शेल्टर किसी आलीशान कोठी जितना लंबा-चौड़ा पसरा हुआ. तीन हजार स्क्वायर फीट के इन घरों में 15 से दो-चार ज्यादा लोग भी मजे में एडजस्ट हो सकते हैं. स्टोरेज एरिया इससे लगभग दोगुना. यहां इतना खाना-पानी और बिजली होगी, जो सालभर से लेकर तीन साल तक चल जाए.
अगर साग-सब्जी कम पड़ने लगे, या ताजा खाने को दिल करे तो इसका बंदोबस्त भी है.
बंकर के भीतर ही एक हाइड्रोपोनिक कमरा होगा, जहां मिट्टी की बजाए पानी में फल-पौधे लगाए जा सकते हैं. बाहर खतरा ज्यादा हो, जंग लंबी चल जाए, या ग्लोबल वार्मिंग ही तबाही मचा दे तो भीतर फंसे लोग अपना गुजारा चला सकेंगे.
एक वेपन रूम भी है. लड़ाई सिर पर आन ही पड़े और बाहर निकलना जरूरी हो जाए तो बंकरवासी हाथ डुलाते न निकल जाएं, कंपनी ये भी पक्का करेगी. कुल मिलाकर, कयामत से बचकर दुनिया को एक बार फिर चला सकने के सारे इंतजाम.
जिस कंपनी से हमारी बात हुई, देश में उन्होंने पहला बंकर साल 2021 में बेचा था.
ये कोविड का वक्त था, जब लोग पतंगों की तरह पटापट खत्म हो रहे थे. तभी देश के कई हिस्सों में क्लाइंट्स बनने लगे. वे जैविक अटैक से बचना चाहते थे. वहीं पिछले तीन सालों में CBRN (केमिकल-बायोलॉजिकल-रेडियोलॉजिकल-न्यूक्लियर) शेल्टर की डिमांड एकदम से बढ़ी.
क्या आम लोगों के शेल्टर भी आर्मी की तर्ज पर बन रहे हैं?
नहीं. CBRN शेल्टर मिलिट्री बंकर से काफी अलग होते हैं. सेना के लिए बंकर जहां जमीन में काफी अंदर तक धंसे होते हैं, वहीं ये उतने नीचे नहीं होते. ऐसे में अगर ऐन बंकर की जगह पर डायरेक्ट बम गिरे तो उसका बचना मुश्किल है.
तब ऐसे बंकर क्यों बनवाए जा रहे हैं?
कोई भी देश बेहद रिसर्च और मेहनत से तैयार हुए बम आम लोगों पर बर्बाद नहीं करना चाहेगा! उसका असल टारगेट लीडरशिप या सेना होगी. हमारे बंकर इसलिए हैं कि जमीन पर जब तितर-बितर मची रहे, लोग नीचे सुरक्षित रह सकें और तभी बाहर आएं, जब खतरा कम या खत्म हो जाए.
कीमत?
भारत में आम नागरिकों के लिए ये 1.2 करोड़ से शुरू होता है. इसमें ऊपर से कुछ खर्चे और. लेकिन हम इसकी सलाह नहीं देंगे. ये साइज में इतने छोटे होते हैं कि किसी काम नहीं आएंगे!
ईमेल पर लंबे जवाब देती कंपनी का लहजा औपचारिक लेकिन अर्जेंसी से भरा हुआ. कुछ यूं कि सवाल-जवाब पढ़ते हुए ही आपको लपककर एक न्यूक बंकर लेने की इच्छा हो जाए.
स्टैंडर्ड बंकरों की कीमत मार्केट में क्या होगी?
ये पता लगाने के लिए हमने ढेर सारे फोन किए. एक के बाद एक तार जुड़ते गए और बात बनी एक मैन्युफैक्चरर पर. वे कहते हैं- हम कंटेनर तो बनाते रहे लेकिन न्यूक्लियर बंकर अब तक नहीं बनाए. आप हमें सप्लायर दिलवा दें तो हम एकदम बढ़िया कंटेनर तैयार कर देंगे.
फोन-दर-फोन घूमते हुए ही एक डिस्ट्रिब्यूटर पकड़ में आया. वो कहता है- बॉम्ब-प्रूफ शीट हम दे देंगे लेकिन पहले अपनी स्पेसिफिकेशन भेजिए.
वो क्या होती है?
मैडम, आपको किससे प्रोटेक्शन चाहिए? हैंड ग्रेनेड से या उससे भारी चीज से. जैसे-जैसे डिमांड बढ़ेगी, उसी हिसाब से मटेरियल भी महंगा होगा. और उसमें जॉइंट भी कम होना चाहिए वरना काम नहीं होगा.
मान लीजिए, हमें न्यूक्लियर वेपन से बचने के लिए बंकर बनवाने हैं, तब?
इसके लिए तो 16 एमएम से कम मोटाई नहीं लगेगी. एक स्क्वायर फीट ही आपको अच्छा-खासा महंगा पड़ जाएगा.
कितना महंगा?
काफी एक्सपेन्सिव. मैं ऐसे नहीं बता सकूंगा. आप स्फेसिफिकेशन भेजिए, हम कोटेशन भेज देंगे.
कपड़े-क्रीम की तरह इस मार्केट में भी मारकाट शुरू हो चुकी है. फोन पर दूसरा सप्लायर पहले की बात काटता है- अरे, 16 एमएम तो बहुत ज्यादा बता रहे हैं. हमारा काम तो 5 एमएम से भी चल जाएगा. वैसे भी कौन-सा दिल्ली पर कोई हमला होना है. ये तो बस हवा बनाकर लूट रहे हैं. आप 5 एमएम की बात मानिए.
एक बुलेटप्रूफ वॉल सप्लायर और एक सेफ हाउस मैन्युफैक्चरर पर आखिरकार थोड़ी सस्ती डील फाइनल हुई. दो दर्जन लोगों के रहने लायक कंटेनर का खर्च करीब-करीब ढाई करोड़. बाजार में और खंगालने पर कीमत शायद और कम हो सके, लेकिन हम यहीं रुक जाते हैं.
स्पेसिफिकेशन तय हो चुकी. 15 लोग जहां लगभग महीनाभर रह सकें. सलाहों की पुड़िया खुल जाती है.
मैन्युफैक्चरर कहता है- ऐसा करते हैं, इसमें बंक बेड की बजाए डॉरमेट्री सिस्टम बना देंगे. फलां बाय ढिकां फीट…कम स्पेस में ज्यादा काम हो जाएगा. अंदर की तरफ थर्मोकोल इन्सुलेशन होगा, जिसके बाद और कई चीजें…(वे जो टर्म्स कहते हैं, मेरी समझ से बाहर हैं) इसपर खर्चा थोड़ा ज्यादा हो जाएगा. अंडरग्राउंड के लिए खुदाई वगैरह की फॉर्मेलिटी. फिर बंकर में रहेंगे तो बिजली-पानी भी चाहिए ही होगी. वो भी हमें करना होगा क्या?
हां. हम चाहते हैं कि काम ज्यादा लोगों में न फैले. सब चुपचाप हो जाए.
तब ऐसा है मैडम कि मोटा-मोटी चार करोड़ का खर्च आ जाएगा.
ये तो बहुत ज्यादा है. इतने में तो दिल्ली में दो बढ़िया घर मिल जाए. मैं चिड़चिड़ा जाती हूं.
लेकिन घर तो आपको चाहिए नहीं. बमबारी में वो तो धुआं हो जाएगा. आपकी डिमांड भी तो बड़ी है. इसमें मटेरियल भी स्टील और कंक्रीट होगा. हमें ही इंजीनियर रखना होगा. ऊपर से पर्मिशन लेनी होगी. बहुत तामझाम होंगे.
लगभग फाइनल हो चुके सप्लायर अपनी गारंटी खुद देते हैं. ‘हम सरकारी काम करते हैं. इनडिविजुअल क्लाइंट की तरफ से ये डिमांड ऐसे नहीं आती है. ज्यादा से ज्यादा सेफ रूम मांगे जाते रहे. अब आप देख लीजिए, क्या करना है! फिर इस काम में टाइम भी लगता है. नूडल नहीं कि भूख लगी और बन गए.’ आवाज के साथ-साथ दलील में हथौड़े जैसे वजन के साथ लापरवाही मिली हुई, मानो कहता हो, आप मानें तो ठीक, वरना क्लाइंट हमें खूब मिल जाएंगे.
एक तरफ कंपनियों से लेकर खुले मार्केट में इसकी कीमत करोड़ों में बताई जा रही है, वहीं एक्सपर्ट इसे हवा-हवाई बताते हैं.
दिल्ली के एक रिटायर्ड आईपीएस कहते हैं- मुझे नहीं लगता कि ऐसे बंकरों की कोई एफिकेसी हो सकती है. टेस्ट करने का कोई तरीका नहीं. मर-खप गए तो कहां से आए क्लेम करने आएंगे. वे यूं ही बेच रहे हैं. दिल्ली या पूरे देश में बस VVIP लोगों के पास ही ऐसे बंकर हैं.
तब हमारे यहां आम जनता के लिए क्या है?
इतने सालों की सर्विस में मुझे तो ऐसा कुछ पता नहीं लगा. अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन जरूर ऑप्शन है लेकिन आबादी इतनी ज्यादा है कि उसमें जाते हुए भगदड़ में ही कुछ बड़ा हादसा हो जाएगा. और जहां तक बात न्यूक्लियर अटैक की है तो इसमें ये सब बेकार है. शॉक इतना होगा, रेडिएशन इतना रहेगा कि बचने का कोई ही सवाल नहीं. न्यूक के लिए मोटे स्टील-कंक्रीट का खास बंकर चाहिए, जो जमीन के नीचे हो.
ये ‘खास’ बंकर कंपनियों से लेने में बहुत महंगे पड़ेंगे. खुले बाजार में मोलभाव को जाएं तो कोऑर्डिनेशन पसीने छु़ड़ा देगा. तब…!
पैसे वाले लेकिन वीवीआईपी दर्जे से दूर लोगों की इसी कमजोर नब्ज पर हाथ रखा रियल एस्टेट ने. दिल्ली में भी इसकी शुरुआत हो चुकी.
एक पंचसितारा होटल से जुड़ा ग्रुप लग्जरी फ्लैट्स बना रहा है. इमारत में तमाम सुविधाओं के बीच सबसे अलग चीज है, उसका अंडरग्राउंड न्यूक्लियर बंकर. हम क्लाइंट बनकर अपॉइंटमेंट लेते हैं.
दिल्ली के बीचोबीच तैयार हो रहे प्रोजेक्ट में छोटे फ्लैट्स की कीमत भी करोड़ों में. गेट पर पहुंचते ही लपकते हुए आकर एक शख्स मिलता है. चारों तरफ की सांय-चांय के बीच अंदर एकदम शांति. सबकुछ ऐसे डिजाइन किया हुआ कि क्लाइंट्स का वीवीआईपी लिस्ट से बाहर रहने का मलाल एक झटके में खत्म हो जाए. कारपेट, झाड़फानूस और सीलिंग की सजावट देखते हुए मुझे रोका जाता है. नीचे एक मशीन में मुझे पैर डालने हैं, जहां से टो-सॉक्स खुद-बखुद पैरों पर फिट हो जाएंगे.
अंदर सूट-बूट में अटेंडेंट्स हैं, जो हर क्लाइंट के लिए एक्सक्लूसिव हैं. चाय-पानी के बीच एक बड़ी स्क्रीन पर मुझे निर्माणाधीन इमारत दिखाई जा रही है.
क्लाइंट का फर्ज निभाते हुए मैं दो-चार सवाल करती हूं और फिर पहुंच जाती हूं न्यूक्लियर बेसमेंट पर.
इसका आइडिया आपकी कंपनी को कैसे आया?
अब तो माहौल बन चुका है मैडम. जैसे पॉल्यूशन कॉमन हो चुका, वैसे वॉर भी कॉमन हो रहा है. इसके बीच सेफ रह सकें, यही सोचते हुए अंडरग्राउंड शेल्टर की बात निकली. इन दिनों वैसे भी क्लाइंट लग्जरी फर्स्ट की बजाए सेफ्टी फर्स्ट की डिमांड ला रहे हैं. तो हमने दोनों को कंबाइन कर दिया.
स्क्रीन पर ही मुझे शेल्टर की डिजाइन दिखाई जाती है.
कितने लोग यहां रह सकते हैं?
हमारी बिल्डिंग में लगभग 120 फ्लैट हैं. हर घर का औसत अगर चार मेंबर लें तो करीब पांच सौ लोग होंगे. नीचे इतने लोग रह सकते हैं.
और स्टोरेज, बिजली, पानी?
वो सब होगा. जिंदा रहने और आराम से जिंदा रहने के लिए जो-जो चाहिए, यहां सब रहेगा.
स्टोरेज में काम लायक फूड है, और बाकी चीजें भी चाक-चौबंद हैं, ये कौन देखेगा? मैं भावी क्लाइंट के रुतबे में सवाल करती हूं.
ये सारा काम हमारा ग्रुप करेगा. जैसे होटल में चेक लिस्ट होती है, वैसे ही पूरी बिल्डिंग के लिए चेक लिस्ट होगी. न्यूक्लियर बेसमेंट में भी स्टोरेज और बाकी चीजें रुटीन में चेक की जाएंगी. दस सालों तक ये फ्री-ऑफ-कॉस्ट होगा.
न्यूक बंकर तो जमीन से काफी नीचे होते हैं!
हां, हमारे इंजीनियर्स की इसपर पूरी स्टडी है. बुर्ज खलीफा को बनाने में उन्होंने भी काम किया था. दुबई की कई बड़े प्रोजेक्ट डील करते रहे.
जी, लेकिन अंडरग्राउंड लगभग कितना नीचे है?
माइनस 4 लेवल पर. हमारे एक फ्लोर की हाइट लगभग 4 मीटर है. इसे चार गुना करके अंदाजा लगा लीजिए. सूटेड-बूटेड शख्स बिना हड़बड़ी समझाता है.
मैं एक बार अंडरग्राउंड भी जाकर देख सकती हूं?
उतना नीचे तो अभी नहीं जा सकेंगे. कंस्ट्रक्शन के कारण जमीन ‘मडी’ हो चुकी. नीचे अभी कोई नहीं जा रहा.
हेलमेट और टो-गल्व्स पहनकर हम माइनस वन तक जाते हैं. जमीन वाकई दलदली. नीचे लोहे के भारी रॉड्स पड़े हुए. रॉड्स पर संभलकर चलते हुए भी जमीन धंसती लगती है. पैरों की जुराबें कीचड़ में चिपक खुद अलग हो चुकीं. थोड़ी देर बाद फ्लोर इंजीनियर रोक देता है. ‘इससे आगे हम नहीं जा सकते, माइनस 4 तो फिलहाल किसी हाल में नहीं. बनने के बाद देख सकेंगी.’
लग्जरी इमारत के पास ही ईडब्ल्यूएस अपार्टमेंट बन रहे हैं. पूछने पर अटेंडेंट कहते हैं- ‘डोन्ट वरी मैडम, वे लोग दिखेंगे नहीं. बीच में 20 फीट की वॉल होगी, जिसमें पेड़-पौधे लगे होंगे.’ मैन्यूक्योर्ड हाथ पूरे दम से लग्जरी को लोकल से अलग करते हुए.
(अगली किस्त में पढ़ें, क्या कहते हैं एक्सपर्ट, क्या इस तरह की जरूरत में बंकर वाकई काम आ सकते हैं!)