दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए दिल्ली सरकार फिर से ऑड-इवन स्कीम लागू करने जा रही है. माना जा रहा है कि सड़कों पर वाहनों के ट्रैफिक को कम करके प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है. यह स्कीम 4 नवंबर से 15 नवंबर तक लागू होगी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सितंबर में घोषणा की कि पराली जलाने के सीजन के बाद 'विंटर एक्शन प्लान' के तहत ऑड-इवन स्कीम लागू होगी. यह योजना निजी और गैर ट्रांसपोर्ट वाहनों पर लागू होगी, जिसके तहत ऑड (विषम) नंबर की गाड़ियां ऑड तारीख को और इवन (सम) नंबर की गाड़ियां इवेन तारीखों पर चल सकेंगी. 13 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके यह जानकारी दी थी.
After the parali season ends, the Winter Action Plan will be implemented.
Other than Odd Even and community Diwali celebration, all other measures will continue throughout the winter season.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 13, 2019
दिल्ली सरकार राज्य में प्रदूषण नियंत्रण की कोशिशें कर रही है जहां की हवा में प्रदूषण का स्तर इस साल जनवरी के बाद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है.
दिल्ली सरकार इससे पहले यह योजना 2016 में दो बार लागू कर चुकी है. एक बार 1 जनवरी से लेकर 15 जनवरी तक और दोबारा 16 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक. इस बार ऑड ईवन स्कीम को लागू करना सरकार के लिए लिटमस टेस्ट साबित हो सकता है क्योंकि इसके पहले दोनों बार इस स्कीम के जरिये प्रदूषण घटाने में मदद नहीं मिली.
इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों का विश्लेषण किया. हमने पाया कि दिल्ली में ऑड-इवन स्कीम के जरिये हवा में प्रदूषण का स्तर का घटाने में कोई मदद नहीं मिली.
वाहन अकेले कारक नहीं हैं
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्र बोर्ड (CPCB) दो बार लागू हुई ऑड-इवन स्कीम के आंकड़ों को संकलित किया है. यह रिपोर्ट आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन के हवाले से कहा है कि कार जैसे चार पहिया वाहन कुल कार्बन उत्सर्जन में 10 प्रतिशत का योगदान देते हैं जो हवा में पीएम 2.0 और पीएम 10 बढ़ाते हैं. सिद्धांतत: सड़कों पर कारों की संख्या कम करने से हवा में पीएम कणों की संख्या घटनी चाहिए और सड़कों से उड़ने वाले धूल और अन्य प्रदूषक कणों में कमी आनी चाहिए.
जनवरी में रिपोर्ट के आंकड़े कहते हैं कि इस बात के कोई स्पष्ट संकेत नहीं देखे गए हैं कि सघनता में कोई कमी आई हो. शहर के बाहर प्रदूषण के अन्य स्रोतों के साथ मौसम संबंधी स्थितियों ने दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को प्रमुख रूप से नुकसान पहुंचाया था.
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि 'कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ऑड-इवन स्कीम के चलते वायु प्रदूषण पर कुछ नियंत्रण की संभावना है, लेकिन कोई एक कारक या एक कार्रवाई दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर को काफी हद तक कम नहीं कर सकती है.'
DIU ने कुछ आंकड़ों के विश्लेषण में पाया कि कई जगहों पर हवा की गुणवत्ता तब भी बेहतर थी, जब ऑड-इवन योजना लागू नहीं थी. उदाहरण के लिए शादीपुर पॉल्युशन ट्रैकिंग सेंटर पर ऑड-इवन स्कीम के लागू होने के एक हफ्ते पहले पीएम 2.5 का स्तर 103 था, लेकिन ऑड-इवन स्कीम लागू होने के दौरान यह बढ़कर 174.5 हो गया. पीएम 2.5 का स्तर द्वारका और दिलशाद गार्डेन के पॉल्युशन सेंटर भी बढ़ा हुआ दर्ज किया गया.
यही स्थिति अप्रैल में भी देखने को मिली जब ऑड-इवन योजना लागू हुई. इस बार योजना लागू होने के दौरान पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर सभी ट्रैकिंग सेंटर पर बढ़ा हुआ दर्ज किया गया.
अप्रैल की रिपोर्ट कहती है, 'हवा की गुणवत्ता वाहनों सहित विभिन्न स्रोतों से उत्सर्जन के अलावा, विभिन्न मौसम संबंधी कारकों से प्रभावित होती है जैसे मिक्सिंग हाइट (m), हवा की स्पीट (m/s), तापमान (˚C), सौर विकिरण, सापेक्षिक आर्द्रता (Humidity %), दिल्ली के बाहर हवा की स्थितियां वगैरह. जिन आंकड़ों का विश्लेषण किया गया उसे प्रभावित करने के लिए वाहनों के उत्सर्जन में कमी ही सबसे प्रमुख कारक नहीं था.'
AQI पर प्रभाव
इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट ने ऑड-इवन योजना लागू होने के दौरान दिल्ली के AQI बुलेटिन के रिकॉर्ड का अध्ययन किया और पाया कि दोनों बार जब यह योजना लागू थी, दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब रही.
ऑड-इवन योजना लागू होने के पहले 16 से 31 दिसंबर, 2015 में दिल्ली का AQI स्तर का औसत 279.5 रहा जो कि औसत है. ऑड-इवन योजना के दौरान शहर का AQI का औसत 365.4 जो कि 'बहुत खराब' की श्रेणी में आता है. अगले 15 दिनों में स्थिति और खराब रही जब AQI का औसत 373.6. हो गया.
इसी तरह, अप्रैल में ऑड-इवन योजना लागू होने से पहले 1 से 15 अप्रैल, 2016 के दौरान दिल्ली में AQI का औसत 258 रहा, जो कि 'खराब' की श्रेणी में आता है. 16 अप्रैल से लेकर 30 अप्रैल तक ऑड-इवन योजना लागू थी और इस दौरान AQI का औसत बढ़कर 283 हो गया. इस बार, इसके लागू होने के 15 दिनों के बाद AQI का औसत गिरकर 246 हो गया. इसका मतलब यह हुआ कि ऑड-इवन योजना लागू होने के दौरान भी दिल्ली की हवा सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा जहरीली रही.
क्या ऑड-इवन योजना से कोई भी फायदा है?
आंकड़े दिखाते हैं कि बाहरी स्रोतों से प्रदूषित दिल्ली की हवा ऑड-इवन योजना से नहीं सुधर सकती, यह जरूर है कि इस योजना ने किसी तरह दिल्ली की सड़कों पर भीड़ को कम करने में मदद की.
इंडियन जनरल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ 'ऑड-इवन योजना के दौरान दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का विश्लेषण'. इसके अध्ययनकर्ता नॉर्थकैप यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम के पी गोयल और गीतिका गांधी थे. यह अध्ययन कहता है, 'दिल्ली की ऑड-इवन योजना सड़कों पर ट्रैफिक कम करने में सफल रही, क्योंकि इस दौरान वाहनों की आवाजाही आसान थी, हालांकि इस दौरान भी कुछ जगहों पर ट्रैफिक जाम की समस्या रही.'
इस अध्ययन में कहा गया कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता खराब करने के लिए प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियां भी दोषी हैं.