scorecardresearch
 

ये हैं वो वजहें, जिनसे BJP ने दिल्ली की डोर दी बेदी के हाथों

बीजेपी को अरविंद केजरीवाल के मुकाबले के लिए किरण बेदी के रूप में एक मजबूत चेहरा तो मिल गया है, लेकिन उनकी 'पैराशूट एंट्री' से कुछ और सवाल भी खड़े हो रहे हैं.

Advertisement
X
Arvind Kejriwal vs Kiran bedi
Arvind Kejriwal vs Kiran bedi

अब साफ हो गया है कि दिल्ली का चुनावी दंगल अन्ना आंदोलन के दो पूर्व सहयोगियों के बीच होगा. एक तरफ 49 दिनों के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं तो दूसरी ओर 5 दिन पहले बीजेपी में आईं किरण बेदी . सोमवार रात किरण को पार्टी ने औपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर चौंका दिया. बीजेपी को अरविंद केजरीवाल के मुकाबले के लिए किरण बेदी के रूप में एक मजबूत चेहरा तो मिल गया है, लेकिन उनकी 'पैराशूट एंट्री' से कुछ और सवाल भी खड़े हो रहे हैं.

Advertisement

हाल के दिनों में बीजेपी जहां-जहां चुनाव जीती, वहां उसने मोदी के चहेते और संघ-स्वीकृत नेताओं को ही कुर्सी पर बैठाया. महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में बीजेपी के मुकाबले में कोई ईमानदार छवि की भरोसेमंद पार्टी नहीं थी. साथ ही सत्ता विरोधी रुझान भी बीजेपी के पक्ष में गया. लेकिन दिल्ली में अपनी 49 दिनों की सरकार में बिजली-पानी सस्ता करने वाली आम आदमी पार्टी उसके लिए मजबूत प्रतिद्वंद्वी थी. इसलिए यहां बीजेपी को राजनीतिक अनुभव वाले संघ-स्वीकृत नेताओं को कुर्सी देने की नीति त्यागनी पड़ी. चुनाव से 25 दिन पहले उसने शून्य राजनीतिक अनुभव वाली देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी को पार्टी में शामिल किया और इसके पांच दिन बाद उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया. इसका यही मतलब है कि बीजेपी के पास केजरीवाल के मुकाबले कोई चेहरा नहीं था, जो उनकी लोकप्रियता और छवि से टक्कर ले सके. किरण बेदी के नाम खुला खत

Advertisement

सोशल मीडिया पर यह सवाल भी चर्चा में है कि अगर केजरीवाल और उनकी पार्टी मुकाबले में न होती तो क्या बीजेपी अपने वरिष्ठों को दरकिनार कर किरण बेदी को शामिल करती? बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उनकी टीम इस बात को समझते हैं कि दिल्ली में केजरीवाल और उनकी पार्टी ही उनके लिए एकमात्र चुनौती हैं. हाल के दिनों में आए कई चुनावी सर्वेक्षण अरविंद केजरीवाल को दिल्ली का चहेता मुख्यमंत्री बता रहे हैं. दिल्ली के 20 फीसदी दलित वोटरों में उनकी अच्छी पकड़ है. ग्रामीण बाहरी दिल्ली में भी वह पिछले चुनाव के मुकाबले मजबूत स्थिति में दिख रही है.

लिहाजा बीजेपी ने एक ऐसे चेहरे को भी लाने से गुरेज नहीं किया जो पूर्व में बीजेपी की आलोचक रही हैं. यह भी याद रखा जाना चाहिए कि किरण बेदी बीजेपी की फंडिंग और गुजरात दंगों के संबंध में नरेंद्र मोदी से ट्विटर पर सफाई भी मांग चुकी हैं. लेकिन चुनाव जीतने के लिए बीजेपी और किरण बेदी दोनों ने न सिर्फ पुराने गिले भुला दिए हैं, बल्कि संभवत: दिल्ली के अपने वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी भी मोल ले ली है.

किरण बेदी की एंट्री से बीजेपी के लिए एक खिड़की और खुल गई है. अगर बीजेपी बहुमत से दूर रही तो वह इस खिड़की के सहारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हार की जिम्मेदारी से बचा सकती है. यानी बीजेपी जीती तो उसका सेहरा मोदी लहर और अमित शाह नेतृत्व के सिर, और हारी तो ठीकरा किरण बेदी के मत्थे. अब लड़ाई स्पष्ट रूप से किरण बेदी बनाम अरविंद केजरीवाल की हो गई है. लेकिन सवाल है कि 'चलो चलें मोदी के साथ' का नारा भी क्या अब संशोधित किया जाएगा?

Advertisement
Advertisement