दिल्ली सरकार की बैठक में बुधवार को कृषि विभाग के अधिकारियों को ICAR पूसा के वैज्ञानिकों द्वारा पराली जलाने की समस्या के समाधान वाली टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग दी गई. पूसा के वैज्ञानिकों की निगरानी में 5 अक्टूबर से घोल ( डिकम्पोज कैप्सूल) तैयार किया जाएगा. किसानों को यह सुविधा निशुल्क उपलब्ध कराएगी.
केजरीवाल सरकार ने केंद्र सरकार से आसपास के राज्यों में ज्यादा से ज्यादा बायो डिकम्पोज तकनीक को लागू करवाने की अपील की है. आजतक से बातचीत में दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा, ''बायो डिकम्पोज तकनीक को ग्राउंड पर लागू करने की योजना गुरुवार को तैयार हो जाएगी''
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार 11 बजे दिल्ली सचिवालय में एक अहम बैठक बुलाई थी. इस बैठक में पर्यावरण विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक भी मौजूद रहे.
गोपाल राय ने कहा, "हमारी केंद्र सरकार से मांग है कि वो एक नोडल पॉइंट बनकर, दिल्ली-हरियाणा-पंजाब और उत्तरप्रदेश की सरकारों से बातचीत करे और यहां पूसा कृषि संस्थान की बायो डिकम्पोज तकनीक को लागू करवाया जाए. केंद्र सरकार एक केंद्रित पॉलिसी भी बनाए. अगर सभी राज्य की सरकार मिलकर तकनीक लागू करवाते हैं तो किसानों पर आर्थिक बोझ आए बिना ही सरकारें अपने दम पर पराली का समाधान कर सकती हैं."
गोपाल राय ने कहा, "पूसा इंस्टिट्यूट की बायो डिकम्पोज तकनीक को दिल्ली में लागू करने की योजना बन रही है. मुख्यमंत्री ने भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को चिट्ठी लिखकर अन्य राज्यों में इस तकनीक को लागू कराने की अपील की है. सरकार किसानों की मदद कर सकती है और पराली को जलने से और इससे फैलने वाले प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकता है. दिल्ली में किसानों को सारी सुविधाएं सरकार की तरफ से दिए जाने का प्लान बन रहा है, जिससे किसानों पर बोझ नहीं आएगा. इससे दिल्ली में पराली जलने से मुक्ति मिलेगी."
क्या है ये तकनीक?
पराली को खाद में बदलने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 20 रुपये की कीमत वाली 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है. प्रधान वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह ने कहा कि "4 कैप्सूल से छिड़काव के लिए 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है और 1 हेक्टेयर में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. सबसे पहले 5 लीटर पानी मे 100 ग्राम गुड़ उबालना है और ठंडा होने के बाद घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाकर कैप्सूल घोलना है. इसके बाद घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखना होगा, जिसके बाद पराली पर छिड़काव के लिए पदार्थ तैयार हो जाता है. इस घोल को जब पराली पर छिड़का जाता है तो 15 से 20 दिन के अंदर पराली गलनी शुरू हो जाती है और किसान अगली फसल की बुवाई आसानी से कर सकता है. आगे चलकर यह पराली पूरी तरह गलकर खाद में बदल जाती है और खेती में फायदा देती है.