राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित संशोधन विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया जा सकता है. यह वही बिल है, जिससे जुड़े अध्यादेश पर केजरीवाल सरकार काफी दिनों से विरोध दर्ज कराती आई है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने देशभर में विपक्षी दलों से मुलाकात कर इसी बिल के खिलाफ समर्थन देने की मांग भी की थी. एनसीटी दिल्ली संशोधन बिल 2023 के जरिए राजधानी के प्रशासनिक और लोकतांत्रिक संतुलन का प्रावधान है. आइए जानते हैं कि अगर ये बिल कानून बनता है, तो क्या कुछ बदलेगा?
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद?
दरअसल, दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर लंबे समय से केंद्र और केजरीवाल सरकार में ठनी है. दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू है. 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था.
संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे. इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था.
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GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी. इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
- केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला
- केजरीवाल की याचिका पर मई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने माना दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकार चुनी हुई सरकार के पास होंगे. हालांकि, पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास ही रहेगा.
- कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ''अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा. उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी.''
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र लाया अध्यादेश
- केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था. इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया.
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- दिल्ली के लिए लाए गए इस अध्यादेश से दिल्ली सरकार की शक्तियां कम हो गईं ऐसा कहा गया. दिल्ली सरकार ने कहा कि यह अध्यादेश पूरी तरह से निर्वाचित सरकार के सिविल सर्विसेज के ऊपर अधिकार को खत्म करता है.
- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) को इस तरह से बनाया गया है कि इसके अध्यक्ष तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन वो हमेशा अल्पमत में रहेंगे. समिति में बाकी दो अधिकारी कभी भी उनके खिलाफ वोट डाल सकते हैं, सीएम की अनुपस्थिति में बैठक बुला सकते हैं और सिफारिशें कर सकते हैं. यहां तक कि एकतरफा सिफारिशें करने का काम किसी अन्य संस्था को सौंप सकते हैं.
अध्यादेश में हुए कुछ बदलाव
- अध्यादेश को छह महीने के अंदर कानून की शक्ल देनी होती है. ऐसे में अब इसे लेकर बिल पेश किया जाना है. हालांकि, केंद्र की ओर से अध्यादेश की तुलना में बिल में कुछ जरूरी बदलाव किए गए हैं. केंद्र सरकार ने बिल लाने से पहले सेक्शन 3A और 45D में अहम बदलाव किए हैं. धारा 3A जो अध्यादेश का हिस्सा थी, उसे प्रस्तावित विधेयक से पूरी तरह हटा दिया गया है.
- यह धारा 3A संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-2 की प्रविष्टि 41 से संबंधित है. अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा को सेवाओं से जुड़े कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. लेकिन प्रस्तावित विधेयक में अध्यादेश की एक अन्य धारा 45D के तहत प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया है. बताते चलें कि धारा 45D बोर्डों, आयोगों, प्राधिकरणों और अन्य वैधानिक निकायों के लिए की जाने वाली नियुक्तियों से संबंधित है.
- इस अध्यादेश ने एलजी/राष्ट्रपति को सभी निकायों, बोर्डों, निगमों आदि के सदस्यों/अध्यक्षों आदि की नियुक्ति या नामांकन करने की विशेष शक्तियां प्रदान कीं हैं. हालांकि, नया अधिनियम राष्ट्रपति को यह शक्ति केवल संसद के अधिनियम के माध्यम से गठित निकायों/बोर्डों/आयोगों के संबंध में प्रदान करता है.
बिल आने के बाद क्या बदलेगा?
- बिल में दिल्ली के शासन में प्रशासनिक और लोकतांत्रिक संतुलन का प्रावधान है. इसके तहत नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन होगा.
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे. इसके अलावा दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव इसके सदस्य होंगे.
- अथॉरिटी में बहुमत से सारे फैसले होंगे. अथॉरिटी की अनुशंसा पर एलजी फैसला करेंगे, लेकिन वे ग्रुप ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं.
- अथॉरिटी में व्यवस्था है कि किसी प्रस्ताव पर अगर सब सहमत नहीं हैं तो मतदान से फैसला किया जाएगा. मान्यता है कि लोकतंत्र में निष्पक्ष एवं समावेशी निर्णय लेने की यह उचित पद्धति है.
- अगर अथॉरिटी और एलजी की राय अलग-अलग होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा. ऐसे में अथॉरिटी ट्रांसफर-पोस्टिंग, विजिलेंस जैसे मुद्दों पर एलजी को सिफारिश करेगी.
- बिल के मुताबिक, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है, लिहाजा इसका प्रशासन राष्ट्रपति के पास होगा. दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट, दूतावास, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के दफ्तर हैं, देशहित में यह आवश्यक है कि यहां प्रशासन में सर्वोच्च मानदंडों का पालन हो. दिल्ली के बारे में कोई भी फैसला केवल यहां के नागरिकों को ही नहीं बल्कि पूरे देश को प्रभावित करता है.
- लोकसभा में मोदी सरकार बहुमत में है. बीजेपी के पास 301 सांसद हैं. एनडीए के पास 333 सांसद हैं. वहीं पूरे विपक्ष के पास कुल 142 सांसद हैं. सबसे ज्यादा 50 सांसद कांग्रेस के हैं. ऐसे में लोकसभा में दिल्ली अध्यादेश पर बिल मोदी सरकार आसानी से पास करा लेगी.
- राज्यसभा में कुल सांसद 238, बहुमत का आंकड़ा 120
राज्यसभा में बीजेपी के 93 सांसद हैं. जबकि सहयोगी दलों को मिलाकर यह 105 हो जाते हैं. इसके अलावा बीजेपी को पांच मनोनीत और दो निर्दलीय सांसदों का समर्थन मिलना तय है. ऐसे में बीजेपी के पास कुल 112 सांसद हो जाएंगे. हालांकि, ये बहुमत के आंकड़े से 8 सांसद कम हैं. वहीं, विपक्षी दलों पर 105 सांसद हैं.
बीजेपी को बीएसपी, जेडीएस और टीडीपी के एक-एक सांसदों से भी समर्थन की उम्मीद है. हालांकि, इसके बावजूद बीजेपी को बीजेडी या वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन की जरूरत है. दोनों के राज्यसभा में 9-9 सांसद हैं. वाईएसआर कांग्रेस ने बिल पर केंद्र का समर्थन करने का फैसला किया है. ऐसे में बीजेपी को आसानी से बहुमत मिल जाएगा.