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कुतुब मीनार के मस्जिद में नमाज रोकने के फैसले को चुनौती, दिल्ली HC में याचिका दायर

कुतुब मीनार की मस्जिद के इमाम शेर मोहम्मद ने कहा था कि ASI ने कुतुब मीनार में नमाज पढ़ना बंद करवा दिया है. इमाम ने कहा कि 13 मई जुम्मा (शुक्रवार) से कुतुब मीनार में नमाज पढ़ना बंद करवा दिया गया है.

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एएसआई के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. -फाइल फोटो
एएसआई के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. -फाइल फोटो
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पहले भी मुगल मस्जिद में बंद हो चुकी है नमाज
  • कुतुब मीनार के मुख्य गेट के दाएं तरफ है मुगल मस्जिद

कुतुब मीनार के मुगल मस्जिद में नमाज रोकने के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी ASI ने मुगल मस्जिद में नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी थी. अब याचिकाकर्ताओं की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर ASI के इस फैसले को चुनौती दी गई है.

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उधर, दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से मामले पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया गया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की एचसी बेंच ने याचिकाकर्ताओं से रजिस्ट्री के समक्ष मामले का उल्लेख करने को कहा है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ये इतना अर्जेंट मामला नहीं है जिसकी सुनवाई तत्काल या फिर अगले हफ्ते की जाए.

बताया जा रहा है कि दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष याचिका का उल्लेख करते हुए कहा गया कि कुतुब मीनार के अंदर मौजूद मुगल मस्जिद में नियमित रूप से नमाज पढ़ा जाता था. नमाज पढ़ने पर एएसआई ने 15 मई को रोक लगा दी थी. 

बता दें कि कुतुब मीनार के मुख्य गेट के दाएं तरफ बनी एक मुगलकालीन छोटी मस्जिद में नमाज होती थी. कहा जा रहा है कि अब इसमें नमाज पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने प्रतिबंध लगा दिया है. 

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पहले भी मुगल मस्जिद में बंद हो चुकी है नमाज

एएसआई के पूर्व अधिकारियों की मानें तो 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान नमाज पर प्रतिबंध लगाया गया था क्योंकि नमाजियों के पास आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का नमाज पढ़ने से संबंधित कोई अनुमति पत्र नहीं था.

साल 2016 में इस छोटी मस्जिद में एक बार फिर नमाज शुरू हो गई थी. शुरुआत में इस छोटी मस्जिद में तकरीबन 4 से 5 लोग नमाज पढ़ते थे लेकिन धीरे-धीरे नमाजियों की संख्या 40 से 50 तक पहुंच गई थी. 

यह मस्जिद जब कुतुब मीनार का निर्माण हुआ उसी समय की बताई जाती है. उस समय यह मस्जिद नहीं बल्कि मुगल शासकों के सेवादारों की सराय थी और इस सराय में मुगल शासकों के सेवादार विश्राम किया करते थे लेकिन बाद में इस सराय को मस्जिद में कन्वर्ट कर दिया गया.

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