राजधानी की आबोहवा में जिस तरह से प्रदूषण घुलता जा रहा है, लोगों की परेशानियां भी उसी अनुपात में बढ़ती जा रही हैं. दिन ब दिन इसी हवा में सांस लेने को मजबूर राजधानीवासी अब प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से भी दो चार हो रहे हैं. अस्पतालों में आजकल सांस, अस्थमा और कफ की समस्या वाले मरीजों की संख्या अचानक ही 30 से 40 फीसदी बढ़ गई है. इन मरीजों में ज्यादातर बच्चे और बूढ़े हैं. आपको बता दें कि इस प्रदूषण का सबसे गंभीर और खतरनाक असर बच्चों और बूढ़ों पर ही पड़ता हैं.
बच्चों और बूढ़ों पर क्यों होता है ज्यादा असर
डॉक्टरों के मुताबिक बच्चों के फेफड़े काफी नाज़ुक होते हैं, जो प्रदूषण को डीप इन्हेल कर लेते हैं. इसकी वजह से बाद में बच्चों में सांस या अस्थमा की परेशानी हो जाती हैं. इसके अलावा बूढ़ों के फेफड़े भी इस लेवल के प्रदूषण को झेलने में नाकाम रहते हैं और इसीलिए इस तरह की हवा में उन्हें सांस की समस्या हो जाती हैं.
अस्पतालों में बढ़ रही है मरीजों की संख्या
अस्पतालों में सांस से संबंधित मरीजों की संख्या में अचानक इजाफा देखा जा रहा है. अलग-अलग अस्पतालों में मरीजों की संख्या में इजाफे की बात करे तो बीएल कपूर में रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट में आजकल मरीजों की संख्या 40 फीसदी तक बढ़ गई है. सर गंगाराम अस्पताल में भी प्रदूषण की वजह से आने वाले मरीजों की संख्या में 30 फीसदी का इजाफा हुआ हैं.
राजधानी के सरकारी अस्पतालों में भी सर्दी जुखाम, सांस फूलना जैसी समस्याओं से पीड़ित मरीज़ एक दम से बढ़ गए हैं. अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि किस तरह प्रदूषण धीरे-धीरे लोगों को बीमार कर रहा है. बूढ़े और बच्चे प्रदूषण जनित समस्याओं को अभी झेल रहे हैं. लेकिन इसके अलावा भी जो इस हवा में सांस ले रहा हैं, वो कहीं न कहीं किसी न किसी दूरगामी बीमारी को न्यौता दे रहा है.