scorecardresearch
 

पुलिस के खिलाफ आवाज उठाने की सजा, 20 मुकदमे और 27 साल से इंसाफ का इंतजार

प्रेमपाल सिंह का कसूर बस इतना था कि उन्होंने पुलिस प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी. पुलिस ने उनकी शिकायत सुलझाने के बजाय कई फर्जी मामले लाद दिए लेकिन सिंह ने हार नहीं मानी.

Advertisement
X
प्रेमपाल सिंह
प्रेमपाल सिंह

Advertisement

दिल्ली के संगम विहार निवासी प्रेमपाल सिंह 27 साल से इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं.  उनके खिलाफ दिल्ली पुलिस ने टाडा और आर्म्स एक्ट के तहत इस जुर्म में मामला दर्ज किया था क्योंकि उन्होंने पड़ोस की एक महिला को बेरहम पिटाई से बचाया था. महिला को चार लोग पीट रहे थे जिसके खिलाफ प्रेमपाल सिंह ने आवाज उठाई थी. पुलिस ने चारों आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय प्रेमपाल को ही फंसा दिया.

प्रेमपाल ने इसके खिलाफ भी आवाज उठानी चाही और पुलिस प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करने में लग गए. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने प्रेमपाल पर कई मुकदमे लाद दिए. इनमें हत्या, बलात्कार और ड्रग्स जैसे केस भी शामिल हैं. उनके बेटे संजय सिंह और पत्नी मुन्नी देवी को भी कई मामलों में फंसा दिया गया. 8 साल के अंदर प्रेमपाल के खिलाफ 20 मुकदमे हुए जिनमें 5 केस में वे बरी हो गए. हालांकि साढ़े छह साल उन्हें जेल में काटना पड़ा.

Advertisement

उनके बेटे संजय को 13 केस में फंसाया गया और डेढ़ साल जेल में गुजारना पड़ा. मुन्नी देवी पर भी एक मुकदमा हुआ और उन्हें 28 दिन जेल में बंद रहना पड़ा. पैसे की तंगी के कारण प्रेमपाल सिंह का परिवार मुकदमों के खिलाफ आगे अपील नहीं कर पाया. नतीजतन सिंह और उनके परिजनों को दिल्ली एनसीटी का 'मशहूर अपराधी' करार दिया गया.

साल 2004 में दिल्ली की एक अदालत ने सिंह के खिलाफ एक रेप केस को फर्जी बताते हुए उन्हें बरी कर दिया और 8 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया. सिंह ने इस फर्जी केस में 3 साल जेल में गुजारे थे. इस मामले की सुनवाई करते हुए जज ने कहा था कि 'केस दर्शाता है कि पुलिस के अंदर एक पाशविक चरित्र का वास होता है.' अदालत ने माना कि फर्जी केस ने सिंह को जिंदा लाश बना दिया. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को आदेश दिया कि उन पुलिसवालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो, जिन्होंने सिंह और उनके परिवार को फंसाया.

कोर्ट के इस आदेश के वावजूद 65 साल के सिंह ने हार नहीं मानी है और उन्होंने पुलिस प्रशासन के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज कर दी है. हालांकि इस मामले में दिल्ली पुलिस का एक कानून है, जिसने सिंह के हाथ बांध रखे हैं. दिल्ली पुलिस एक्ट की धारा 140 के मुताबिक, कोई भी केस घटना के तीन महीने के अंदर दायर होना चाहिए, जबकि सिंह के सभी मामले 1991-1999 के हैं. बावजूद इसके सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के वकील विल्स मैथ्यू की मदद से दिल्ली पुलिस के कानून को चुनौती दी है. दिलचस्प बात यह है कि सिंह की इस याचिका के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से जवाब तलब किया है.

Advertisement

  

Advertisement
Advertisement