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7 अप्रैल को रामलीला मैदान में धरना देंगे निजी स्कूल, 1 लाख लोगों को आने का दावा

इस विरोध प्रदर्शन में देशभर से 1 लाख से अधिक स्कूल संचालकों, प्रिंसिपलों और अध्यापकों के शामिल होने का दावा किया गया है. गुरुवार को निसा और नेशनल कोएलिशन फॉर स्कूल एजुकेशन के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने बताया कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा के क्षेत्र में भय का माहौल पैदा हो गया है.

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शिक्षा बचाओ अभियान के लिए एकत्रित हुए संगठन
शिक्षा बचाओ अभियान के लिए एकत्रित हुए संगठन

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बजट प्राइवेट स्कूलों के अखिल भारतीय संगठन, नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस (निसा) व नेशनल कोएलिशन फॉर स्कूल एजुकेशन ने सरकार की गलत शिक्षा नीतियों के खिलाफ एक देशव्यवापी ‘शिक्षा बचाओ अभियान’ की घोषणा की है. आगामी 15 दिनों तक देश के विभिन्न राज्यों में आरटीई की विसंगतियों व गलत शिक्षा नीति के बाबत अलख जगाने के बाद 7 अप्रैल को दिल्ली के रामलीला मैदान में विरोध प्रदर्शन भी किया जाएगा.

इस विरोध प्रदर्शन में देशभर से 1 लाख से अधिक स्कूल संचालकों, प्रिंसिपलों और अध्यापकों के शामिल होने का दावा किया गया है. गुरुवार को निसा और नेशनल कोएलिशन फॉर स्कूल एजुकेशन के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने बताया कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज शिक्षा के क्षेत्र में भय का माहौल पैदा हो गया है. उन्होंने कहा कि आज छात्र, अभिभावक, अध्यापक, प्रिंसिपल सभी भय के माहौल में जी रहे हैं जिससे गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करना असंभव होता जा रहा है.

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उन्होंने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लाया गया था, लेकिन कानून ने नई समस्याएं पैदा कर दी हैं. सरकारी स्कूल में कोई दाखिला लेना नहीं चाहता, जबकि सरकार हमारे स्कूल चलने नहीं देना चाहती है. उन्होंने मांग है कि सरकार सभी बच्चों को डीबीटी माध्यम से शिक्षा वाउचर उपलब्ध कराए जिससे वे अपने पसंद की स्कूल में पढ़ सकें.

निसा के उपाध्यक्ष राजेश मल्होत्रा ने कहा कि शिक्षा को लेकर लोगों के बीच में जागरुकता पहले से बहुत बढ़ी है और लोग अपने बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं. इसके लिए गरीब से गरीब अभिभावक अपने बच्चों को निशुल्क सरकारी स्कूलों की बजाए पैसे खर्च कर छोटे निजी स्कूलों में भेजना पसंद कर रहे हैं. सरकार अपने स्कूलों की गुणवत्ता ठीक करने की बजाए छोटे स्कूलों पर नित्य नए नियम कानूनों का बोझ डाल उन्हें बंद करना चाहती है.

निसा को-ऑर्डिनेटर अमित चंद्र ने कहा कि सरकारी नीतियों के चलते देश में शिक्षा का स्तर दुनिया में सबसे खराब होता जा रहा है. विश्व स्तर पर तैयार होने वाले प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट्स असेसमेंट (पिसा) रैंकिंग में भारत तो 73 देशों में से 72वां स्थान प्रदान किया गया है. देश में अध्यापकों के 60 लाख पदों में 10 लाख पद रिक्त हैं. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों में 25 प्रतिशत अध्यापक अनुपस्थित रहते हैं. इन सभी के कारण हमारे नौनिहालों की शिक्षा प्रभावित हो रही है.

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प्राइवेट लैंड पब्लिक स्कूल्स असोसिएशन के प्रेमचंद देशवाल ने बताया कि निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के नाम पर सरकार निजी स्कूलों व स्कूल प्रबंधन पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती हैं. परिणाम स्वरूप स्कूलों की स्वायतता पर खतरा पैदा हो गया है.

साऊथ दिल्ली अनरिकग्नाईज़्ड स्कूल्स असोसिएसन के अनिल गोयल ने कहा कि अच्छी नीयत के साथ वर्ष 2009 में लागू किया गया आरटीई कानून विघटनकारी साबित हुआ है. इसने स्कूलों, अभिभावकों, छात्रों, मीडिया व सिविल सोसायटी को एक साथ लाकर काम करने की बजाए उनके मन में दुविधा पैदा करने का काम किया है.

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