दिल्ली के सभी जिला अदालतों के वकील आज हड़ताल पर थे. हालांकि इस बार की हड़ताल कई मामलों में पिछली हड़तालों से अलग थी. ये हड़ताल कोर्ट परिसर मे नहीं बल्कि बार कौंसिल ऑफ इंडिया के दफ्तर के बाहर थी. हड़ताल इसलिए थी कि वकीलों को हड़ताल से न रोका जाए. सुनने मे अजीब जरूर है लेकिन दिलचस्प भी है. बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया ने दो हफ्ते पहले लॉ कमीशन को अपना सुझाव भेजा था कि वकील बिना वजह के हड़ताल पर जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए.
अगर उनकी हड़ताल से मुकदमे से जुड़े लोगों को नुकसान होती है तो उसकी भी पेनल्टी वकीलों से वसूली जाए. ये पेनल्टी 3 से 5 लाख के बीच हो सकती है. इसके अलावा कुछ और भी सुझाव हैं. वकीलों के रजिस्ट्रेशन को सस्पेंड करना भी इनमें शामिल है. हड़ताल खत्म कराने के मसले पर बार काउंसिल का कहना है कि वे सिफारिशों को वापस लेने के लिए दोबारा लॉ कमीशन को लिखेगी.
वकीलों का कहना है कि बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने दिल्ली की सभी जिला अदालतों की कोऑर्डिनेशन कमेटी से राय लिए बिना सुझाव सीधे लॉ कमीशन को भेज दिए है. अगर लॉ कमीशन इन सुझावों को मानकर 1961 के एक्ट मे बदलाव कर देता है तो फिर ये कानून बन जायेगा. वकीलों का कहना है कि जब सरकारी कर्मचारी से लेकर डॉक्टर और टीचर जैसे प्रोफेशनल हड़ताल कर सकते हैं तो फिर वकीलों पर ही पाबंदी क्यों. बार कौंसिल ऑफ इंडिया लॉ कमीशन द्वारा भेजे गए सुझावों का विरोध कर रही है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया से अचानक वकीलों के स्ट्राइक पर जाने के मामले पर लॉ कमिशन को सुझाव देने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने बार कॉउंसिल से कहा था कि अचानक स्ट्राइक पर जाने से बहुत नुकसान होता है. लिहाजा इसे रोका जाना चाहिए. इससे केस लड़ रहे आम लोगों को नुकसान होता है. सुझाव में बार कॉउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा है कि वकीलों के अचानक हड़ताल पर जाने पर उनका लाइसेंस रद्द किया जाए. इसके अलावा उन पर पेनल्टी लगाने की भी बात कही जा रही है. इस सुझाव के विरोध में जिला कोऑर्डिनेशन कमेटी और बार काउंसिल के बाहर वकीलों ने विरोध प्रदर्शन किया.