Qutub Minar Hearing: कुतुब मीनार परिसर में मौजूद मस्जिद (Quwwatul Islam mosque) मामले पर आज साकेत कोर्ट में सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान जज पुलिसकर्मी की हरकत पर भड़क गए थे. दरअसल, यहां दिल्ली पुलिस (स्पेशल ब्रांच) के कर्मी कोर्टरूम में रिकॉर्डिंग करते मिले थे, जिसपर कोर्ट नाराज हो गया.
साकेत कोर्ट के जज ने पुलिसकर्मी से पूछा कि आपको कोर्टरूम में कुछ भी रिकॉर्ड करने की इजाजत किसने दी? किस अफसर ने ऐसा ऑर्डर दिया था? इसके बाद ऑफिसर की आईडी और फोन को चेक किया गया. दिल्ली पुलिस के कर्मी ने कहा कि वह सिर्फ ऑडियो रिकॉर्ड कर रहा था.
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इसके बाद जज के आदेश के बाद पुलिस कर्मी के फोन को जब्त कर लिया गया.
बता दें कि कुतुब मीनार मामले की सुनवाई आज पूरी हो गई. अब इसपर 9 जून को फैसला आएगा. एडीजे निखिल चोपड़ा ने कहा कि 9 जून को आर्डर आएगा जिसमें कोर्ट तय करेगा कि याचिका को मंजूरी देते हुए मस्जिद परिसर में मौजूद हिंदू जैन देवी देवताओं की पूजा की इजाजत दी जाए या नहीं. दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद साकेत कोर्ट में एडीजे निखिल चोपड़ा ने कहा कि सभी संबंधित पक्ष 9 जून तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करें.
कोर्ट में क्या कुछ हुआ?
साकेत कोर्ट मे सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने दलील दी कि हमारी तीन अपील हैं जिसे मजिस्ट्रेट कोर्ट ने ख़ारिज किया था हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि 27 मंदिर को तोड़ कर यहां कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाई गई है. जैन ने अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा कि उसके तहत ही कुतुब मीनार परिसर को स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था.
वह बोले कि मुस्लिमों ने यहां कभी नमाज़ नहीं अदा की. मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कर इस्लाम की ताकत दिखाना चाहते थे. इस्लाम के उसूलों के मुताबिक नमाज अदा करने के लिए मुसलमान इसका इस्तेमाल कभी नहीं करते.
जज ने पूछा कि आप किस कानून के तहत यहां पूजा का अधिकार मांग रहे है? फिर मॉन्यूमेंट एक्ट का हवाला देते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि हम कोई मंदिर निर्माण नहीं चाहते. बस पूजा का अधिकार चाहते हैं.
जज ने पूछा कि आप इसे किस आधार पर बहाल करने का दवा कर रहे हैं? जैन ने एक्ट के हवाले से कहा कि मॉन्यूमेंट के चरित्र के मुताबिक तो वहां पूजा होनी चाहिए.
अयोध्या केस का जिक्र आया
जैन ने कहा कि अब राममंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही देखिए तो रहा एक बार देवता की संपत्ति, हमेशा एक देवता की संपत्ति होती हैं. देवता की दिव्यता कभी मिटती नहीं. मंदिर के विध्वंस के बाद भी देवता और मंदिर की पवित्रता और देवत्व कभी नष्ट नहीं होता.
जैन ने दलील दी कि अगर मूर्ति तोड़ भी दी जाए या हटा दी जाए तो भी वहां मंदिर माना जाता है. कुतुब परिसर में अभी भी अलग अलग देवी देवताओं की मूर्तियां है. साथ ही एक लौह स्तंभ है. जो कम से कम 1600 साल पुरानी संरचना है. उस मिश्र धातु के स्तम्भ पर पौराणिक लिपि संस्कृत में श्लोक भी लिखें हैं. हमें वहां पूजा की इज़ाज़त दी जाए.
एडीजे निखिल चोपड़ा ने पूछा कि यदि देवता पिछले 800 वर्षों से बिना पूजा के वहा पर हैं तो रहने दें.
हिंदू पक्ष ने कहा- 27 देव मंदिर तोड़े गए
एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज निखिल चोपड़ा ने याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन से पूछा कि आप कोर्ट से क्या राहत चाहते हैं? क्या आप परिसर के कैरेक्टर को बदलना चाहते हैं?
जैन ने कहा कि हम पूजा का अधिकार चाहते हैं. क्योंकि मुख्य देवता तीर्थंकर ऋषभदेव और भगवान विष्णु के सहित 27 देव मंदिर कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा तोड़कर ये ढांचा बनाया गया है. कोर्ट आदेश देगा तभी एएसआई अपने नियमों में ढील दे सकता है.
अपने धर्म और आस्था के अनुसार पूजा उपासना का अधिकार हमारा मौलिक अधिकार है. अदालत हमारे उस अधिकार की सुरक्षा करे. बहाल करे.
अदालत ने पूछा कि क्या ऐसा कोई कानून है जो कहता है कि पूजा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है? मूर्तियां तो वहां हमेशा से रही हैं. ASI ने भी साफ कर दिया कि उन्हें नहीं हटाया जाएगा. आप बस साफ करे कि पूजा अर्चना के अधिकार का क्या क़ानूनी आधार है?
हरिशंकर जैन ने आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसके मुताबिक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है. जैन ने आगे कहा कि तथाकथित मस्जिद सिर्फ नाम के लिए है. वहां कोई नमाज नहीं हुई.
ASI ने क्या कहा
एएसआई ने कहा कि स्मारक सदियों पहले बनाया गया था. किसी भी बदलाव के लिए कोई अनुरोध या याचिका नहीं आई थी. अभी हाल ही में ये बातें सामने आ रही हैं.
ASI के वकील सुभाष गुप्ता ने कहा कि अयोध्या फैसले मे भी कहा गया है कि अगर स्मारक हैं तो उसका करैक्टर नहीं बदला जा सकता है. संरक्षित स्मारक में किसी तरह का धार्मिक पूजा पाठ नहीं किया जा सकता है. इसलिए याचिका को रद्द कर देना चाहिए.
एएसआई ने कहा कि किसी स्मारक के चरित्र, चाहे उसे पूजा के लिए अनुमति दी जाए या नहीं, इसका अंदाजा उसी दिन से लगाया जाता है, जिस दिन से उसे स्मारक का दर्जा दिया गया था.
कुतुबमीनार नॉन लिविंग मॉन्यूमेंट है. जब ये एएसआई के संरक्षण में आया था तब वहां कोई पूजा नहीं हो रही थी. निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पूजा करने वालों को अपने धर्म का अधिकार जरूर है लेकिन ये absolute right नहीं है. इस मामले में पूजा का अधिकार नहीं है.
ASI ने कहा कि किसी स्मारक का स्वरूप वही रहेगा जो अधिग्रहण के वक़्त था. इसी लिहाज़ से कुछ स्मारक में पूजा की इजाज़त है. कुछ में नहीं है. ये अधिग्रहण के वक़्त की स्थिति से तय होता है.
एएसआई के वकील सुभाष गुप्ता ने दलील दी कि कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद पर किए गए उत्कीर्णन बताते हैं कि मस्जिद का निर्माण 27 मंदिरों के अवशेष से किया गया था. लेकिन ये कहीं नहीं लिखा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया. हालांकि, यह भी नहीं बताया गया है कि मस्जिद के लिए सामग्री वहीं से जुटाई गई थी या कहीं और से लाई गई थी.
एएसआई ने कहा की कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है, क्योंकि इस तरह की गतिविधि कभी मौजूद नहीं थी. जब इसे एक स्मारक के रूप में घोषित किया गया था तब भी नहीं.